श्री चंद्रशेखर इंद्र सरस्वती के 108 नाम
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॥ श्री चंद्रशेखरेन्द्र सरस्वत्या स्तोत्तरशतनामावलिः ॥
महास्वामिपाद स्तोत्तरशतनामावलिः
श्रीकांचिकामकोटिपीठाधिश्वर जगद्गुरु
श्रीश्रीचंद्रशेखरेन्द्रसरस्वती अस्तोत्तरशत नामावलिः ।
ॐ श्रीकांचिकामकोटिपीठाधिश्वराय नमः ।
ॐ श्रीचंद्रशेखरेन्द्रसरस्वतिगुरुभ्यो नमः ।
ॐ संन्यासाश्रमशिखराय नमः ।
ॐ कषायदण्डधारिणे नमः ।
ॐ सर्वपीडापहारिणे नमः ।
ॐ स्वामिनाथगुरवे नमः ।
ॐ करुणासागराय नमः ।
ॐ जगदाकर्षणशक्तिमते नमः ।
ॐ सर्वसाराचारहृदयस्थाय नमः ।
ॐ भक्तपरिपालकश्रेष्ठाय नमः । 10 ।
ॐ धर्मपरिपालकाय नमः ।
ॐ श्रीजयेन्द्रसरस्वत्याचार्याय नमः ।
ॐ श्रीविजयेन्द्रसरस्वतिपूजिताय नमः ।
ॐ शिवशक्तिस्वरूपाय नमः ।
ॐ भक्तजनप्रियाय नमः ।
ॐ ब्रह्मविष्णुशिवैक्यस्वरूपाय नमः ।
ॐ कांचिक्षेत्रवासाय नमः ।
ॐ कैलाससिखरवासाय नमः ।
ॐ स्वधर्मपरिपोषकाय नमः ।
ॐ चतुर्वर्ण्यसंरक्षकाय नमः । 20 ।
ॐ लोकरक्षणसंकल्पाय नमः ।
ॐ ब्रह्मनिष्ठपराय नमः ।
ॐ सर्वपापहराय नमः ।
ॐ धर्मरक्षणसंतुष्टाय नमः ।
ॐ भक्तार्पितधनस्विकर्त्रे नमः ।
ॐ सर्वोपनिषत्सारज्ञाय नमः ।
ॐ सर्वशास्त्रगम्याय नमः ।
ॐ सर्वलोकपितामहाय नमः ।
ॐ भक्ताभिष्टप्रदायकाय नमः ।
ॐ ब्राह्मण्यपोषकाय नमः । 30 ।
ॐ नानाविधपुष्पार्चितपादाय नमः ।
ॐ रुद्राक्षकिरीटधारिणे नमः ।
ॐ भस्मोद्धूलितविग्रहाय नमः ।
ॐ सर्वज्ञाय नमः ।
ॐ सर्वचराचरव्यापकाय नमः ।
ॐ अनेकशिष्यपरिपालकाय नमः ।
ॐ मनश्चञ्चल्यनिवर्तकाय नमः ।
ॐ अभयहस्ताय नमः ।
ॐ भयापहाय नमः ।
ॐ यज्ञपुरुषाय नमः । 40 ।
ॐ यज्ञानुष्ठानरुचिप्रदाय नमः ।
ॐ यज्ञसम्पन्नाय नमः ।
ॐ यज्ञसहायकाय नमः ।
ॐ यज्ञफलदाय नमः ।
ॐ यज्ञप्रियाय नमः ।
ॐ उपमानरहिताय नमः ।
ॐ स्फटिकतुलसीरुद्राक्षहारधारिणे नमः ।
ॐ चतुर्वर्ण्यसमदृष्टये नमः ।
ॐ ऋग्यजुस्सामाथर्वनचतुर्वेदसंरक्षकाय नमः ।
ॐ दक्षिणामूर्तिस्वरूपाय नमः । 50 ।
ॐ जाग्रत्स्वप्नसुषुप्त्यवस्थातिताय नमः ।
ॐ कोटिसूर्यतुल्यतेजोमयशरीराय नमः ।
ॐ साधुसंघसंरक्षकाय नमः ।
ॐ अश्वगजगोपूजनिर्वर्तकाय नमः ।
ॐ गुरुपादुकापूजाधुरंधराय नमः ।
ॐ कनकाभिषिक्ताय नमः ।
ॐ स्वर्णबिल्वदलपूजिताय नमः ।
ॐ सर्वजीवमोक्षदाय नमः ।
ॐ मुकवागदाननिपुणाय नमः ।
ॐ नेत्रदीक्षादानाय नमः । 60 ।
ॐ द्वादशलिंगस्थापकाय नमः ।
ॐ गणरसज्ञाय नमः ।
ॐ ब्रह्मज्ञानोपदेशकाय नमः ।
ॐ सकलकलासिद्धिदाय नमः ।
ॐ चतुर्वर्ण्यपूजिताय नमः ।
ॐ अनेकभाषासम्भाषणकोविदाय नमः ।
ॐ अष्टसिद्धिप्रदायकाय नमः ।
ॐ श्रीशारदामठसुस्थिताय नमः ।
ॐ नित्यान्नदानसुप्रीताय नमः ।
ॐ प्रार्थनामात्रसुलभाय नमः । 70 ।
ॐ पादयात्राप्रियाय नमः ।
ॐ नानाविधमतपण्डिताय नमः ।
ॐ श्रुतिस्मृतिपुराणज्ञाय नमः ।
ॐ देवयक्षकिन्नरकिम्पुरुषपूज्याय नमः ।
ॐ श्रवणानन्दकरकीर्तये नमः ।
ॐ दर्शनानन्दाय नमः ।
ॐ अद्वैतानन्दभरिताय नमः ।
ॐ अव्याजकरुणामूर्तये नमः ।
ॐ शैववैष्णवादिमान्याय नमः ।
ॐ शंकराचार्याय नमः । 80 ।
ॐ दण्डकमण्डलुहस्ताय नमः ।
ॐ वीणामृदंगादिसकलवाद्यनादस्वरूपाय नमः ।
ॐ रामकथारसिकाय नमः ।
ॐ वेदवेदांगगमादि सकलकलासदाः प्रवर्तकाय नमः ।
ॐ हृदयगुहासयाय नमः ।
ॐ शतरुद्रीयवर्णितस्वरूपाय नमः ।
ॐ केदारेश्वरनाथाय नमः ।
ॐ अविद्यानाशकाय नमः ।
ॐ निष्कामकर्मोपदेशकाय नमः ।
ॐ लघुभक्तिमार्गोपदेशकाय नमः । 90 ।
ॐ लिंगस्वरूपाय नमः ।
ॐ शालग्रामसूक्ष्मस्वरूपाय नमः ।
ॐ कालत्यांशंकरकीर्तिस्तम्भनिर्माणकर्त्रे नमः ।
ॐ जितेन्द्रियाय नमः ।
ॐ शरणागतवत्सलाय नमः ।
ॐ श्रीशैलसिखरवासाय नमः ।
ॐ डमरुकानादविनोदाय नमः ।
ॐ वृषभरुढाय नमः ।
ॐ दुर्मतिनाशकाय नमः ।
ॐ अभिचारिकादोषहर्त्रे नमः । 100 ।
ॐ मिताहाराय नमः ।
ॐ मृत्युविमोचनशक्ताय नमः ।
ॐ श्रीचक्रार्चनतत्पराय नमः ।
ॐ दासानुग्रहकारकाय नमः ।
ॐ अनुराधानक्षत्रजाताय नमः ।
ॐ सर्वलोकाख्यातशीलाय नमः ।
ॐ वेंकटेश्वरचरणपद्मशत्पदाय नमः ।
ॐ श्रीत्रिपुरसुन्दरीसमेतश्रीचन्द्रमौलिश्वरपूजप्रियाय नमः । 108 ।
इति श्रीकांचिकामकोटिपीठाधिश्वर जगद्गुरु शंकराचार्य
श्रीचंद्रशेखरेन्द्रसरस्वत्यास्तोत्तरशतनामावलिः संपूर्ण ॥
श्री चंद्रशेखर इंद्र सरस्वती के 108 नाम के बारे में
श्री चंद्रशेखरेंद्र सरस्वती VIII, जिन्हें महापेरियावा या कांची के साधु के नाम से जाना जाता है, कांची कामकोटि पीठम के 68वें जगद्गुरु थे। उनका जन्म 20 मई 1894 को तामिलनाडु के विलुपुरम में हुआ था। वे एक कन्नड़ स्मार्त ब्राह्मण परिवार से थे। उन्हें 1907 में 68वें आचार्य के रूप में स्थापित किया गया और उन्होंने 87 वर्षों तक पीठम का नेतृत्व किया, अद्वैत वेदांत और हिंदू दर्शन की शिक्षाएं फैलाईं।
अर्थ
उनकी शिक्षाएं अद्वैत दर्शन पर आधारित थीं, जो आत्मा की ब्रह्म के साथ एकत्व और अभेदवाद को दर्शाती हैं। उन्होंने वैदिक परंपराओं के संरक्षण, भक्तों में विनम्रता, भक्ति और सरलता को बढ़ावा दिया, जिससे आध्यात्मिक ज्ञान सभी के लिए सुलभ हो गया।
लाभ
- प्राचीन वैदिक ज्ञान और धर्म का संरक्षण एवं प्रचार किया
- आध्यात्मिक शिक्षा और वैदिक अध्ययन को पुनर्जीवित किया
- लाखों लोगों को सरलता, विनम्रता और भक्ति की प्रेरणा दी
- भारत में सांस्कृतिक और धार्मिक पुनरुत्थान को प्रभावित किया
महत्व
श्री चंद्रशेखरेंद्र सरस्वती को आधुनिक हिंदू धर्म के सबसे सम्मानित संतों में से एक माना जाता है। उनकी शिक्षाएं विश्वभर के आध्यात्मिक साधकों और विद्वानों को प्रेरित करती हैं। उन्होंने शंकराचार्य की परंपराओं को बनाए रखने और हिंदू धर्म को उन्नत करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।