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श्री महालक्ष्मी कवच

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शुकं प्रति ब्रह्मोवाच

महालक्ष्म्या: प्रवक्ष्यामि कवचं सर्वकामदम् |
सर्वपापप्रशमनं दुष्टव्याधिविनाशनम् || 1 ||

ग्रहपीडाप्रशमनं ग्रहारिष्टप्रभञ्जनम् |
दुष्टमृत्युप्रशमनं दुष्टदारिद्र्यनाशनम् || 2 ||

पुत्रपौत्रप्रजननं विवाहप्रदमिष्टदम् |
चोरारीहारी जपतमखिलेष्टिदायकम् || 3 ||

सावधानमना भूत्वा श्रुणु त्वं शुक सत्तम |
अनेकजन्मसंमृद्धिलभ्यं मुक्तिफलप्रदं || 4 ||

धनधान्यमहाराज्य-सर्वसौभाग्यकल्पकम् |
सकृत्स्मरणमात्रेण महालक्ष्मी: प्रसीदति || 5 ||

क्षीराब्धिमध्ये पद्मानां कानने मणिमण्टपे |
तन्मध्ये सुस्थिता: देवीं मनीषिजनों सेविताम् || 6 ||

सुस्नातां पुष्पसुरभिकुटिलाललकबन्धनां |
पूर्णेन्दुबिम्बवदनां-मर्धचन्द्रललाटिकाम् || 7 ||

इन्दीवराक्षणां कामकोडण्डभ्रुवमीश्वरिम् |
तिलप्रसवसंस्पर्धिनासिकालङ्कृतां श्रीम् || 8 ||

कुन्दकुटमलदन्तालिं बन्दूकाधरपल्लवाम् |
दर्पणाकारविमलकपोला द्वितयोज्ज्वलाम् || 9 ||

रत्नताटङ्ककलितकर्णद्वितायसुन्दराम् |
माङ्गल्याभरणोपेतां कंबुकण्ठीं जगत्प्रसूम् || 10 ||

तारहारिमनोहारिकुचकुम्भविभूषिताम् |
रत्नाङ्गदादिललितकरपद्मचतुष्टयाम् || 11 ||

कमले च सुपत्राढ्ये ह्यभयं दधतीं वरम् |
रोमराजिकलाचारुभुग्ननाभितलोदरीम् || 12 ||

पट्टवस्त्रसमुद्भासिसुनितम्बादिलक्षाणाम् |
कांचनस्तम्भविभ्राजद्वारजानूर्षोभिताम् || 13 ||

स्मरकाहलिकागरवहारिजंघां हरिप्रियाम् |
कमठीपृष्ठसदृशपादाब्जां चन्द्रसन्निभाम् || 14 ||

पङ्कजोदरलावण्यसुन्दराङ्घ्रितलां श्रीम् |
सर्वाभरणसंयुक्तां सर्वलक्ष्णलक्षिताम् || 15 ||

पितामहमहाप्रीतां नित्यातृप्तां हरिप्रियाम् |
नित्यं कारुण्यललितां कस्तूरीलेपिताङ्गिकाम् || 16 ||

सर्वमन्त्रमयां लक्ष्मीं श्रुतिशास्त्रस्वरूपिणीम् |
परब्रह्ममयां देवीं पद्मनाभकुटुम्बिनीम् |
एवं ध्यान्त्वा महालक्ष्मीं पठेत्तत्कवचं परम || 17 ||

ध्यानम्

एकं न्यञ्च्यानतिक्षमं ममपरं चाकुञ्च्यपादांबुजं
मध्ये विस्तरपुण्डरीकमभयं विन्यस्तहस्तांबुजम् |
त्वां पश्येम निषेदुषीमनुकलं कारुण्यकूलं कष-
स्पारापाङ्गतरण्गमं बाहु मधुरं मुग्धं मुखं बिभ्रतीम् || 18 ||

कवचम्

महालक्ष्मी: शिर: पातु ललाटं मम पङ्कजा |
कर्णे रक्षेढरामापातु नयनें नलिनालया || 19 ||

नासिकामवतादम्बा वाचं वाग्रूपिणी मम |
दन्तानवतु जिव्हां श्रीरधरोष्ठं हरिप्रिया || 20 ||

चुबुकं पातु वरदा गळं गन्धर्वसेविता |
वक्ष: कक्षिं करौ पायुं प्रष्ठमव्याद्रमा स्वयं || 21 ||

कटिमूर्द्वयं जानु जङ्घं पातु रामामम |
सर्वाङ्गमिन्द्रियं प्राणांपायादायासहारिणी || 22 ||

सप्तधातूनस्वयं चापि रक्तं शुक्रं मनो मम |
ज्ञानं बुद्धिं महोत्साहं सर्वं मे पातु पङ्कजा || 23 ||

मया कृतं च यत्किंचित्तत्सर्वं पातु सेन्दिरा |
ममायुरावतालक्ष्मी: भार्यां पुत्रांश्च पुत्रिका || 24 ||

मित्राणि पातु सततमखिलानि हरिप्रिया |
पातकं नाशयेल्लक्ष्मी: ममारिष्टं हरेद्रमा || 25 ||

ममारिनाशनार्थाय मायामृत्युम् जयेद्बलम् |
सर्वाभिष्टं तु मे दद्याट् पातु मां कमलालया || 26 ||

फलश्रुतिः

य इदं कवचं दिव्यं रामात्मा प्रयतः पठेत् |
सर्वसिद्धिमवाप्नोति सर्वरक्षां तु शाश्वतीम् || 27 ||

दीर्घायुष्मान्भवेन्नित्यं सर्वसौभाग्यकल्पकम् |
सर्वज्ञ: सर्वदर्शी च सुखदश्च सुखोज्जवलः || 28 ||

सु पुत्रो गोपति: श्रीमान् भविष्यति न संशयः |
तद्गृहे न भवेन्नब्राह्मणं दारिद्र्यदुरितादिकम् || 29 ||

नाग्निना दह्यते गृहम् न चोराद्यै: च पीड्यते |
भूतप्रेतपिशाचाद्य: संत्रस्तां यान्ति दूरत: || 30 ||

लिखित्वा स्थापयेन्मात्रे तत्र सिद्धिर्भवेद्ध्रुवम् |
नापमृत्युमवाप्नोति देहान्ते मुक्तिभाग्भवेत् || 31 ||

आयुष्यं पौष्टिकं मेध्यम् धान्यं दुःस्वप्ननाशनम् |
प्रजाकरं पवित्रं च दुर्भिक्षार्तिविनाशनम् || 32 ||

चित्तप्रसादजननं महामृत्युप्रशान्तिदम् |
महारोगज्वरहरं ब्रह्महत्यादिशोधनम् || 33 ||

महाधनप्रदं चैव पठितव्यं सुखार्थिभि: |
धनार्थी धनमाप्नोति विवाहार्थी लभेद्वधूम् || 34 ||

विद्यार्थी लभते विद्यां पुत्रार्थी गुणवत्सुतम् |
राज्यार्थी राज्यमाप्नोति सत्यमुक्तं मया शुका || 35 ||

एतद्धेव्याः प्रसादेण शुक: कवचमाप्तवान् |
कवचानुग्रहेणैव सर्वांकामानवाप स: || 36 ||

इति शुकं प्रति ब्रह्मप्रोक्त श्री लक्ष्मी कवचम् |

श्री महालक्ष्मी कवच के बारे में

महालक्ष्मी कवचम् एक शक्तिशाली संस्कृत स्तोत्र है जो देवी महालक्ष्मी को समर्पित है, जो हिंदू धर्म में धन, समृद्धि और सौभाग्य की देवी मानी जाती हैं। यह ब्रह्म पुराण जैसे शास्त्रों में पाया जाता है और देवी की कृपा पाने, धन-संपत्ति, सफलता, सुरक्षा और जीवन की बाधाओं को दूर करने के लिए इसका जाप किया जाता है।

अर्थ

यह कवच देवी महालक्ष्मी को सभी ऋण, दुःख और दरिद्रता को दूर करने वाली, और समृद्धि व सुख प्रदान करने वाली के रूप में बताता है। यह शरीर और मन की सुरक्षा के लिए उनकी दिव्य उपस्थिति का आह्वान करता है, और भक्त को धन, स्वास्थ्य और शुभता का आशीर्वाद देने की प्रार्थना करता है। इसका नियमित पाठ विजय, आध्यात्मिक विकास और शांति लाने वाला माना जाता है।

लाभ

  • ऋण, दरिद्रता और दुःख दूर करता है
  • धन, समृद्धि और सौभाग्य लाता है
  • शरीर और मन की नकारात्मक ऊर्जा से रक्षा करता है
  • आध्यात्मिक विकास और मानसिक शांति बढ़ाता है
  • विजय, आनंद और शुभता प्रदान करता है

महत्व

महालक्ष्मी कवचम् का जाप विशेष रूप से दिवाली और नवरात्रि जैसे त्योहारों के दौरान किया जाता है ताकि देवी लक्ष्मी की दिव्य कृपा प्राप्त हो सके और समग्र समृद्धि एवं कल्याण मिल सके। इसका जाप वातावरण को शुद्ध करने, बाधाओं को दूर करने और स्थायी शांति एवं सफलता लाने वाला माना जाता है।

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