श्री संकट नाशन गणेश स्तोत्र
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प्रणम्य शिरसा देवं गौरीपुत्रं विनायकम् ।
भक्तावासं स्मरेन्नित्यं आयुःकामार्थसिद्धये ॥
प्रथमं वक्रतुण्डं च एकदंतं द्वितीयकम् ।
तृतीयं कृष्णपिङ्गाक्षं गजवक्त्रं चतुर्थकम् ॥
लंबोदरं पञ्चमं च षष्ठं विकटमेव च ।
सप्तमं विघ्नराजं च धूम्रवर्णं तथाष्टकम् ॥
नवमं भालचंद्रं च दशमं तु विनायकम् ।
एकादशं गणपतिं द्वादशं तु गजाननम् ॥
द्वादशैतानि नामानि त्रिसन्ध्यं यः पठेन्नरः ।
न च विघ्नभयं तस्य सर्वसिद्धिकरं प्रभो ॥
विद्यार्थी लभते विद्यां धनार्थी लभते धनम् ।
पुत्रार्थी लभते पुत्रान् मोक्षार्थी लभते गतिम् ॥
जपेद् गणपति स्तोत्रं षड्भिर्मासैः फलं लभेत् ।
संवत्सरेण सिद्धिं च लभते नात्र संशयः ॥
अष्टभ्यो ब्राह्मणेभ्यश्च लिखित्वा यः समर्पयेत् ।
तस्य विद्या भवेत्सर्वा गणेशस्य प्रसादतः ॥
॥ इति श्रीनारदपुराणे संकटनाशनं श्रीगणेशस्तोत्रं सम्पूर्णम् ॥
श्री संकट नाशन गणेश स्तोत्र के बारे में
श्री संकट नाशन गणेश स्तोत्र नारद पुराण से लिया गया एक शक्तिशाली स्तोत्र है जो भगवान गणेश को समर्पित है, जिन्हें बाधाओं को दूर करने वाला माना जाता है। इस स्तोत्र में भगवान गणेश के बारह दिव्य नामों का वर्णन है और इसे भक्तजन रोजाना पढ़ते हैं ताकि वे अपनी मुश्किलों को दूर कर सकें, दुखों का अन्त कर सकें और समृद्धि एवं शांति प्राप्त कर सकें।
अर्थ
यह स्तोत्र भगवान गणेश के बारह नामों जैसे वक्रतुंड, एकदन्त, गजवक्र आदि से उनकी स्तुति करता है, जो उनके विभिन्न दिव्य गुणों और शक्तियों का प्रतीक हैं। यह गणेश की कृपा से दीर्घायु, सफलता, बाधा निवारण और इच्छापूर्ति की कामना करता है।
लाभ
- बाधाओं और कठिनाइयों को दूर करता है
- सफलता और समृद्धि लाता है
- सुरक्षा और मानसिक शांति प्रदान करता है
- आध्यात्मिक विकास और ज्ञान बढ़ाता है
- इच्छाओं को पूरा करता है और भय दूर करता है
महत्व
श्री संकट नाशन गणेश स्तोत्र का विशेष रूप से संकट चौथी जैसे शुभ अवसरों पर जाप किया जाता है ताकि भगवान गणेश की कृपा प्राप्त हो सके और समस्याओं का निवारण हो। नियमित पाठ से छः महीने से एक वर्ष के भीतर उत्तम परिणाम मिलने की मान्यता है, जिनमें स्वास्थ्य, धन और शांति शामिल हैं।