मंगल चण्डिका स्तोत्रम्
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ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं सर्वपूज्ये देवी मंगल चण्डिके,
ऐं क्रूं फट् स्वाहेत्येवं चाप्येकविंशखरो मनुः।
पूज्य कल्पतरुश्चैव भक्तानां सर्वकामदः,
दशलक्षजपेन नैव मन्त्रसिद्धिर्भवेत् नरूनाम्।
मन्त्रसिद्धिर्भवेद् स विष्णुर् सर्वकामधा।
ध्यानं च श्रूयतां ब्रह्म वेदोक्तं सर्वसम्मतम्।
ध्यानम्
देविं षोडशवर्षीयाम् सर्वसुधीर युवनाम्,
सर्वरूपगुणद्याम् च कोमलाङ्गिं मनोरमाम्।
श्वेतचम्पकवर्णाम् चन्द्रकोटिसमप्रभाम्,
वाह्निशुधाम् सुखाधानाम् रत्नभूषण भूषिताम्।
बिभ्रतीं खबरीं बारां मल्लिकामाल्य विभूषिताम्,
बिम्भोष्टिं सुदतीं शुधाम् शरद्पद्मनिभाननाम्।
ईश द्वस्य प्रसन्नां सुनीलोऽत्फललोचनाम्,
जगत् धात्रिं च धात्रिं च सर्वेभ्यः सर्वसंपदाम्।
संसारसागरे घोरे पोथरूपां वरां भजे।
देयश्च ध्यानमिथ्येवं स्थवन् स्रियाथां मुनैः,
प्रयथ संकटकृष्टो येन तुष्टव संकरः।
शङ्कर उवाच
रक्षा रक्षा जगन्मातर् देवी मंगल चण्डिके,
हरिके विपदं रसे हर्ष-मंगल-कारिके।
हर्ष मंगल दक्षे च हर्ष मंगल दायिके,
शुभे मंगल दक्षे च शुभे मंगल चण्डिके।
मंगल मंगलार्हे च सर्व मंगल मंगलिे,
सतां मंगलदे देवी सर्वेषां मंगलालये।
पूज्य मंगलवरे च मंगलाभिष्टदैवते,
पूज्य मंगलभूपस्य मनुवंशस्य संततम्।
मंगलाधिष्ठात्रु देवी मंगलानां च मंगले,
संसार मंगलधारे मोक्ष मंगल दायिनी।
सारे च मंगलधारे पारे च सर्वकर्मणाम्,
प्रतिमंगलवरे च पूज्ये च मंगलसुखप्रदे।
स्तोत्रेणानेन शम्भुश्च स्तुत्वा मंगलचण्डिकाम्,
प्रतिमंगलवरे च पूजां कृत्वा गतः शिवः।
प्रथमे पूजिता देवी शिवे न सर्व मंगल,
द्वितीये पूजिता सा च मंगलेन ग्रहणा च।
तृतीये पूजिता भद्रा मंगलेन नृपेण च,
चतुर्थे मंगलवारे च सुन्दरी भी प्रपूजिता।
पञ्चमे मंगलं कामक्षीर् नरै मंगल चण्डिका।
पूजिता प्रति विश्वेषु विश्वेश पूजिता सदाऽऽ।
तथा सर्वत्र संपूज्या भभुवा सुरेश्वरी।
देवाधिभिश्च मुनिभिर्मानुभिर्मानवै मुनैः,
देव्यश्च मंगलस्तोत्रं यः श्रुणोति समाहितः।
तन्मंगलं भवेत् तस्य न भवेत् तत् अमंगलम्,
वर्धन्ते तद् पुत्र पौत्रश्च मंगलं च दिने दिने।
इति श्री ब्रह्मवैवर्ते प्रकृतिखण्डे मंगलचण्डिका स्तोत्रं सम्पूर्णम्।
मंगल चण्डिका स्तोत्रम् के बारे में
मंगल चण्डिका स्तोत्र देवी चण्डिका (देवी दुर्गा का एक प्रचंड स्वरूप) को समर्पित एक पवित्र स्तोत्र है, जिसे शक्तिशाली ऊर्जा और शुभ प्रभावों के लिए जाना जाता है। माना जाता है कि इस स्तोत्र का जाप भगवान शिव ने खुद किया था ताकि देवी की सुरक्षा ऊर्जा का आह्वान कर भक्तों को नकारात्मक प्रभावों से बचाया जा सके और समृद्धि सुनिश्चित हो।
अर्थ
यह स्तोत्र देवी चण्डिका को ब्रह्मांड की शुभ और दयालु माता के रूप में वर्णित करता है जो सभी इच्छाएं पूरी करती हैं, ऋण और बाधाएं दूर करती हैं, और परिवार तथा संबंधों में सामंजस्य लाती हैं। यह उनके बुरी शक्तियों को भगाने, विवादों को सुलझाने, वास्तु दोषों को दूर करने और शांतिपूर्ण एवं समृद्ध जीवन परिस्थितियों को प्रदान करने की क्षमता को दर्शाता है। नियमित जाप मन को शुद्ध करता है, मानसिक शांति, आंतरिक शक्ति प्रदान करता है और परिवार की सुरक्षा करता है।
लाभ
- ऋण और आर्थिक कठिनाइयां दूर करता है
- संबंधों में शांति और सामंजस्य लाता है
- नकारात्मक ऊर्जा और बुरी शक्तियों से रक्षा करता है
- विवादों को टालता है और सुलझाता है
- आध्यात्मिक विकास और मानसिक स्पष्टता बढ़ाता है
महत्व
मंगल चण्डिका स्तोत्र विशेष रूप से मंगलवार और शुक्रवार के दिन पढ़ा जाता है ताकि देवी चण्डिका के आशीर्वाद से बाधाओं को पार किया जा सके, आर्थिक स्थिरता सुनिश्चित हो और परिवार में सामंजस्य बना रहे। इसे आध्यात्मिक सुरक्षा और भौतिक कल्याण लाने वाले स्तोत्र के रूप में सम्मानित किया जाता है।