श्री केतु अष्टोत्तर शतनामावली
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॥ श्री केतु अष्टोत्तर शतनामावली ॥
ॐ केतवे नमः।
ॐ स्थूलशिरसे नमः।
ॐ शिरोमात्राय नमः।
ॐ ध्वजाकृतये नमः।
ॐ नवग्रहयुताय नमः।
ॐ सिंहिकासुरीगर्भसम्भवाय नमः।
ॐ महाभीतिकराय नमः।
ॐ चित्रवर्णाय नमः।
ॐ पिङ्गलाक्षकाय नमः।
ॐ फुल्लधूम्रसङ्काशाय नमः। 10
ॐ तीक्ष्णदंष्ट्राय नमः।
ॐ महोदरसैन्याय नमः।
ॐ रक्तनेत्राय नमः।
ॐ चित्रकारिणे नमः।
ॐ तीव्रकोपाय नमः।
ॐ महासुराय नमः।
ॐ क्रूरकण्ठाय नमः।
ॐ क्रोधनिधये नमः।
ॐ छायाग्रहविशेषकाय नमः।
ॐ अन्त्यग्रहार्याय नमः। 20
ॐ महाशीर्षाय नमः।
ॐ सूर्यारे नमः।
ॐ पुष्पवत्ग्रहीणे नमः।
ॐ वरदहस्ताय नमः।
ॐ गदापाणये नमः।
ॐ चित्रवस्त्रधराय नमः।
ॐ चित्रध्वजपताकाय नमः।
ॐ घोराय नमः।
ॐ चित्ररथाय नमः।
ॐ शिखिने नमः। 30
ॐ कुलुत्थभक्षाकाय नमः।
ॐ वैडूर्याभरणाय नमः।
ॐ उत्पातजनकाय नमः।
ॐ शुक्रमित्राय नमः।
ॐ मंदसखाय नमः।
ॐ गदाधराय नमः।
ॐ नाकपतये नमः।
ॐ अन्तरवेदेश्वराय नमः।
ॐ जैमिनिगोत्रजाय नमः।
ॐ चित्रगुप्तात्मने नमः। 40
ॐ दक्षिणामुखाय नमः।
ॐ मुकुन्दवरपात्राय नमः।
ॐ महासुरकुलोद्भवाय नमः।
ॐ घनवर्णाय नमः।
ॐ लम्बदेहाय नमः।
ॐ मृत्युputraya नमः।
ॐ उत्पातरूपधारिणे नमः।
ॐ अदृश्याय नमः।
ॐ कालाग्निसन्निभाय नमः।
ॐ नृपीड़ाय नमः। 50
ॐ ग्रहकारिणे नमः।
ॐ सर्वोपद्रवकारकाय नमः।
ॐ चित्रप्रसूताय नमः।
ॐ अनलाय नमः।
ॐ सर्वव्याधिविनाशकाय नमः।
ॐ अपसव्यप्रचारीणे नमः।
ॐ नवमे पापदायकाय नमः।
ॐ पञ्चमे शोकदायकाय नमः।
ॐ उपरागखचराय नमः।
ॐ अतिपुरुषकर्मणे नमः। 60
ॐ तुर्ये सुखप्रदाय नमः।
ॐ तृतीये वैरदाय नमः।
ॐ पापग्रहाय नमः।
ॐ स्फोटककारकाय नमः।
ॐ प्राणनाथाय नमः।
ॐ पञ्चमे श्रमकारकाय नमः।
ॐ द्वितीये अस्पुटवक्त्रे नमः।
ॐ विषाकुलितवक्त्रकाय नमः।
ॐ कामरूपिणे नमः।
ॐ सिंहदन्ताय नमः। 70
ॐ कुसेध्मप्रियाय नमः।
ॐ चतुर्थे मातृनाशाय नमः।
ॐ नवमे पितृनाशकाय नमः।
ॐ अन्त्ये वैरप्रदाय नमः।
ॐ सुतानन्दनबन्धकाय नमः।
ॐ सर्पाक्षिजाताय नमः।
ॐ अनङ्गाय नमः।
ॐ कर्मराश्युद्भवाय नमः।
ॐ उपान्ते कीर्तिदाय नमः।
ॐ सप्तमे कलहप्रदाय नमः। 80
ॐ अष्टमे व्याधिकर्त्रे नमः।
ॐ धने बहुसुखप्रदाय नमः।
ॐ जन्मनि रोगदाय नमः।
ॐ ऊर्ध्वमूर्धजाय नमः।
ॐ ग्रहनायकाय नमः।
ॐ पापदृष्टये नमः।
ॐ खेचराय नमः।
ॐ सम्भवाय नमः।
ॐ अशेषपूजिताय नमः।
ॐ शाश्वताय नमः। 90
ॐ नटाय नमः।
ॐ शुभाशुभफलप्रदाय नमः।
ॐ धूम्राय नमः।
ॐ सुधापायिने नमः।
ॐ अजिताय नमः।
ॐ भक्तवत्सलाय नमः।
ॐ सिंहासनाय नमः।
ॐ केतुमूर्तये नमः।
ॐ रविन्दुद्युतिनाशकाय नमः।
ॐ अमराय नमः। 100
ॐ पीड़काय नमः।
ॐ अमर्त्याय नमः।
ॐ विष्णुदृष्टाय नमः।
ॐ असुरेश्वराय नमः।
ॐ भक्तरक्षाय नमः।
ॐ वैचित्र्यकपटस्यान्दनाय नमः।
ॐ विचित्रफलदायिने नमः।
ॐ भक्ताभीष्टफलप्रदाय नमः। 108
॥ श्री केतु अष्टोत्तर शतनामावली सम्पूर्ण ॥
श्री केतु अष्टोत्तर शतनामावली के बारे में
श्री केतु अष्टोत्तर शतनामावली 108 दिव्य नामों वाला एक पवित्र स्तोत्र है, जो नौ नवग्रहों में से एक केतु ग्रह को समर्पित है। केतु को अक्सर बिना सिर वाले नाग के रूप में दिखाया जाता है और इसे आध्यात्मिक प्रबोधन, वैराग्य और कर्म शोधन से जोड़ा जाता है।
अर्थ
यह स्तोत्र केतु के विभिन्न गुणों और शक्तियों की प्रशंसा करता है, जिनमें आध्यात्मिक विकास को बढ़ावा देना, ज्ञान प्रदान करना और कर्मों के ऋणों के निवारण में मदद करना शामिल है। इन नामों के जाप से एक केतु के नकारात्मक प्रभाव कम होते हैं और शांति तथा स्पष्टता प्राप्त होती है।
लाभ
- आध्यात्मिक प्रबोधन और वैराग्य को बढ़ावा देता है
- कर्मिक बाधाओं और ऋणों को दूर करता है
- ज्योतिष में केतु के नकारात्मक प्रभावों को कम करता है
- ज्ञान और सहज ज्ञानवर्धन बढ़ाता है
- मानसिक शांति और स्पष्टता लाता है
महत्व
श्री केतु अष्टोत्तर शतनामावली का जाप विशेष रूप से उन लोगों के लिए शुभ होता है जिनके जन्मकुंडली में केतु प्रभावित होता है और आध्यात्मिक साधकों के लिए मुक्ति की कामना के लिए। यह अक्सर नवग्रह पूजा और ग्रह दोष निवारण के दौरान किया जाता है।