श्री छिन्नमस्त कावचम्
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देव्युवाच |
कथिताश्छिन्नमस्तायā यā विद्याः सुगोपिताः |
त्वया नाथेन जीवेण श्रुताश्चाधिगतā मया || 1 ||
इदानीं श्रोतुमिच्छामि कावचं पूर्वसूचितम् |
त्रैलोक्यविजयं नाम कृपया कथ्यतां प्रभो || 2 ||
भैरव उवाच |
शृणु वक्ष्यामि देवेशि सर्वदेवनमस्कृते |
त्रैलोक्यविजयं नाम कावचं सर्वमोहनम् || 3 ||
सर्वविद्यामयं साक्षात्सुरात्सुरजयप्रदं |
धारणात्पठनादिष्टस्त्रैलोक्यविजयी विभु: || 4 ||
ब्रह्मा नारायणो रुद्रो धारणात्पठनाद्यतः |
कर्तā पातā च संहर्तā भुवनानां सुरेश्वरि || 5 ||
न देयं परशिष्येभ्यः:’भक्तेभ्यः:’पि विशेषतः |
देयं शिष्याय भक्ताय प्राणेभ्यः:’प्यधिकाय च || 6 ||
देव्याश्च छिन्नमस्तायाः कावचस्य च भैरवः |
ऋषिस्तु स्याद्विराट् छन्दो देवता छिन्नमस्तकाः || 7 ||
त्रैलोक्यविजये मुक्तौ विनियोगः प्रकिर्तितः |
हुंकारो मे शिरः पातु छिन्नमस्ता बलप्रदा || 8 ||
ह्रां ह्रूं ऐं त्र्यक्सरी पातु भालं वक्त्रं दिगम्बरā |
श्रीं ह्रीं ह्रूं ऐं दृष्टौ पातु मुण्डं कर्त्रिधराऽपि सा || 9 ||
सा विद्यā प्रणवाद्यन्तā श्रुतियुग्मं सदा:’वतु |
वज्रवैरोचनीयē हुं फट् स्वाहā च ध्रुवादिकā || 10 ||
घ्राणं पातु छिन्नमस्तā मुण्डकत्रिविधारिणी |
श्रीमायाकूर्कवाग्बीजैर्वज्रवैरोचनीय हूम् || 11 ||
हूँ फट् स्वाहā महाविद्यā षोडशी ब्रह्मरूपिणī |
स्वपार्श्वे वर्णिनी चासृग्धारां पालयती मुदā || 12 ||
वदनं सर्वदा पातु छिन्नमस्तā स्वशक्तिकā |
मुंडकत्रिधरā रक्ता साधकाभिष्टदायिनी || 13 ||
वर्णिनी डाकिनीयुक्तā सापि मामभितो:’वतु |
रामाद्यā पातु जिव्हां च लज्जाद्यā पातु कण्ठकं || 14 ||
कूर्काद्यā हृदयं पातु वागाद्यā स्तनयुग्मकम् |
रामया पुटीता विद्यā पार्श्वौ पातु सुरेश्वरी || 15 ||
मायया पुटीता पातु नाभिदेशे दिगम्बरā |
कूर्केण पुटीता देवी पृषटदेशे सदा:’वतु || 16 ||
वाग्बीजपुटीता कैषा मध्यं पातु सशक्तिकā |
ईश्वरī कूर्कवाग्बीजैर्वज्रवैरोचनीय हूम् || 17 ||
हूँ फट् स्वाहā महाविद्यā कोटिसूर्यसामप्रभā |
छिन्नमस्तā सदा पायादू्रुयुग्मं सशक्तिकā || 18 ||
ह्रीं ह्रूं वर्णिनी जानुं श्रीं ह्रीं च डाकिनी पदम् |
सर्वविद्यास्थिता नित्यā सर्वाङ्गं मे सदा:’वतु || 19 ||
प्राच्यां पायादेकलिङ्गā योगिनी पावके:’वतु |
डाकिनी दक्षिणे पातु श्रीमहाभैरवी च माम् || 20 ||
नैरृत्यां सततं पातु भैरवी पश्चिमे:’वतु |
इन्द्राक्षी पातु वायव्ये:’सिताङ्गी पातु उत्तरé || 21 ||
संहारीणी सदा पातु शिवकोणे सकर्त्रिकā |
इत्यक्षटशक्तयः पान्तु दिग्विविधिक्षु सकर्त्रिकाः || 22 ||
क्रीं क्रीं क्रीं पातु सा पूर्वं ह्रीं ह्रीं मां पातु पावके |
ह्रूं ह्रूं मां दक्षिणे पातु दक्षिणे कालिकावतु || 23 ||
क्रीं क्रीं क्रीं चैव नैरृत्यां ह्रीं ह्रीं च पश्चिमे:’वतु |
हूँ हूँ पातु मरुत्कोणē स्वाहā पातु सदोत्तरē || 24 ||
महाकाली खड्गहस्तā रक्षःकोणē सदा:’वतु |
तारो मायā वधूः कूर्कं फट् कारो:’यं महामनु: || 25 ||
खड्गकत्रिधरā तारा चोर्द्वदेशं सदा:’वतु |
ह्रीं स्त्रीं हूँ फट् च पाताले मां पातु चैकलजटा सती |
तारा तु सहिता खे:’व्यानमहानीलसरस्वती || 26 ||
इति ते कथितं देवयाः कावचं मन्त्रविग्रहम् |
यद्धृत्वा पठनाद्भीमः क्रोधाख्यो भैरवः स्मृतः || 27 ||
सुरासुर मुनिंद्राणां कर्ता हर्ता भवेत्स्वयम् |
यस्याज्ञया मधुमती याति सा साधकालयम् || 28 ||
भूतिन्याद्याः च डाकिन्याः यक्षिण्याद्याः च खेचराः |
आज्ञां ग्रुणन्ति तास्तस्य कावचस्य प्रसादतः || 29 ||
एतदेव परमं ब्रह्म कावचं मन्मुखोदितम् |
देवीमभ्यर्च गन्धाद्यैरमूले नैव पठेच्छृणुयात् |
सर्वैश्वरयुतो भूत्वा त्रैलोक्यं वशमाणयेत् || 30 ||
तस्य गेहे वसेल्लक्ष्मीर्वाणि च वदनाम्बुजे |
ब्रह्मास्त्रादीनि शस्त्राणि तद्गात्रे यान्ति सौम्यताम || 31 ||
इदं कावचमज्ञान्त्वा यो भजेच्छिन्नमस्तकाम |
सोऽpi शस्त्रप्रहारें मृत्युमाप्नोति सत्वरम् || 34 ||
इति श्रीभैरवतन्त्रे भैरवभैरवीसंवादे त्रैलोक्यविजयं नाम छिन्नमस्तकावचं सम्पूर्णम् |
श्री छिन्नमस्त कावचम् के बारे में
श्री छिन्नमस्ता कवच महाविद्या की छठी रूप देवी छिन्नमस्ता को समर्पित एक संरक्षक स्तोत्र है, जो आत्म-त्याग, जीवन शक्ति, और आध्यात्मिक जागृति का प्रतीक है। देवी को अपने कटे हुए सिर को पकड़ते और अपने रक्त पीते हुए दिखाया गया है, जो अहंकार और जीवन-मरण के चक्र से मुक्ति का संकेत है।
अर्थ
यह कवच मां छिन्नमस्ता के उग्र और दयालु स्वरूप का वर्णन करता है, जो भक्तों को शत्रुओं, नकारात्मक ऊर्जा, रोगों और बाधाओं से बचाती हैं। इसका जाप पापों का नाश, आध्यात्मिक शक्तियों में वृद्धि, कुंडलिनी जागरण, और भौतिक व आध्यात्मिक समृद्धि के साथ मानसिक शांति लाने वाला माना जाता है।
लाभ
- शत्रु, बुरी नजर, ग्रह दोष और काला जादू से सुरक्षा
- पाप और नकारात्मक कर्मों का नाश
- आध्यात्मिक विकास और सिद्धियों में वृद्धि
- रोगों से मुक्ति और मानसिक शांति
- इच्छाओं की पूर्ति और बाधाओं का निवारण
महत्व
श्री छिन्नमस्ता कवच का जाप भक्त देवी छिन्नमस्ता की उग्र सुरक्षा और आशीर्वाद पाने के लिए करते हैं, विशेष रूप से तांत्रिक साधक और आध्यात्मिक साधक जो अंतिम मोक्ष और आध्यात्मिक जागृति की कामना करते हैं।