श्री कृष्णाश्रय स्तुति
सर्व मार्गेषु नष्टेषु, कलौ च खल धर्मिणि
पाखण्ड प्रशुरे लोकें, कृष्ण एव गत्रीमम ||1||
म्लिच्छक्रान्तेषु देशेषु, पापैकनिल्येषु च
सत्पिद व्याघ्र लोकेषु, कृष्ण एव गत्रीमम ||2||
गंगादि तीर्थ वरीषु, दुष्टारैवावृत्तस्वि
तिरोहिताधिदेवेषु, कृष्ण एव गत्रीमम ||3||
अहंकार विमूढेषु, सत्व पापानुवर्तिषु
लाभ पूजार्थ यत्नेषु, कृष्ण एव गत्रीमम ||4||
अपारज्ञान नष्टेषु, मन्त्रेष्व्रत योगिषु
तिरोहितार्थ देवेषु, कृष्ण एव गत्रीमम ||5||
नानावाद विनष्टेषु, सर्वकर्म वृत्तदिषु
पाखण्डैक प्रयत्नेषु, कृष्ण एव गत्रीमम ||6||
अजामिलादि दोषाणाम्, नाशकोनुभावे स्थिते:
ज्ञापिताखिल महात्म्य: कृष्ण एव गत्रीमम ||7||
प्रकृत: सकल देव-गणितानन्दकं बृहत्त
पूर्णानन्द हरिस्तस्मात्, कृष्ण एव गत्रीमम ||8||
विवेक धैर्य भक्त्यादि – रहितस्य विशेषतः:
पापस्कतस्य दीनस्य, कृष्ण एव गत्रीमम ||9||
सर्व समर्थ सहित:, सर्वत्रैव अखिलार्थकृत
शरणस्थ समुद्धराम्, कृष्ण एव गतिरमम ||10||
कृष्णाश्रयमिदं स्तोत्रं य: पठेत कृष्ण संनिधौ
तस्याश्रयो भवेत कृष्ण, इति श्री वल्लभोब्रवीत ||11||
|| इति श्री वल्लभाचार्य – विरचितं कृष्णाश्रय स्तोत्रं सम्पूर्णं ||
श्री कृष्णाश्रय स्तुति के बारे में
श्री कृष्णाश्रय स्तुति एक प्रसिद्ध भक्तिपूर्ण स्तोत्र है जो भगवान कृष्ण में शरण लेने और भक्ति प्रदर्शित करने का अभिव्यक्त करता है। यह कृष्ण को सर्वोच्च रक्षक के रूप में वर्णित करता है जो बाधाएं दूर करता है और आध्यात्मिक मार्गदर्शन एवं मोक्ष प्रदान करता है।
अर्थ
यह स्तुति भगवान कृष्ण के दिव्य गुणों, संकट में भक्तों के शरणस्थान के रूप में उनकी भूमिका और करुणा, ज्ञान एवं परम चेतना के अवतार के रूप में उनकी महिमा करती है।
लाभ
- आध्यात्मिक शरण और शांति प्रदान करता है
- बाधाओं और भय को दूर करता है
- भक्ति और विश्वास को बढ़ाता है
- मोक्ष और आनंद की ओर ले जाता है
महत्व
नियमित रूप से श्री कृष्णाश्रय स्तुति का पाठ भक्तों को भगवान कृष्ण की दिव्य उपस्थिति से गहरा संबंध स्थापित करने में मदद करता है, जो सुरक्षा और आध्यात्मिक विकास प्रदान करता है।