गजेंद्र मोक्ष स्तोत्र
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श्री गजेंद्र उवाच
ॐ नमो भगवते तस्मै
यत एतच् छिदात्मकम्
पुरुषादि-बिजय
परेशायभिधिमहि ॥
यस्मिन् इदम् यतश्छेदम्
येनिदम् या इदम् स्वयम्
योऽस्मत् परस्मच् च परस्
तम् प्रपद्ये स्वयम्भुवम् ॥
यः स्वात्मनिदम् निज-मय्यार्पितम्
क्वचित् विभातम् क्व च तत् तिरोहितम्
अविद्ध-दृक् साक्ष्युभयम् तद् इक्षते
स आत्म-मूलं वतु माम् परत्परः ॥
न यस्य देव ऋषयः पदं विदुर्
जन्तुः पुनः कोऽर्हति गन्तुम् इरितुम्
यथा नतस्याकृतिभिर् विचेष्टतो
दुरत्ययानुक्रमणः स मवतु ॥
दिदृक्षवो यस्य पदं सुमंगलम्
विमुक्त-सङ्ग मुनयः सुसाधवः
चरन्ति आलोक-व्रतं अव्रणं वने
भूतात्मा भूतः सुहृदः स मे गतिः ॥
न विद्यते यस्य च जन्म कर्म वा
न नामरूपे गुण-दोष एव वा
तथापि लोकप्यय-संभवाय यः
स्व-मयया तन् य अनुकलम् ऋच्छति
तस्मै नमः परेशाय
ब्रह्मणे अनन्त-शक्तये
अरूपयोः रूपाय
नमः आश्चर्य-कर्मणे ॥
नम आत्म-प्रदीपाय
साक्षिणे परमात्मने
नमो गिरं विदुराय
मनसश् चेतसां अपि ॥
सत्त्वेनो प्रतिलभ्याय
नैष्कर्म्येण विपश्चित
नमः कैवल्य-नाथाय
निर्वाण-सुख-संविदे ॥
नमः शान्ताय घोराय
मूढाय गुण-धर्मिने
निर्विशेषाय संयाय
नमो ज्ञान-घनाय च ॥
क्षेत्र-ज्ञाय नमस्तुभ्यम्
सर्वाध्यक्षाय साक्षिणे
पुरुषायत्म-मूलाय
मूल-प्रकृतये नमः ॥
सर्वेन्द्रिय-गुण-दृष्ट्रे
सर्वप्रत्यय-हेतवे
असत् छायायुक्ताय
सदाभासाय ते नमः ॥
नमो नमस्ते खिला-कारणाय
निष्कारणाद्भुत-कारणाय
सर्वगमाम्नाय-महार्णवाय
नमोऽपवर्गाय परायणाय ॥
गुणराणि छन्न-चिद्-उष्मपाय
तत् क्षोभा विस्फुर्जित-मानसाय
नैष्कर्म्य-भावेन विवर्जितागम
स्वयम् प्रकाशाय नमस् करोमि ॥
मादृक् प्रपन्न-पशु-पशु-विमोक्षणाय
मुक्ताय भूरि-कृणय नमोऽलयाय
स्वं शेन सर्व-तनु-भृण-मनसि प्रातित-
प्रत्यक्ष-दृषे भगवते बृहते नमस्ते ॥
आत्मात्म-जप्ति-गृह-वित्त-जेनेषु सक्तैः
दुष्प्रपानय गुण-सङ्ग-विवर्जिताय
मुक्तात्मभिः स्व-हृदय परिवर्तिताय
ज्ञानात्मने भगवते नम ईश्वराय ॥
यम् धर्मकामार्थ-विमुक्ति-काम
भजन्ता इष्टं गतिं अप्नुवन्ति
किं चशिशो रत्यपि देहमव्ययम्
करोतु मे दाभ्र-दयो विमोक्षणम् ॥
एकान्तिनो यस्य न कञ्चनार्थं
वञ्चन्ति ये वै भगवद्-प्रपन्नाः
अत्याद्भुतं तच्छरितं सुमंगलम्
गायन्ता आनन्द-समुद्र-मग्नाः
तं अक्षरं ब्रह्म परम् परेशम्
अव्यक्तं अध्यात्मिक-योग-गम्यम्
अतिन्द्रियम् सूक्ष्मं इवातिदूरम्
अनन्तं आद्यम् परिपूर्णं इदं ॥
गजेंद्र मोक्ष स्तोत्र के बारे में
गजेंद्र मोक्ष स्तोत्र भागवत पुराण से एक पवित्र स्तोत्र है जिसमें गजेंद्र नामक हाथी के राजा की कथा वर्णित है, जिसे भगवान विष्णु ने मगरमच्छ से बचाया था। यह स्तोत्र पूर्ण समर्पण और भक्ति व्यक्त करता है और जन्म-मरण के चक्र से मुक्ति के लिए भगवान विष्णु से प्रarthना करता है।
अर्थ
यह स्तोत्र गजेंद्र के संघर्ष और उनके हृदय से निकली प्रार्थना को वर्णित करता है जब उन्होंने भगवान विष्णु को कमल का पुष्प अर्पित किया। इसमें विष्णु की त्वरित प्रतिक्रिया, गरुड़ के द्वारा दिव्य सहायता, और गजेंद्र को मोक्ष प्रदान करने का उल्लेख है। प्रतीकात्मक रूप से यह संसारिक बंधनों से मुक्ति के लिए आत्मा के परम देवता के प्रति समर्पण को दर्शाता है।
लाभ
- संकटों और खतरों से मुक्ति प्रदान करता है
- आध्यात्मिक विकास और आंतरिक शांति लाता है
- भौतिक बंधनों और पिछले कर्मों से पार लगाता है
- भक्ति, समर्पण और विश्वास बढ़ाता है
- मोक्ष और चिरस्थायी आनंद की ओर ले जाता है
महत्व
गजेंद्र मोक्ष स्तोत्र वैष्णव संप्रदाय में अत्यंत पूजनीय है और इसे जीवन की कठिनाइयों से रक्षा, आध्यात्मिक उन्नति और मुक्ति पाने के लिए पढ़ा जाता है। यह ईश्वर के प्रति भक्ति और समर्पण की शक्ति को मोक्ष और दिव्य कृपा प्राप्त करने का सर्वोत्तम मार्ग दर्शाता है।