केतु कवचम्
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ध्यानम्
धूम्रवर्णं ध्वजाकारं द्विभुजं वरदांगदम्
चित्राम्बरधराम् केतुम् चित्रगंधानुलेपनम् |
वैकुण्ठाभरणं चैव वैकुण्ठ मकटं फणिम्
चित्रं कफाधिकरसं मेरुं चैवप्रदक्षिणम् ||
केतुं करालवदनं चित्रवर्णं किरीटिनम् |
प्रणमामि सदा देवं ध्वजाकारं ग्रहेश्वरम् ||
कवचम्
चित्रवर्णः शिरः पातु फालं मे धूम्रवर्णकः |
पातु नेत्रे पिंगलाक्षः श्रुती मे रक्तलोचनः ||
घ्राणं पातु सुवर्णाभो द्विभुजं सिंहिकासुतः |
पातु कण्ठं च मे केतुः स्कन्धौ पातु ग्रहाधिपः ||
बाहू पातु सुरश्रेष्ठः कुक्सिं पातु महोरगः |
सिंहासनः कटिं पातु मध्यं पातु महासुरः ||
ऊरू पातु महासीरषो जानुनि च प्रोक्षणः |
पातु पादौ च मे रौद्रः सर्वाङ्गं रविमर्दकः ||
इदं च कवचं दिव्यं सर्वरोगविनाशनम् |
सर्वदुःखविनाशं च सत्यमेत्त्वन्नसंसयः ||
॥ इति पद्मपुराणे केतु कवचम् ॥
केतु कवचम् के बारे में
केतु कवचम् ब्रह्मांड पुराण में उल्लिखित एक पवित्र स्तोत्र है, जो वेदिक ज्योतिष में चंद्रग्रह नक्षत्रों में से एक छाया ग्रह केतु को समर्पित है। यह भक्तों को केतु के दुष्प्रभावों जैसे बाधाएँ, स्वास्थ्य समस्याएं, भय और नकारात्मक ऊर्जा से सुरक्षा प्रदान करता है।
अर्थ
यह स्तोत्र केतु को भयावह मुख वाला, बहुरंगी और ध्वज के समान सिर वाला वर्णित करता है। यह शरीर के विभिन्न भागों की रक्षा के लिए प्रार्थना करता है और केतु के नकारात्मक ग्रह प्रभावों से होने वाली पीड़ाओं को कम करने का उपाय बताता है। केतु कवचम का नियमित जाप भक्त को पापों से शुद्ध करता है और आध्यात्मिक सुख व राहत प्रदान करता है।
लाभ
- केतु के दुष्प्रभावों से सुरक्षा करता है
- बाधाएं, भय और नकारात्मक ऊर्जा दूर करता है
- स्वास्थ्य समस्याओं और रोगों से मुक्ति दिलाता है
- मन और आत्मा को पापों से शुद्ध करता है
- आध्यात्मिक सुख, शांति और मोक्ष प्रदान करता है
महत्व
केतु कवच का व्यापक रूप से जाप किया जाता है उन भक्तों द्वारा जो केतु दोष, स्वास्थ्य समस्याओं या केतु से संबंधित बाधाओं का सामना कर रहे हों। नियमित पाठ से दिव्य सुरक्षा मिलती है, नकारात्मक प्रभाव कम होते हैं, और आध्यात्मिक व भौतिक समृद्धि होती है।