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आदिनाथ भगवान की आरती

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आरती उतारूँ आदिनाथ भगवान की,
माता मरुदेवी पिता नाभिराय लाल की।

रोम रोम पुलकित होता देख मूरत आपकी,
आरती हो बाबा, आरती हो।

प्रभुजी हम सब उतारें थारी आरती,
तुम धर्म धुरंधर धारी,
तुम ऋषभ प्रभु अवतारी।

तुम तीन लोक के स्वामी,
तुम गुण अनंत सुखकारी,
इस युग के प्रथम विधाता,
तुम मोक्ष मर्म के दाता।

जो शरण तुम्हारी आता,
वो भव सागर तिर जाता,
हे, नाम हे हजारों ही गुण गान की।

तुम ज्ञान की ज्योति जमाए,
तुम शिव मारग बतलाए,
तुम आठों करम नशाए,
तुम सिद्ध परम पद पाए।

मैं मंगल दीप सजाऊँ,
मैं जगमग ज्योति जलाऊँ,
मैं तुम चरणों में आऊँ,
मैं भक्ति में रम जाऊँ।

हे झूम झूम झूम नाचूँ करूँ आरती,
आरती उतारूँ आदिनाथ भगवान की।

आदिनाथ भगवान की आरती के बारे में

यह आरती भगवान आदिनाथ, जैन धर्म के प्रथम तीर्थंकर, की महिमा और तपस्या का स्मरण कराती है। इसमें उनकी आध्यात्मिक शुद्धता और मोक्ष प्राप्ति की प्रेरणा है।

अर्थ

आरती में आदिनाथ भगवान की दिव्यता और उनके द्वारा स्थापित धर्म का विस्तृत वर्णन है। यह आत्मा की शुद्धि का मार्ग बताती है।

लाभ

  • आध्यात्मिक शुद्धि और मानसिक शांति
  • सत्य और करुणा का पालन
  • जैविक और आध्यात्मिक बाधाओं से मुक्ति
  • मुक्ति की प्राप्ति

महत्व

आदिनाथ भगवान की आरती जैन धार्मिक अनुष्ठानों का अभिन्न हिस्सा है, विशेषकर तirthankara पूजा के दौरान।

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