सन मेरी देवी पर्वत वासिनी
सन मेरी देवी पर्वत वासिनी ।
कोई तेरा पार न पाया ॥
पान सुपारी ध्वजा नारियल ।
ले तेरी भेंट चढ़ाया ॥
॥ सन मेरी देवी पर्वत वासिनी...॥
सु्वा चोली तेरी अंग विराजे ।
केसर तिलक लगाया ॥
॥ सन मेरी देवी पर्वत वासिनी...॥
नंगे पाँव माँ अकबर आया ।
सोने का छत्र चढ़ाया ॥
॥ सन मेरी देवी पर्वत वासिनी...॥
ऊँचे पर्वत बन्यो देवालय ।
नीचे शहर बसाया ॥
॥ सन मेरी देवी पर्वत वासिनी...॥
सतयुग, द्वापर, त्रेता मध्य ।
कलियुग राज सवाया ॥
॥ सन मेरी देवी पर्वत वासिनी...॥
धूप दीप नैवेद्य आरती ।
मोहन भोग लगाया ॥
॥ सन मेरी देवी पर्वत वासिनी...॥
ध्यानु भक्त मइया तेरे गुण गाया ।
मनवांछित फल पाया ॥
सन मेरी देवी पर्वत वासिनी ।
कोई तेरा पार न पाया ॥
सन मेरी देवी पर्वत वासिनी के बारे में
सुन मेरी देवी पर्वतवासिनी एक भक्तिपूर्ण स्तुति है, जो पर्वतों में निवास करने वाली विन्ध्येश्वरी माता को समर्पित है। यह स्तुति उनकी दिव्य सुंदरता, शक्ति और भक्तों पर की कृपा का गुणगान करती है।
अर्थ
यह स्तुति देवी को पर्वतवासिनी के रूप में महिमा देती है, जो श्वेत वस्त्रों से सज्जित और चंद्राकार तिलकधारी हैं। यह उनके प्राचीन युगों से वर्तमान तक के कार्य, संरक्षण और ध्यान करने वालों को मिलने वाली कृपा को दर्शाती है।
लाभ
- दिव्य सुरक्षा और आंतरिक शक्ति प्रदान करती है
- शांति और आध्यात्मिक पूर्ति देती है
- भक्तों को समृद्धि और सुख-शांति का आशीर्वाद देती है
- विघ्नों को हटाती है और मनोकामनाएँ पूरी करती है
महत्व
सुन मेरी देवी पर्वतवासिनी का पारंपरिक रूप से नवरात्रि और अन्य शुभ अवसरों पर गायन किया जाता है ताकि माँ की कृपा, सुरक्षा, समृद्धि और आध्यात्मिक विकास प्राप्त हो सके।