श्री परशुराम अष्टोत्तरशतनाम स्तोत्रम्
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श्री हयग्रीवाय नमः।
हरि ॐ
रामो रजतविवाह्नि रमचन्द्रप्रसादकः।
राजरक्तरुणस्नतो राजिवयतलोचनः॥ १ ॥
रैणुकेयो रुद्रसिष्यो रेनुकच्छेदनो रयि।
रणधुतमहसेनो रुद्रनिधर्मपुत्रकः॥ २ ॥
रजतपरसुविच्छिन्नकर्तावीर्यर्जुनद्रुमः।
रतखिलरसो रक्तकृतपैत्रकतर्पणः॥ ३ ॥
रत्नकरकृतवसो रतिसकृतविस्मयः।
रगहिनो रगदुरो रक्षितब्रह्मचर्यकः॥ ४ ॥
राज्यमत्तक्षत्रबीज भार्जनाग्नप्रतापवान्।
राजद्भृगुकुलम्बोधिचन्द्रमा रञ्जितद्विजः॥ ५ ॥
रक्तोपवितो रक्तक्षो रक्तलिप्तो रणोद्धतः।
रणट्कुथारो रविभुदण्डयित महाभुजः॥ ६ ॥
रमणधधनुर्धरी रामपतिकलमयः।
रामालयमहावक्ष रामुंजलसन्मुखः॥ ७ ॥
रसैकमल्लो रसनाविसयोद्दण्डपौरुषः।
रमणमसृतिस्रस्तक्षत्रियगर्भसंचयः॥ ८ ॥
रोसनलमयकरो रेणुकापुनराननः।
राधेयचटकम्भोदो रुद्धचपकलपगः॥ ९ ॥
राजिवचरनद्वन्द्वचिह्नपुतमहेन्द्रकः।
रामचन्द्रन्यस्ततेज रजसब्दर्धनसनः॥ १० ॥
रद्धादेवद्विजव्रतो रोहितस्वननर्चितः।
रोहितस्वदुरधर्षो रोहितस्वप्रपावनः॥ ११ ॥
रमणमप्रधनर्धो रत्नकरगभिरधिः।
रजनमौंजिसमबद्धसिंहमध्योरविद्युतिः॥ १२ ॥
रजताद्रिगुरुस्थानो रुद्रनिप्रेमभजनम्।
रुद्रभक्तौ रौद्रमूर्ति रुद्रधिकपराक्रमः॥ १३ ॥
रवितरचिरस्थायी रक्तदेवर्षिभवन्।
राम्यो रम्यगुणो रक्तो रतभक्तखिलेषितः॥ १४ ॥
रचितस्वर्णसोपानो रन्धितसयवसनः।
रुद्धप्रणादिसंचारो राजद्ब्रह्मपदस्थः॥ १५ ॥
रत्नसुनुममहाधिरो रससुरशिखमणिः।
रक्तसिद्धिरम्यातप रतातीर्थतनो रसिः॥ १६ ॥
रचितभ्रत्रहननो रक्षितभत्रको रानी।
राजपाहृतततेस्तिधेनवाहर्ता रसप्रभुः॥ १७ ॥
रक्षितब्रह्म्यसाम्राज्यो रौद्रनेयजयध्वजः।
राजकीर्तिमयच्छत्रो रोमहरसनविक्रमः॥ १८ ॥
राजसौर्यरसम्भोधिकुम्भसंबुतिसयकः।
रात्रिन्दिवसमजाग्रत्प्रतापग्रीसम्भासः॥ १९ ॥
राजबीजोदरक्षोनिपरित्यागीरसतपतिः।
रसभारहरो रस्यों राजिवजक्रताक्षमः॥ २० ॥
रुद्रमेरुधनुर्भङ्ग कर्द्धात्म रौद्रभूषणः।
रामचन्द्रमुखज्योत्स्नामृतक्षलिताह्नमालः॥ २१ ॥
रामभिन्नो रुद्रमयो रामरुद्रो भयात्मकः।
रामपूजितपदाब्जो रामविद्वेसिकैतवः॥ २२ ॥
रामानन्दो रमणमो रामो रमात्मनिर्भिदः।
रामप्रियो रामत्रप्तो रामगो रामविस्रमः॥ २३ ॥
रामज्ञानकुथरट्ट राजलोकमहातमः।
रामात्ममुक्तिदो रामो रामादो राममंगलः॥ २४ ॥
मङ्गलम्जमदग्न्याय कार्तवीर्यर्जुनच्छिदे।
मङ्गलम परमोदार सद परशुराम ते॥ २५ ॥
मङ्गलम राजकलाय दुराधरसाय मङ्गलम।
मङ्गलम महानियाय जमदग्न्याय मङ्गलम॥ २६ ॥
जमदग्नि तनुजाय जितखिलमहिभृते।
जज्वल्यमनयुधाय जमदग्न्याय मङ्गलम॥ २७ ॥
॥ इति रामेनकृतं परभवाब्दे वैशाखशुद्ध त्रितीयायां
परशुराम जयन्त्यां रकारदि श्री परशुरामअष्टोत्तरशतनाम
श्री हयग्रीवाय समर्पितम् ॥
श्री परशुराम अष्टोत्तरशतनाम स्तोत्रम् के बारे में
श्री परशुराम अष्टोत्तर-शतनाम स्तोत्र भगवान परशुराम के 108 दिव्य नामों वाला एक पवित्र स्तोत्र है, जो भगवान विष्णु के छठे अवतार हैं और उनकी वीरता और आध्यात्मिक अनुशासन के लिए जाने जाते हैं। यह स्तोत्र उनके वीर कार्यों, अत्याचारी क्षत्रियों के संहारक के रूप में भूमिका, माता-पिता और गुरु के प्रति भक्ति, और न्याय व धर्म के अवतार के रूप में उनकी महिमा करता है।
अर्थ
यह स्तोत्र परशुराम के दिव्य गुणों का वर्णन करता है जैसे उनका प्रबल अस्त्र परशु, योग में निपुणता, उनका प्रचंड लेकिन करुणामय स्वभाव, और धर्म की रक्षा के प्रति उनकी प्रतिबद्धता। यह उनके बुराई नाशक, न्यायशीलों के रक्षक, और भक्तों को साहस व शक्ति प्रदान करने वाली आध्यात्मिक शक्ति को उजागर करता है।
लाभ
- साहस, अनुशासन और आध्यात्मिक शक्ति बढ़ाता है
- बाधाओं और शत्रुओं को दूर करता है
- अन्याय और हानि से सुरक्षा प्रदान करता है
- भक्ति और विश्वास बढ़ाता है
- सफलता और धर्म का मार्ग दिखाता है
महत्व
श्री परशुराम अष्टोत्तर-शतनाम स्तोत्र उन भक्तों द्वारा व्यापक रूप से पढ़ा जाता है जो जीवन की चुनौतियों का सामना करने और धर्म की रक्षा करने में शक्ति, सुरक्षा और मार्गदर्शन चाहते हैं। इसे भगवान परशुराम के गुणों और शक्ति के साथ जुड़ने के लिए एक शक्तिशाली भक्ति साधन माना जाता है।