विंध्येश्वरी स्तोत्रम्
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निशुम्भ शुम्भ गर्जनी,
प्रचण्ड मुण्ड खण्डिनी ।
बनेरने प्रकाशिनी,
भजामि विंध्यवासिनी ॥
त्रिशूल मुण्ड धारिणी,
धरा विघट हरिणी ।
गृहे-गृहे निवासिनी
भजामि विंध्यवासिनी ॥
दारिद्र दुःख हरिणी,
सदा विभूति करिणी ।
वियोग शोक हरिणी,
भजामि विंध्यवासिनी ॥
लसत्सुलोल लोचनम्,
लत्ससन् वर्षपर्धन ।
कपाल-शूल धारिणी,
भजामि विंध्यवासिनी ॥
करब्जदनदधरन्,
शिवशिवन् प्रदायिनी ।
वर-वरनन् शुभम्,
भजामि विंध्यवासिनी ॥
कपिन्दं जमिनिप्रदान,
त्रिधा स्वरूप धारिणी ।
जले-थले निवासिनी,
भजामि विंध्यवासिनी ॥
विशिष्ट शिष्ट करिणी,
विशाल रूप धारिणी ।
महोदरे विलसिनी,
भजामि विंध्यवासिनी ॥
पुनरादरादि सेवितान्,
पुरादिवंशखण्डितम् ।
विशुद्ध बुद्धिकारिणिन्,
भजामि विंध्यवासिनिन् ॥
विंध्येश्वरी स्तोत्रम् के बारे में
विन्ध्येश्वरी स्तोत्र देवी विन्ध्येश्वरी को समर्पित एक पूजनीय स्तोत्र है, जो मुख्य रूप से विन्ध्य पर्वत क्षेत्र में अराध्य देवी दुर्गा का अवतार है। यह स्तोत्र देवी के कट्टर और माता जैसे गुणों का गुणगान करता है जो राक्षसों का विनाश करती हैं और अपने भक्तों की रक्षा करती हैं।
अर्थ
यह स्तोत्र देवी विन्ध्येश्वरी का वर्णन करता है जो राक्षस शुम्भ और निशुम्भ का संहार करती हैं, त्रिशूल और खोपड़ी धारण करती हैं, गरीबी और दुःख को दूर करती हैं, तथा हर घर में आशीर्वाद और सुरक्षा प्रदान करती हैं। यह उनके तेजस्वी नेत्रों, वीर स्वभाव और शांति, समृद्धि और आध्यात्मिक शक्ति प्रदान करने की क्षमता को दर्शाता है।
लाभ
- दुःख और गरीबी को दूर करता है
- सुरक्षा और साहस प्रदान करता है
- शांति, समृद्धि और सुख लाता है
- आध्यात्मिक विकास और सहनशीलता को बढ़ाता है
- नकारात्मकता और भय को दूर करता है
महत्व
विन्ध्येश्वरी स्तोत्र का जाप देवी विन्ध्येश्वरी की कृपा प्राप्ति के लिए किया जाता है ताकि चुनौतियों को पार किया जा सके, बाधाएं दूर हों, और आध्यात्मिक एवं भौतिक कल्याण प्राप्त हो सके। इसका पाठ विशेष रूप से कठिन समय में सांत्वना, आंतरिक शक्ति और दिव्य सुरक्षा प्रदान करता है।