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कमल नेत्र स्तोत्रम्

श्री कमल नेत्र कटि पीताम्बर,
अधर मुरली गिरधारम् ।
मुकुट कुण्डल कर लकुटिया,
सांवरे राधेवरम् ॥
कुल यमुना धेनु आगे,
सकल गोपायन के मन हरम् ।
पीत वस्त्र गरुड़ वाहन,
चरण सुख नित सागरम् ॥

करत केल कलोल निश दिन,
कुंज भवन उजागरम् ।
अजर अमर अडोल निश्चल,
पुरुषोत्तम अपार परम् ॥

दीननाथ दयाल गिरिधर,
कंस हिरणकुश हरणम् ।
गल फूल भल विशाल लोचन,
अधिक सुन्दर केशवम् ॥

बंशीधर वासुदेव छिया,
बलि छल्यो श्री वामनम् ।
जब डूबते गज रख लीनों,
लंक छेद्यो रावणम् ॥

सप्त दीप नवखण्ड चौदह,
भवन कीनों एक पदम् ।
द्रौपदी की लाज राखी,
कहां लौ उपमा करम् ॥

दीननाथ दयाल पूरण,
करुणा मय करुणा करम् ।
कविदास विलास निशदिन,
नाम जप नित नागरम् ॥

प्रथम गुरु के चरण बन्दों,
यस्य ज्ञान प्रकाशितम् ।
आदि विष्णु युगादि ब्रह्मा,
सेविते शिव शंकरम् ॥

श्रीकृष्ण केशव कृष्ण केशव,
कृष्ण यदुपति केशवम् ।
श्रीराम रघुवर, राम रघुवर,
राम रघुवर रघावम् ॥

श्रीराम कृष्ण गोविन्द माधव,
वासुदेव श्री वामनम् ।
मत्स्य-कच्छप वराह नरसिंह,
पाहि रघुपति पवनम् ॥

मथुरा में केशवराय विराजे,
गोकुल बाल मुकुन्द जी ।
श्री वृन्दावन में मदन मोहन,
गोपीनाथ गोविन्द जी ॥

धन्य मथुरा धन्य गोकुल,
जहां श्री पति अवतारे ।
धन्य यमुना नीर निर्मल,
ग्वाल बाल सखावरे ॥

नवनीत नगर करत निरन्तर,
शिव विरंचि मन मोहितम् ।
कालिन्दी तट करत क्रीडा,
बाल अद्भुत सुन्दरम् ॥

ग्वाल बाल सब सखा विराजे,
संग राधे भामिनी ।
बंशी वट तट निकट यमुना,
मुरली की तेर सुहावनी ॥

भज रघावेश रघुवंश उत्तम,
परम राजकुमार जी ।
सीता के पति भक्तन के गति,
जगत प्राण आधार जी ॥

जनक राजा पनक राखी,
धनुष बाण चढ़ावाहिं ।
सती सीता नाम जाके,
श्री रामचन्द्र प्रणामाहिं ॥

जन्म मथुरा खेल गोकुल,
नन्द के हृदि नन्दनम् ।
बाल लीला पतित पावन,
देवकी वासुदेवकम् ॥

श्रीकृष्ण कलिमल हरण जाके,
जो भजे हरिचरण को ।
भक्ति अपनी देव माधव,
भवसागर के तरण को ॥

जगन्नाथ जगदीश स्वामी,
श्री बद्रीनाथ विश्वम्भरम् ।
द्वारिका के नाथ श्री पति,
केशवन् प्रणमाम्यहम् ॥

श्रीकृष्ण अष्टपदपदहतनिशादिन्,
विष्णु लोक सगच्छतम् ।
श्रीगुरु रामानन्द अवतार स्वामी,
कविदत्त दास समाप्ततम् ॥

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