महिषासुर मर्दिनी स्तोत्रम् - ऐगिरी नन्दिनी
अयि गिरि नन्दिनि, नन्धिता मेधिनि, विश्व विनोदिनि नन्दनुथे
गिरिवर विंध्य सिरोधि निवासिनी, विष्णु विलासिनी जीष्णु नुथे ।
भगवती हे सिठि कन्द कुटुम्बिनी, भूरी कुटुम्बिनी भूरी कृते,
जय जय हे महिषासुर मर्दिनी, रम्य कपर्दिनी, शैल सुते ॥
सुरवर वर्षिणी, दुर्दर दर्शिनी, दुर्मुखमार्शनी, हर्ष रथे,
त्रिभुवन पोषिणी, शंकर तोषिणी, किल्बिष मोषिणी, घोष रथे
दानुजा निरोशिणी, दितिसुता रोषिणी, दुरमथा सोषिणी, सिन्धु सुते,
जय जय हे महिषासुर मर्दिनी , रम्य कपर्दिनी, शैल सुते ॥
अयि जगदम्बा मदम्भ, कदम्ब, वन प्रिया वासिनी, हसरथे,
शिखरी शिरोमणि, थुंगा हिमालय, सृंगा निजालय, मध्यगथे ।
मधु मदुरे, मधुकैतभ बंझिनी, कैतभ बंझिनी, रस रथे,
जय जय हे महिषासुर मर्दिनी , रम्य कपर्दिनी, शैल सुते ॥
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