श्री स्वर्णाकर्षण भैरव स्तोत्रम्
ॐ अस्य स्वर्णाकर्षण भैरव स्तोत्र महा मन्त्रस्य ब्रह्म ऋषिः अनुष्टुप् छन्दः श्री स्वर्णाकर्षण भैरवो देवता ह्रीं बीजं क्लीं शक्तिः स कीलकं मम दरिद्र्य नाशार्थे पाते विनियोगः
ऋषिन्यासः
ब्रह्मऋष्ये नाम शीर्षे |
अनुष्टुप् छन्दसे नाम मुखे |
स्वर्णाकर्षण भैरवाय नाम हृदि |
ह्रीं बीजाय नाम गुह्ये |
क्लीं शक्तये नाम पादयो |
स कीलकाय नाम नाभौ |
विनियोगाय नाम सर्वाङ्गे |
ह्रां ह्रीं ह्रूम् इति कर षडाङ्ग न्यासः |
ध्यानम्
पारिजात वृक्ष कण्ठारे स्थिते मणिख्य मण्डपे ,
सिंहासन गतं वन्द्यं भैरवं स्वर्ण धायकम्,
गंगेय पात्रं डमरुं , त्रिशूलं वरं कर संधतं त्रिनेत्रं,
देव्ययुतं तप्त स्वर्ण वर्णं स्वर्णाकर्षण भैरवं आश्रयामि
मन्त्र
ॐ ईं श्रीं ईं श्रीं आपद उद्धारणाय ह्रां , ह्रीं, ह्रूम् अजमल वध्याय , लोकेश्वराय , स्वर्णाकर्षण भैरवाय, मम दरिद्र्य विद्वेशनाय , महाभैरवाय नाम श्रीं, ह्रीं ईं।
स्तोत्र
ॐ नमःस्थे भैरवाय ब्रह्म विष्णु शिवात्मने |
नम त्रिलोक्य वन्ध्याय वरदाय वरात्मने ॥ १ ॥
रत्नसिंहासनस्थाय दिव्याभरण शोभिने |
दिव्यमाल्य विभूषाय नमःस्थे दिव्य मूर्तये ॥ २ ॥
नमस्ते अनेका हस्ताय अनेक शीर्षे नमः |
नमस्ते अनेक नेत्राय अनेक विभवे नमः ॥ ३ ॥
नमस्ते अनेक कन्दाय अनेक मस्य ते नमः |
नमस्ते अनेक पार्श्वाय नमःस्थे दिव्य तेजसे ॥ ४ ॥
अनेकयुध युक्ताय अनेक सुरसेविने |
अनेक गुणयुक्ताय महादेवाय ते नमः ॥ ५ ॥
नमो दरिद्र कालाय महा सम्पत्प्रदायिने |
श्री भैरवी संयुक्ताय त्रिलोकस्य ते नमः ॥ ६ ॥
दिगम्बर नमःस्थुभ्यं दिव्यांगाय नमो नमः |
नमोऽस्थु दैत्य कालाय पाप कालाय ते नमः ॥ ७ ॥
सर्वज्ञ नमःस्थुभ्यं नमःस्थे दिव्य चक्षुषे |
अजिताय नमःस्थुभ्यं जितमित्राय ते नमः ॥ ८ ॥
नमस्ते रुद्र रूपाय महावीराय ते नमः |
नमोऽस्थवनं वीराय महाघोराय ते नमः ॥ ९ ॥
नमस्ते घोराघोराय विश्वघोराय ते नमः |
नम उग्राय संथाय भक्तानां संथ धायिने ॥ १० ॥
गुरवे सर्व लोकानाम् नमः प्रणव रूपिणे |
नमस्ते वाग्भवाख्याय दीर्घ कामाय ते नमः ॥ ११ ॥
नमस्ते कामराजाय योषित कामाय ते नमः |
दीर्घ मया स्वरूपाय महामयाय ते नमः ॥ १२ ॥
सृष्टि मय स्वरूपाय निसर्ग समयाय ते |
सुर लोक सुपूज्याय आपद उद्धारणाय च ॥ १३ ॥
नमो नमः भैरवाय महा दरिद्र नाशिने |
उन्मूलने कर्मताय अलक्ष्याय सर्वदा नमः ॥ १४ ॥
नमो अजमल वध्याय नमो लोकेश्वराय ते |
स्वर्णाकर्षण शीलाय भैरवाय नमो नमः ॥ १५ ॥
मम दरिद्र विद्वेशनाय लक्ष्याय ते नमः |
नम लोक त्रयेसाय स्वानन्द निहिताय ते ॥ १६ ॥
नमः श्री बीज रूपाय सर्व काम प्रदायिने |
नमो महा भैरवाय श्री व भैरव नमो नमः ॥ १७ ॥
धनाध्यक्षाय नमःस्थुभ्यं सरण्याय ते नमः |
नमः प्रसन्न आधिदेवाय ते नमः ॥ १८ ॥
नमथे मन्त्र रूपाय नमहत्थे मन्त्र रूपिने |
नमस्ते स्वर्ण रूपाय सुवर्णाय नमो नमः ॥ १९ ॥
नमः सुवर्ण वर्णाय महा पुण्याय ते नमः |
नमः शुद्धाय बुधाय नमः संसार तरिणे ॥ २० ॥
नमो देवाय गुह्याय प्रचालय नमो नमः |
नमस्ते बल रूपाय पारेषां बल नाशिने ॥ २१ ॥
नमस्ते स्वर्ण संस्थाय नमो भूताल वासिने |
नमः पाताल वासाय अनाधाराय ते नमः ॥ २२ ॥
नमो नमःस्थे संथाय अनन्थाय ते नमो नमः |
द्विबुजाय नमःस्थुभ्यं भुज त्रय सुषोभिने ॥ २३ ॥
नमनमधि सिद्धाय स्वर्ण हस्तात्य ते नमः |
पूर्ण चन्द्र प्रतीकस वदनांबोज शोभिने ॥ २४ ॥
नमोऽस्थेषु स्वरूपाय स्वर्णालंकार शोभिने |
नमः स्वर्णाकर्षणाय स्वर्णभय नमो नमः ॥ २५ ॥
नमस्ते स्वर्ण कांताय स्वर्णभ आम्बर धारिणे |
स्वर्ण सिंहासनस्थाय स्वर्ण पदाय ते नमः ॥ २६ ॥
नमो स्वर्णाभ पदाय स्वर्ण कांची सुषोभिने |
नमस्ते स्वर्ण जंगाय भक्त कामदुधात्मने ॥ २७ ॥
नमस्ते स्वर्ण भक्ताय कल्प वृक्ष स्वरूपिणे |
चिन्तामणि स्वरूपाय नमो ब्रह्मधी सेविने ॥ २८ ॥
कल्प द्रुमध्ये संस्थाय बहु स्वर्ण प्रदायिने |
नमो हेमाकर्षणाय भैरवाय नमो नमः ॥ २९ ॥
स्थवेनानेन सन्तुष्टो भवलोकस भैरव |
पश्य माम् करुणा दृष्ट्या शरणागत वात्सल ॥ ३० ॥
श्री महाभैरवस्य इदं स्तोत्र मुक्तं दुर्लभम् |
मन्त्रात्मकं महा पुण्यं सर्वैश्वर्य प्रदायकम् ॥ ३१ ॥
य पदेन नित्यं येकाग्रम् पठकै प्रमुच्यते |
लभते महत्तिं लक्ष्मीं अष्टैश्वर्यं अप्नोति ॥ ३२ ॥
चिन्तामणिं अवध्नोति धेनु कल्पतरुं द्रुवम् |
स्वर्ण रसिं अवध्नोति शीघ्रमेव न संशयः ॥ ३३ ॥
त्रि संध्यम् य पदेत् स्तोत्रं दशवृत्त्य नरोत्म |
स्वप्ने श्री भैरव तस्य साक्षात् भूत्वा जगद्गुरु ॥ ३४ ॥
स्वर्ण रशि ददात् तस्यै तथा क्षणं नात्र संशयः |
अष्टवृत्त्य पदेत यस्तु संध्याय्यम् वा नरोत्म ॥ ३५ ॥
लभते सकलान् कामान् सप्तहान् न संशयः |
सर्वधा य पदेत् स्तोत्रं भैरवस्य महात्मनः ॥ ३६ ॥
लोकत्रयं वशीकुर्यात् अचलां लक्ष्मीं अवाप्नुयात् |
न भयम् विद्यते क्वापि विषभूतादि सम्भवम् ॥ ३७ ॥
म्रियते शत्रवः तस्य अलक्ष्मी नाशम् आप्नुयात् |
अक्षयं लभते सौख्यं सर्वदा मनवोऽतम ॥ ३८ ॥
अष्ट पञ्चत वर्णाद्यो मन्त्र राज प्रकीर्तिः |
दरिद्र दुःख समाना स्वर्णाकर्षण कारकः ॥ ३९ ॥
य येन संचयेत धीमान् स्तोत्रं प्रपदेत्त सदा |
महा भैरव सयुज्यं स अनन्त काले लभेत् द्रुवम् ॥ ४० ॥
इति श्री स्वर्णाकार्षण भैरव स्तोत्रं सम्पूर्णम् ॥