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शिव स्तुति: ओम् वन्दे देव उमापतिन सुरगुरु

ॐ वन्दे देव उमा पति सुरगुरुं,
वन्दे जगत्कर्णम् ।
वन्दे पन्नगभूषण मृगधर,
वन्दे पशोना पथिम् ॥

वन्दे सूर्य शशांक वह्नि नयन,
वन्दे मुकुंदप्रियम् ।
वन्दे भक्त जन-आश्रय च वरदाम,
वन्दे शिव-शंकरम् ॥

शिव स्तुति: ओम् वन्दे देव उमापतिन सुरगुरु के बारे में

ॐ वन्दे देव उमापतिं सुरगुरुं एक प्रसिद्ध संस्कृत स्तुति है, जो भगवान शिव को समर्पित है, जो देवी उमा (पार्वती) के पति और परम ब्रह्मांडीय गुरु हैं। यह स्तुति उनकी सृष्टि, संरक्षण और आध्यात्मिक ज्ञान के स्वरूप की भक्ति है।

अर्थ

यह स्तुति शिवजी की महिमा करती है जो सृष्टि के कारण हैं, नागों से अलंकृत, पशुओं के स्वामी, सूर्य, चंद्रमा एवं अग्नि समान नेत्रों वाले और विष्णु के प्रिय हैं। यह भक्तों के आश्रयदाता और वरदान देने वाले के रूप में उनकी भूमिकाओं को दर्शाती है।

लाभ

  • आध्यात्मिक ज्ञान और विवेक प्रदान करता है
  • सुरक्षा देता है और भय दूर करता है
  • वरदान और इच्छाओं की पूर्ति करता है
  • सामंजस्य और आंतरिक शांति बढ़ाता है

महत्व

इस स्तुति का जप भगवान शिव की दिव्य ऊर्जा से गहरा संबंध स्थापित करता है, जो आध्यात्मिक साधनाओं में मार्गदर्शन, संरक्षण और कृपा के लिए एक शक्तिशाली आवाहन है।

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