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गणगौर उत्सव 2026

तारीख़: ४ – २१ मार्च २०२६

पूरी तारीख

४ मार्च २०२६ सुबह ६:०० बजे २१ मार्च २०२६ रात ११:५६ बजे

मुहूर्त समय भारत में

  • गणगौर पूजा (मुख्य दिन)

    मुख्य गणगौर पूजा 21 मार्च 2026 को की जाएगी, जो वैवाहिक सौभाग्य और वसंत ऋतु के आशीर्वाद का प्रतीक है।

    २१ मार्च २०२६ रात २:३० बजे २१ मार्च २०२६ रात ११:५६ बजे

  • जयपुर गणगौर शोभायात्रा

    जयपुर सिटी पैलेस से त्रिपोलिया बाजार और छोटी चौपड़ तक भगवान ईसर-गौरी की सजी हुई मूर्तियों, पालकियों और लोक कलाकारों की भव्य शोभायात्रा निकाली जाती है।

    २१ मार्च २०२६ शाम ४:०० बजे २१ मार्च २०२६ शाम ७:३० बजे

परिचय

गणगौर राजस्थान का प्रमुख पर्व है जो देवी पार्वती को समर्पित है। यह प्रेम, वैवाहिक निष्ठा और वसंत ऋतु के आगमन का प्रतीक है। 'गण' का अर्थ भगवान शिव और 'गौर' का अर्थ देवी पार्वती से है। महिलाएँ भगवान ईसर-गौरी की मिट्टी की मूर्तियों की पूजा कर गृहस्थ जीवन में सुख-समृद्धि की कामना करती हैं।

अन्य नाम

गौरी तृतीया, गौरी पूजा, ईसर गौरी पर्व

पूजा विधि

  • घर के आंगन या पूजा स्थल को रंगोली और फूलों से सजाएँ।
  • सजे हुए आसन पर ईसर-गौरी की मूर्तियाँ स्थापित करें।
  • प्रति दिन देवी को हल्दी, कुमकुम, मेहंदी, चूड़ियाँ, जल और मिठाई अर्पित करें।
  • शाम को गणगौर आरती और भजन गाएँ।
  • अंतिम दिन श्रद्धा के साथ गणगौर विसर्जन करें।

अनुष्ठान

  • महिलाएँ भगवान ईसर (शिव) और गौरी (पार्वती) की मिट्टी की मूर्तियाँ बनाकर 16–18 दिनों तक पूजा करती हैं।
  • विवाहित महिलाएँ पति की लंबी आयु के लिए प्रार्थना करती हैं और अविवाहित महिलाएँ अच्छे वर की कामना करती हैं।
  • प्रत्येक प्रातः महिलाएँ मेहंदी लगाती हैं, गीत गाती हैं और मूर्तियों को जल व मिठाई अर्पित करती हैं।
  • अंतिम दिन महिलाएँ सजाई हुई कलशों में मूर्तियाँ रखकर झील या कुएँ में विसर्जन करती हैं।
  • समुदायों में पारंपरिक संगीत, लोकनृत्य और रंगीन परिधानों के साथ शोभायात्राएँ निकाली जाती हैं।

क्षेत्रीय विशेषताएँ

  • जयपुर में सिटी पैलेस से टालकटोरा तक सजी हुई पालकी यात्रा निकाली जाती है।
  • उदयपुर में अंतिम दिन पिछोला झील में नौका यात्रा और आतिशबाजी होती है।
  • जोधपुर, बीकानेर और नाथद्वारा में महिलाएँ सिर पर पीतल के कलश रखकर गणगौर गीत गाती हैं।
  • मध्यप्रदेश और गुजरात में ‘गौरी पूजा’ व ‘चैत्र गौरी व्रत’ के रूप में यह पर्व मनाया जाता है।

इतिहास

पौराणिक मान्यता के अनुसार देवी पार्वती ने भगवान शिव को पति रूप में प्राप्त करने के लिए कठोर तपस्या की थी। विवाह पश्चात वह गणगौर के अवसर पर अपने मायके आती हैं और अपनी सखियों को वैवाहिक सौभाग्य का आशीर्वाद देती हैं। यही कारण है कि यह पर्व प्रेम, सौभाग्य और दांपत्य स्नेह का प्रतीक माना जाता है।

अतिरिक्त जानकारी

  • गणगौर स्त्री शक्ति, भक्ति और वैवाहिक निष्ठा का प्रतीक है।
  • यह पर्व प्रकृति, फसल और संबंधों के सामंजस्य को दर्शाता है।
  • राजस्थान का यह पर्व अपनी सांस्कृतिक सुंदरता के कारण विदेशी पर्यटकों के लिए आकर्षण का केंद्र है।
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