मा सरस्वती वंदना - या कुन्देन्दु
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या कुन्देन्दु तुषारहार धवला या शुभ्र वस्त्रावृता
या वीणा वरदण्ड मण्डितकरा या श्वेत पद्मासना।
या ब्रह्माच्युत शंकर प्रभृतिभिर्देवैः सदा पूजिता
सा मां पातु सरस्वती भगवती निःशेष जाड्यापहा॥
शुक्लं ब्रह्मविचार सारं परमामाद्यं जगद्व्यापिनीं
वीणा पुस्तक धारिणीं भयदं जाड्यन्धकारापहम्।
हस्ते स्फटिकमालिकां विदधतीं पद्मासने संस्थिताम्
वन्दे तां परमेश्वरीं भगवतीं बुद्धिप्रदां शारदाम्॥
मा सरस्वती वंदना - या कुन्देन्दु के बारे में
मां सरस्वती वंदना, जिसे 'या कुन्देन्दुतुषारहारधवला' भी कहा जाता है, देवी सरस्वती की स्तुति में रचित एक सुंदर और पूजनीय स्तोत्र है, जो ज्ञान, बुद्धि और कला की देवी हैं। यह स्तोत्र देवी के स्वच्छ और निर्मल स्वरूप का वर्णन करता है जो कमल की माला, चाँदनी और हिम के समान श्वेत हैं, सफेद वस्त्र धारण किए हुए हैं, वीणा धारण करती हैं और श्वेत कमल पर विराजमान हैं।
अर्थ
यह स्तोत्र देवी सरस्वती को शुद्ध ज्ञान और बुद्धि का स्वरूप मानता है, जिनकी पूजा ब्रह्मा, विष्णु और शिव जैसे देवता भी करते हैं। यह उनके शांत और करुणामय स्वभाव, अज्ञान और मानसिक अंधकार को दूर करने की शक्ति और भक्तों को साहस एवं प्रबोधन देने वाले आशीर्वाद को दर्शाता है।
लाभ
- अज्ञान और मानसिक अंधकार को दूर करता है
- ज्ञान, रचनात्मकता और सीखने की क्षमता बढ़ाता है
- शांति, एकाग्रता और मानसिक स्पष्टता लाता है
- भयों और नकारात्मक ऊर्जा से रक्षा करता है
- शिक्षा और कला में सफलता के लिए आशीर्वाद मांगता है
महत्व
मां सरस्वती वंदना का जाप छात्रों, कलाकारों और भक्तों द्वारा विशेष रूप से वसंत पंचमी के पर्व पर किया जाता है ताकि वे देवी के आशीर्वाद से बौद्धिक विकास और कलात्मक कौशल प्राप्त कर सकें। इसका पाठ मन को शुद्ध करता है और सीखने व रचनात्मकता के लिए अनुकूल वातावरण बनाता है।