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द्वादश ज्योतिर्लिंग स्तोत्रम्

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सौराष्ट्र देशे विशदेथि रम्ये,
ज्योतिर्मयं चन्द्र कलावतंसं,
भक्ति प्रधानाय कृपावतीर्नम्,
तं सोम नाधं शरणं प्रपद्ये ॥
श्री शैल संगे विभुदथि संगे,
तुलथि तुने अपि मूढ वसंतं,
थमार्जुनं मल्लिका पूर्वमेकम्,
नमामि संसार समुद्र सेतुम् ॥

अवन्तिकायं विहितवातरं,
मुक्ति प्रधानाय च सज्जनानम्,
अकालमृत्यो परिरक्षणतं,
वन्दे महा काल महा सुरेशम् ॥

कावेरीका नरमध्यो पवित्रे,
समागमे सज्जन तरणाय,
सदैव मंद त्रिपुरे वसंतं,
ओंकारमीशं शिवमेकमेदे ॥

पूर्वोत्तरे प्रज्वलिका निधने,
सदा वसंतं गिरिजा समेतम्,
सुरसुराधित पद पद्मं,
श्री वैद्यनाथं तं अहं नमामि ॥

याम्ये सदंगे नगराधि रम्ये,
विभूषितांगं विविधैश्च भोगैः,
सद्भक्ति मुक्ति प्रद मेषं,
श्री नागनाथं शरणं प्रपद्ये ॥

महाद्रि पार्श्वे च थाते रमण्तं,
संपूज्यमानं सततं मुनेन्द्रैः,
सुरसुरैर्यक्ष महोराघदैः,
केदारमीशं शिवमेकमेदे ॥

सह्याद्रि शीर्षे विमले वसंतं,
गोदावरी तीरे पवित्र देशे,
यद् दर्शनाल् पठकमसु नासं,
प्रयाति तं त्रैम्बकं मेष मेदे ॥

सुताम्र वर्णी जल राशि योगे,
निभध्य सेतं विषिखैः संक्यैः,
श्री रामचन्द्रं समर्पितं तं,
रामेशमाख्यं नियतं स्मरामि ॥

यं डाकिनी साकिनी समजे,
निषेव्यमानं पिशितसैनैः,
सदैव भीमाधि पद प्रसीदं,
तं शंकरं भक्त हितं नमामि ॥

सयन्द मनन्द वने वसंतं,
मनन्द कन्द हठ पाप वृन्दं,
वाराणसी नाध मनाध नाधं,
श्री विश्वनाधं शरणं प्रपद्ये ॥

इलापुरे रम्य विसलके अस्मिन्,
समुल्लसन्तं च जगद् वरेण्यं,
वन्दे महा धरा तारा स्वभावं,
घुशुरुनेश्वराख्यं शरणं प्रपद्ये ॥

ज्योतिर्मया द्वादश लिङ्गकानं,
शिवात्मनं प्रोक्तमिदं क्रमेन,
स्तोत्रं पठित्वा मनुजो अति भक्त्यो,
फलं तदालोकेय निजं भजेष्च ॥

द्वादश ज्योतिर्लिंग स्तोत्रम् के बारे में

द्वादश ज्योतिर्लिंग स्तोत्र भगवान शिव के बारह ज्योतिर्लिंगों को समर्पित एक पवित्र स्तोत्र है, जो भारत में फैले सबसे पूजनीय शिव मंदिरों का समूह हैं। इस स्तोत्र के प्रत्येक श्लोक में इन बारह दिव्य ज्योतिर्लिंगों की महिमा, पौराणिक कथाएं और भगवान शिव के प्रभावशाली स्वरूपों का वर्णन किया गया है।

अर्थ

यह स्तोत्र प्रत्येक ज्योतिर्लिंग के विशेष गुणों का वर्णन करता है, जैसे सौराष्ट्र का सोमनाथ, श्री शैले मल्लिकार्जुन, उज्जैन का महाकाल, अमलेश्वर का ओंकारेश्वर आदि। यह इन पवित्र स्थानों के माध्यम से भगवान शिव की कृपा प्राप्त करने, पापों की क्षमा, आध्यात्मिक उन्नति और सांसारिक समृद्धि की कामना करता है।

लाभ

  • बहुत जन्मों के पापों का शोधन करता है
  • आध्यात्मिक विकास और आंतरिक शांति लाता है
  • दिव्य संरक्षण और आशीर्वाद प्राप्त करता है
  • बाधाओं और कठिनाइयों को पार करने में मदद करता है
  • समृद्धि, स्वास्थ्य और दीर्घायु को बढ़ावा देता है

महत्व

द्वादश ज्योतिर्लिंग स्तोत्र एक अत्यंत पूजनीय भक्ति स्तोत्र है जिसे भक्त भगवान शिव के बारह ज्योतिर्लिंग स्वरूपों से गहरा संबंध स्थापित करने के लिए पढ़ते हैं। ऐसा माना जाता है कि नियमित पाठ से भक्तों को मोक्ष प्राप्त होता है और वे सांसारिक एवं आध्यात्मिक इच्छाओं की प्राप्ति करते हैं। यह स्तोत्र मंदिर यात्राओं, महाशिवरात्रि और अन्य शिव पर्वों के दौरान विशेष शुभ माना जाता है।

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