मा गंगा स्तोत्रम्
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श्री गंगा जी की स्तुति
गंगान वरी मनोहारी मुरारिचरणाच्युतम् ।
त्रिपुरारिषिरश्चरी पापहरी पुनतु माम् ॥
मा गंगा स्तोत्रम् ॥
देवी सुरेश्वरी भगवती गंगे
त्रिभुवनथरिणी तरलतरंगे ।
संकर्मौलीविहारिणी विमलय
मम मातिरस्तन्तव तव पदकमले ॥
भागीरथी सुखदायिनी मातस्तव
जलमहीम निगमे ख्यातः ।
नहन जने तव महीमान्
पहि कृपामयी ममज्ञानम् ॥
हरिपदपद्यतरंगिनी गंगे
हिमविधुमुक्तधवलतरंगे ।
दूरिकुरु मम दुष्कृतिभरण्
कुरु कृपया भवसागरपरम् ॥
तव जलममलान्येन निपीतान्,
परमपदं खलु तेन गृहितम् ।
मातारगंगे त्वयि यो भक्तः
किल तं द्रष्टुं न यमः शक्तः ॥
पतितोद्धारिणी जाह्नवी गंगे
खण्डितागिरिवरमण्डितभंगे ।
भीष्मजननी हे मुनिवर्ये,
पतितनिवारिणी त्रिभुवनाध्ने ॥
कल्पलतामिव फलदान लोके,
प्रणमति यस्त्वां न पतति शोके ।
परवरविहारिणी गंगे
विमुखयुवतिक्रततरलपङ्गे ॥
तव चेन्मतः स्रोतस्स्नतः
पुनरपि जातरे सोपि न जातः ।
नरकनिवारिणी जाह्नवी गंगे
कलुषविनाशिनी महीमुतुङ्गे ॥
पुनरासदंगे पुण्यतरंगे
जय जय जाह्नवी करुणापङ्गे ।
इन्द्रमुकुटमणिराजिचरणे
सुखदे शुभदे भीष्टश्र्ने ॥
रोगं शोकं तपं पापं
हर मे भगवती कुमतिकलापम् ।
त्रिभुवनसरे वसुधाहरे
त्वं सि गतिर्मम खलु संसारे ॥
अलकनन्दे परम आनन्दे
कुरु करुणामयी कातरावन्द्ये ।
तव ततनिकटे यस्य निवासः
खलु वैकुण्ठे तस्य निवासः ॥
वरमिह नीरें कामतो मीनः
किन्वा तिरे शरतः क्षिणः ।
अथवा श्वपाचो मलिनो दिनस्तव
न हि दूरै नृपतिकुलिनः ॥
भो भुवनेश्वरी पुण्ये धन्ये
देवी द्रावमयी मुनिवर्ये ।
गंगास्तवं इमं अमलान् नित्यं
पठति नरः स जयति सत्यम् ॥
येषां हृदये गंगाभक्तिस्तं
भवति सदा सुखमुक्तिः ।
मधुरकान्तपज्जटिकाभिः
परमानन्दकलितललिताभिः ॥
गंगास्तोत्रमिदं भवसारं
वञ्चितफलदान विमलं सारम् ।
शंकरसेवकार्सर्चर्चितं पठति
सुखि स्तव इति च सम्पत् ॥
देवी सुरेश्वरी भगवती गंगे
त्रिभुवनथरिणी तरलतरंगे ।
संकर्मौलीविहारिणी विमलय
मम मातिरस्तन्तव तव पदकमले ॥
मा गंगा स्तोत्रम् के बारे में
मां गंगा स्तोत्र आदि शंकराचार्य द्वारा रचित एक भक्ति स्तोत्र है जो देवी गंगा की स्तुति करता है, जिसे पापों को शुद्ध करने वाली और मोक्ष प्रदान करने वाली पवित्र नदी माना जाता है। यह स्तोत्र नदी के दिव्य गुणों और शरीर, मन तथा आत्मा की शुद्धि में इसकी महत्ता को दर्शाता है।
अर्थ
यह स्तोत्र देवी गंगा को सर्वोच्च देवी के रूप में महिमामय करता है जो भगवान शिव के केशों से बहती हैं, तीनों लोकों को शुद्ध करती हैं, और परम आनंद प्रदान करती हैं। इसे सुखदायिनी, वेदों में स्तुत पवित्र नदी और दयालु माता के रूप में वर्णित किया गया है जो अपने भक्तों की रक्षा करती हैं। यह स्तोत्र उनकी कृपा के लिए प्रार्थना करता है जो पापों को धोती है, शांति देती है और मोक्ष के मार्ग पर ले जाती है।
लाभ
- पाप और नकारात्मक कर्मों को शुद्ध करता है
- शांति, समृद्धि और आध्यात्मिक उन्नति लाता है
- भक्तों को खतरों और दुर्भाग्यों से बचाता है
- भक्ति और मानसिक स्पष्टता बढ़ाता है
- मोक्ष और चिरस्थायी आनंद प्रदान करता है
महत्व
मां गंगा स्तोत्र का जाप भक्तों द्वारा शुद्धि, सुरक्षा और आध्यात्मिक विकास के लिए किया जाता है। यह हिंदू रीति-रिवाजों और गंगा नदी से संबंधित त्योहारों में विशेष स्थान रखता है, जो हिंदू संस्कृति और आध्यात्मिकता में इसकी महत्वपूर्ण भूमिका को दर्शाता है।