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भाई दूज २०२६ – भाई-बहन के पवित्र बंधन का पर्व

तारीख़: ११ नवंबर २०२६

पूरी तारीख

११ नवंबर २०२६ दोपहर लगभग १३:०९ से १५:१९ तक ११ नवंबर २०२६ शाम / दिनभर

मुहूर्त समय भारत में

  • तिलक समारोह एवं बहन का भोजन

    11 नवंबर २०२६ को दोपहर में तिलक मुहूर्त आएगा — बहनें अपने भाइयों को तिलक लगाती हैं, मिठाई खिलाती हैं और कई घरों में विशेष दोपहर-भोजन/दावत आयोजित की जाती है।

    ११ नवंबर २०२६ लगभग १३:०९ बजे ११ नवंबर २०२६ लगभग १५:१९ बजे

परिचय

भाई दूज कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को मनाया जाने वाला हर्षोल्लासपूर्ण हिन्दू त्योहार है। यह दिवाली उत्सव का समापन दर्शाता है और भाई-बहन के बीच स्थायी बंधन-सम्मान, सुरक्षा, आशीर्वाद, उपहार-वितरण एवं एकता पर केन्द्रित है।

अन्य नाम

भाऊ बीज, भैया दूज, भाई फोंटा, भाई द्वितीया

पूजा विधि

  • पूजा थाली तैयार करें जिसमें रोलि (सिंदूर), चावल (अक्षत), मिठाई, नारियल और फूलों की माला हो।
  • घर को साफ-सुथरा करें और दीये जलाएं; पारंपरिक साफ कपड़े पहनें।
  • भाई को नीचे कुर्सी या आसन पर बैठाएं, उनके चारों ओर चावल से रंगोली या सीट-वर्ग बनाएं।
  • बहन आरती करें, भाई के शिर पर तिलक लगाएं, यदि प्रथा हो तो पवित्र धागा बांधें।
  • मिठाई और फल अर्पित करें, बहन भाई को हाथों-हाथ खिलाती है; इसके बाद भाई बहन को उपहार या नकद देता है।
  • परिवारिक प्रार्थना, मिठाइयां-वितरण व हर्षोल्लास के साथ अंत करें।

अनुष्ठान

  • बहनें अपने भाइयों को घर आमंत्रित करती हैं, आरती करती हैं, तिलक (रोलि और चावल) लगाती हैं और उनकी लंबी आयु के लिए प्रार्थना करती हैं।
  • भाई अपनी बहनों को उपहार (नकद, मिठाई, वस्त्र) देते हैं, प्रेम व कृतज्ञता के प्रतीक स्वरूप।
  • खास दावत तैयार की जाती है; कुछ क्षेत्रों में बहनें अपने भाइयों को हाथों-हाथ खिलाती हैं।
  • परिवार के सदस्य एकत्र होते हैं और दिवाली की रोशनी एवं दीप समारोह के बाद उत्सव मनाते हैं।
  • कुछ क्षेत्रों में, यदि भाई दूर हों या नहीं हों, तो बहन चंद्रदेव को आरती करती हैं।

क्षेत्रीय विशेषताएँ

  • महाराष्ट्र व गुजरात में इस त्योहार को भाऊ बीज कहा जाता है और यहां खास व्यंजन जैसे बेसुंदी-पूरी बनाए जाते हैं।
  • बंगाल में इसे भाई फोंटा कहकर मनाया जाता है जहाँ चंदन-पेस्ट से ‘फोंटा’ लगाई जाती है और भव्य पारिवारिक दावत होती है।
  • नेपाल में इसका समकक्ष भाई टीका है जो तिहार के अंत में मनाया जाता है, बहनें बहनों को बहनों को नहीं बल्कि भ-भाईयों को सप्तरंगी तिलक लगाती हैं।
  • उत्तर भारत में यह दिन दिवाली उत्सव के ठीक बाद आता है और भाई-बहन के बंधन उत्सव का समापन माना जाता है।

इतिहास

पौराणिक कथाओं के अनुसार, एक प्रचलित कथा कहती है कि यमदेव अपने बहन यमुना के यहाँ इस दिन आए और उन्होंने उन्हें तिलक, मिठाई व भोजन से सम्मानित किया। इसके उत्तर में यमदेव ने प्रतिज्ञा की कि जो भाई इस दिन बहन का तिलक प्राप्त करेगा, उसकी लंबी आयु होगी। दूसरी कथा कहती है कि कृष्ण ने नरकासुर का वध करने के बाद अपनी बहन सुभद्रा के पास गए, जिन्हें उन्होंने इसी प्रकार स्वागत किया, जो इस त्यौहार की उत्पत्ति का भाग है। :contentReference[oaicite:7]{index=7}

अतिरिक्त जानकारी

  • हालाँकि यह रक्षाबंधन जैसा ही है, पर भाई दूज में बहन की आतिथ्य-भावना और भाई की सुरक्षा-प्रतिज्ञा अधिक प्रमुख होती है बजाय राखी बाँधने के।
  • भाई की ललाट पर लगाया गया तिलक सुरक्षा व आशीर्वाद का प्रतीक है; कुछ क्षेत्रों में यदि भाई दूर हों तो बहन चंद्रदेव को आरती करती है।
  • कुछ राज्यों में भाई दूज एक विकल्प-छुट्टी (restricted holiday) है, पूर्ण सार्वजनिक अवकाश नहीं होता।
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