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अन्नपूर्णा स्तोत्रम्

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नित्य-नन्द करे वर अभय करे सौन्दर्य रत्नकरी
निर्धूत अखिल घोर पावन करे प्रत्यक्ष माहेश्वरी।
प्रलय अचल वंश पावन करे काशी पुर अधीश्वरी
भिक्षाम् देहि कृपा आवलम्बन करे माता अन्नपूर्णेश्वरी॥
नाना रत्न विचित्र भूषन्न करे हेमा अम्बर डम्बरि
मुक्ता हार विलम्बमान विलसद् वक्षोज कुम्भ अंतरि।
काश्मीर अगरु वासित अंग रुचिरे काशी पुर अधीश्वरी
भिक्षाम् देहि कृपा आवलम्बन करे माता अन्नपूर्णेश्वरी॥

योग-नन्द करे रिपु क्षय करे धर्म अर्थ निष्ठा करे
चन्द्र अर्क अनल भाषमान लहरे त्रैलोक्य रक्षा करे।
सर्व ऐश्वर्य समस्त वाञ्छित करे काशी पुर अधीश्वरी
भिक्षाम् देहि कृपा आवलम्बन करे माता अन्नपूर्णेश्वरी॥

कैलास अचल कन्दरालय करे गौरी उमा शङ्करी
कौमारि निगम अर्थ गोचर करे ओङ्कार बीज अक्षरी।
मोक्ष द्वार कपाट पाटन करे काशी पुर अधीश्वरी
भिक्षाम् देहि कृपा आवलम्बन करे माता अन्नपूर्णेश्वरी॥

दृश्य अदृश्य विभूति वाहन करे ब्रह्मानन्द भान्दो दरी
लीला नाट्य सूत्र भेदन करे विज्ञान दीप अङ्कुरी।
श्री विश्वेश मनः प्रसाद करे काशी पुर अधीश्वरी
भिक्षाम् देहि कृपा आवलम्बन करे माता अन्नपूर्णेश्वरी॥

ऊर्वी सर्व जनेश्वरे भगवती माता अन्नपूर्णेश्वरे
वेणी नीला समान कुण्ट लहरे नित्य अन्न दाने श्वरे।
सर्व-नन्द करे सदा शुभ करे काशी पुर अधीश्वरी
भिक्षाम् देहि कृपा आवलम्बन करे माता अन्नपूर्णेश्वरी॥

आदिक्सा अन्त समस्त वर्णना करे शम्भोस त्रिभाव करे
काश्मीर त्रि जले श्वरे त्रि लहरे नित्य अङ्कूरा शर्वरे।
काम कङ्क्षा करे जनोदायकरे काशी पुर अधीश्वरी
भिक्षाम् देहि कृपा आवलम्बन करे माता अन्नपूर्णेश्वरी॥

देवी सर्व विचित्र रत्न रचिता दाक्षायणी सुन्दरी
वामं स्वादु पयो धरा प्रिया करे सौभाग्य माहे श्वरे।
भक्ता अभिष्ट करे सदा शुभ करे काशी पुर अधीश्वरी
भिक्षाम् देहि कृपा आवलम्बन करे माता अन्नपूर्णेश्वरी॥

चन्द्र अर्क अनल कोटि कोटि सदृश चन्द्र अम्शु बिम्ब अधरे
चन्द्र अर्क अग्नि समान कुंतल धरे चन्द्र अर्क वर्णे श्वरे।
माला पुस्तक पाशास अंगुष्ठ धरे काशी पुर अधीश्वरी
भिक्षाम् देहि कृपा आवलम्बन करे माता अन्नपूर्णेश्वरी॥

क्षत्र त्राण करे महाभय करे माता कृपा सागरे
साक्षात् मोक्ष करे सदा शिव करे विश्वेश्वर श्री धरे।
दक्ष क्रन्द करे निरामय करे काशी पुर अधीश्वरी
भिक्षाम् देहि कृपा आवलम्बन करे माता अन्नपूर्णेश्वरी॥

अन्नपूर्णे सदा पूर्णे शङ्कर प्राण Vallabhe।
ज्ञान वैराग्य सिद्ध्यर्थं भिक्षाम् देहि च पार्वती॥

माता च पार्वती देवी पिता देवो महेश्वरः।
बान्धवाः शिव भक्ताश्च स्वदेशो भुवनत्रयम्॥

- श्री आदि गुरु शंकराचार्य

अन्नपूर्णा स्तोत्रम् के बारे में

अन्नपूर्णा स्तोत्र आदि शंकराचार्य द्वारा रचित एक पवित्र स्तोत्र है जो देवी अन्नपूर्णा की महिमा का गुणगान करता है। अन्नपूर्णा, देवी पार्वती का एक स्वरूप हैं, जो समृद्धि और पोषण का प्रतीक हैं, जो सभी जीवों को आहार प्रदान करती हैं और जीवन को संजोती हैं।

अर्थ

यह स्तोत्र देवी अन्नपूर्णा की करुणा, उदारता और जीवन-संवहक भूमिका की स्तुति करता है। इसमें उनका रूप वर्णित है जिसमें वे अनाज से भरी कटोरी और एक चमचा धारण किए हुए हैं, जो उनके अपरंपार पोषण का प्रतीक है। स्तोत्र उनकी कृपा के लिए प्रार्थना करता है कि वे समृद्धि, भूख और गरीबी दूर करें, आध्यात्मिक ज्ञान प्रदान करें और परम तृप्ति प्रदान करें।

लाभ

  • घर में किसी को भी भूख का सामना न करना पड़े
  • समृद्धि, संपदा और पोषण लाता है
  • मन को शुद्ध करता है और नकारात्मकता दूर करता है
  • आध्यात्मिक ज्ञान और बुद्धि प्रदान करता है
  • गरीबी दूर करता है और भौतिक आवश्यकताओं को पूरी करता है

महत्व

अन्नपूर्णा स्तोत्र हिंदू परिवारों में अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है और अक्सर भोजन से पहले आभार प्रार्थना के रूप में पढ़ा जाता है। ऐसा माना जाता है कि यह स्तोत्र समृद्धि के दिव्य आशीर्वाद लाता है और भूख व अभाव से होने वाले कष्टों को कम करता है। यह स्तोत्र भोजन की पवित्रता और देवी के जीवन प्रदाता के रूप में भूमिका को रेखांकित करता है।

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