सिद्ध कुंजिका स्तोत्रम्
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॥ दुर्गा सप्तशती: सिद्धकुंजिकास्तोत्रम् ॥
शिव उवाच:
श्रुणु देवि प्रवक्ष्यामि, कुंजिकास्तोत्रमुत्तमम् ।
येन मन्त्र प्रबन्ध चण्डिजप: शुभो भवेत् ॥
न कवचन नर्गलस्तोत्रं किलकं न रहस्यकम् ।
न सूक्तं नापि ध्यानं च न न्यासो न च वर्चनम् ॥
कुंजिकापठमात्रेण दुर्गापठफलं लभेत् ।
अति गुह्यतरं देवि देवानामपि दुर्लभम् ॥
गोपनीयम् प्रयत्नेन स्वयं योनिरिव पार्वति ।
मरणं मोहनं व्यस्तम्भोचनथादिकम् ।
पठमात्रेण संस्किध्येत्कुंजिकास्तोत्रमुत्तमम् ॥
॥ अथ मन्त्रः ॥
ॐ ऐं ह्रीं क्लींचामुण्डायै विच्चे ॥
ॐ ग्लौं हूं क्लीं जूं सः ज्वलयज्वलय ज्वल ज्वल प्रज्वल प्रज्वल
ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे ज्वलाहं सं लं क्षं फट् स्वाहा ॥
॥ इति मन्त्रः ॥
नमस्ते रुद्ररूपिण्यै नमस्ते मधुमर्दिनि ।
नमः कैटभहारिण्यै नमस्ते महिषार्दिनि ॥
नमस्ते शुम्भहन्त्री च निशुम्भासुरघातिनि ।
जाग्रतं हि महादेवि जपं सिद्धं कुरुष्व मे ॥
ऐंकारी सृष्टिरूपायै ह्रींकारी प्रतिपालिका ।
क्लींकारी कामरूपिण्यै बीजरूपे नमोस्तु ते ॥
चामुण्डा चण्डघाटी च यैकारी वरदायिनी ।
विच्चे चाभयदा नित्यं नमस्ते मन्त्ररूपिणि ॥
धन धिन धूं धूर्जटेः पत्नी वन विन वूं वागधीश्वरी ।
क्रं क्रिं क्रूं कालिका देवी शं शिं शूं मे शुभं कुरु ॥
हूं हूं हूंकाररूपिण्यै जन जन जन जंभनादिनी ।
भ्रं भ्रिं भ्रूं भैरवी भद्रे भवान्यै ते नमो नमः ॥
अन कन चन तन तन पन यन शं विन दून ऐं विन हं क्षं ।
धिजाग्रं धिजाग्रं त्रोतय त्रोतय दीप्तं कुरु कुरु स्वाहा ॥
पं पिं पूं पार्वति पूर्ण खं खिं खूण खेचरी तथा ।
सं सिन् सून सप्तशती देव्या मन्त्रसिद्धिं कुरुष्व मे ॥
इदं तु कुंजिकास्तोत्रं मन्त्रजागर्तिहेतवे ।
अभक्ते नैव दातव्यं गोपितं रक्ष पार्वति ॥
यस्तु कुंजिकया देव्या हीनां सप्तशती पठेत् ।
न तस्य जायते सिद्धिररण्ये रोदनं यथा ॥
इति श्रीरुद्रयामले गौरीतन्त्रे शिवपार्वतीसंवादे कुंजिकास्तोत्रं सम्पूर्णम् ॥
सिद्ध कुंजिका स्तोत्रम् के बारे में
सिद्ध कुंजिका स्तोत्र देवी दुर्गा को समर्पित एक शक्तिशाली और रहस्यमय स्तोत्र है, जो विशेष रूप से देवी सिद्धिदात्रि के रूप में पूजा जाता है। इसे रुद्र-यमला तंत्र का एक महत्वपूर्ण तांत्रिक स्तोत्र माना जाता है जो दुर्गा सप्तशती का सार प्रस्तुत करता है। सिद्ध का अर्थ पूर्णता और कुंजिका का अर्थ रहस्य या कुंजी है, जो इस स्तोत्र को दिव्य आशीर्वाद और आध्यात्मिक शक्तियों को खोलने वाली कुंजी बनाता है।
अर्थ
यह स्तोत्र बीज मंत्रों से बना है और देवी सिद्धिदात्रि की स्तुति करता है, जो सभी आध्यात्मिक सिद्धियों की देवी हैं। प्रत्येक अक्षर देवी के विभिन्न पहलुओं से जुड़ी दिव्य ऊर्जा का संचार करता है। यह स्तोत्र उनकी ऊर्जा को बुलाने के लिए है जो बाधाओं को दूर करे, आध्यात्मिक सफलता, स्वास्थ्य, समृद्धि और नकारात्मक प्रभावों से सुरक्षा दे।
लाभ
- आध्यात्मिक सिद्धियाँ और दिव्य आशीर्वाद प्रदान करता है
- बाधाओं और नकारात्मकताओं को दूर करता है
- स्वास्थ्य, धन और समृद्धि लाता है
- दुष्ट शक्तियों और काल कलाओं से सुरक्षा करता है
- मानसिक शक्ति, आत्मविश्वास और स्पष्टता बढ़ाता है
महत्व
सिद्ध कुंजिका स्तोत्र को एक महान तांत्रिक स्तोत्र माना जाता है जिसमें गहरा आध्यात्मिक बल होता है, जो योग्य गुरु के मार्गदर्शन में गंभीर साधकों के लिए उपयुक्त है। इसे पारंपरिक रूप से नवरात्रि की रातों और अन्य शुभ अवसरों पर देवी सिद्धिदात्रि के शक्तिशाली आशीर्वाद के लिए पढ़ा जाता है। इस स्तोत्र से बुरी कर्म जलती है, भावनात्मक अवरोध दूर होते हैं और समग्र आध्यात्मिक विकास होता है।