वीरविंशति काव्यं हनुमान स्तोत्रम्
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लांगूलमृष्टवियदम्बुधिमध्यमार्ग- मुत्प्लुत्य यान्तममरेन्द्रमुदो निदानम् ।
आस्फालितस्वकभुजस्फुटिताद्रिकाण्डं द्राङ्मैथिलीनयननन्दनमद्य वन्दे ॥ १ ॥
मध्येनिशाचरमहाभयदुर्विषह्यं घोराद्भुतव्रतमिदं यददश्चचार ।
पत्ये तदस्य बहुधापरिणामदूतं सीतापुरस्कृततनुं हनुमन्तमीडे ॥ २ ॥
यः पादपङ्कजयुगं रघुनाथपत्न्या नैराश्यरूषितविरक्तमपि स्वरागैः ।
प्रागेव रागि विदधे बहु वन्दमानो वन्देऽञ्जनाजनुषमेव विशेषतुष्ट्यै ॥ ३ ॥
ताञ्जानकीविरहवेदनहेतुभूतान् द्रागाकलय्य सदशोकवनीयवृक्षान् ।
लङ्कालकानिव घनानुदपाटयद्य-स्तं हेमसुन्दरकपिं प्रणमामि पुष्ट्यै ॥ ४ ॥
घोषप्रतिध्वनितशैलगुहासहस्र-संभ्रान्तनादितवलन्मृगनाथयूथम् ।
अक्षक्षयक्षणविलक्षितराक्षसेन्द्र-मिन्द्रं कपीन्द्रपृतनावलयस्य वन्दे ॥ ५ ॥
हेलाविलङ्घितमहार्णवमप्यमन्दं घूर्णद्गदाविहतिविक्षतराक्षसेषु ।
स्वम्मोदवारिधिमपारमिवेक्षमाणं वन्देऽहमक्षयकुमारकमारकेशम् ॥ ६ ॥
जम्भारिजित्प्रसभलम्बितपाशबन्धं ब्रह्मानुरोधमिव तत्क्षणमुद्वहन्तम् ।
रौद्रावतारमपि रावणदीर्घदृष्टि-सङ्कोचकारणमुदारहरिं भजामि ॥ ७ ॥
दर्पोन्नमन्निशिचरेश्वरमूर्धचञ्च-त्कोटीरचुम्बि निजबिम्बमुदीक्ष्य हृष्टम् ।
पश्यन्तमात्मभुजयन्त्रणपिष्यमाण-तत्कायशोणितनिपातमपेक्षि वक्षः ॥ ८ ॥
अक्षप्रभृत्यमरविक्रमवीरनाश-क्रोधादिव द्रुतमुदञ्चितचन्द्रहासाम् ।
निद्रापिताभ्रघनगर्जनघोरघोषैः संस्थम्भयन्तमभिनौमि दशास्यमूर्तिम् ॥ ९ ॥
आशंस्यमानविजयं रघुनाथधाम शंसन्तमात्मकृतभूरिपराक्रमेण ।
दौत्ये समागमसमन्वयमादिशन्तं वन्दे हरेः क्षितिभृतः पृतनाप्रधानम् ॥ १० ॥
यस्यौचितीं समुपदिष्टवतोऽधिपुच्छं दम्भान्धितां धियमपेक्ष्य विवर्धमानः ।
नक्तञ्चराधिपतिरोषहिरण्यरेता लङ्कां दिधक्षुरपतत्तमहं वृणोमि ॥ ११ ॥
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वीरविंशति काव्यं हनुमान स्तोत्रम् के बारे में
वीरविंशतिकाव्यं हनुमान स्तोत्र एक शक्तिशाली काव्यात्मक स्तोत्र है जिसमें बीस छंद होते हैं जो भगवान हनुमान के वीर कार्यों, दिव्य गुणों और सद्गुणों का गुणगान करते हैं। यह वीर स्तुति राम भक्त हनुमान की शक्ति, साहस, बुद्धि और अटल भक्ति का सुंदर चित्रण करता है।
अर्थ
यह स्तोत्र हनुमान के विभिन्न रूपों का वर्णन करता है, जैसे उनकी वायु समान अपार शक्ति, इंद्रियों पर नियंत्रण, बुराई का नाश, भगवान राम के दूत के रूप में उनकी भूमिका, और भक्तों के रक्षक तथा मार्गदर्शक के रूप में प्रभाव। यह लंका दहन, लक्ष्मण की रक्षा और युद्धों में उनकी अडिग साहस की प्रशंसा करता है।
लाभ
- रक्षा और दिव्य आशीर्वाद प्राप्त करता है
- साहस, शक्ति और धैर्य को प्रेरित करता है
- बाधाओं और नकारात्मकताओं को दूर करता है
- भक्ति और मानसिक स्पष्टता बढ़ाता है
- व्यक्तिगत और आध्यात्मिक प्रयासों में सफलता प्रदान करता है
महत्व
वीरविंशतिकाव्यं हनुमान स्तोत्र का जाप भक्तों द्वारा किया जाता है जो हनुमान के गुणों को आत्मसात करना चाहते हैं और अपने जीवन में शक्ति तथा सुरक्षा प्राप्त करना चाहते हैं। यह विशेष रूप से हनुमान जयंती और अन्य भक्ति अवसरों पर पूजनीय है, जो आध्यात्मिक विकास और सहनशीलता को बढ़ावा देता है।