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श्री हयग्रीव अष्टोत्तर शतनामावली

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॥ श्री हयग्रीव अष्टोत्तर शतनामावली ॥

ॐ हयग्रीवाय नमः।
ॐ महाविष्णवे नमः।
ॐ केशवाय नमः।
ॐ मधुसूदनाय नमः।
ॐ गोविन्दाय नमः।
ॐ पुण्डरीकाक्षाय नमः।
ॐ विष्णवे नमः।
ॐ विश्वम्भराय नमः।
ॐ हरये नमः।
ॐ आदित्याय नमः।
ॐ सर्ववागीशाय नमः।
ॐ सर्वाधाराय नमः।
ॐ सनातनाय नमः।
ॐ निराधाराय नमः।
ॐ निराकाराय नमः।
ॐ निरीश्वराय नमः।
ॐ निरुपद्रवाय नमः।
ॐ निरञ्जनाय नमः।
ॐ निष्कलंकाय नमः।
ॐ नित्यतृप्ताय नमः। 20

ॐ निरामयाय नमः।
ॐ चिदानन्दमयाय नमः।
ॐ साक्षिणे नमः।
ॐ शरण्याय नमः।
ॐ सर्वदायकाय नमः।
ॐ श्रीमते नमः।
ॐ लोकत्रयाधीशाय नमः।
ॐ शिवाय नमः।
ॐ सारस्वतप्रदाय नमः।
ॐ वेदोद्धर्त्रे नमः।
ॐ वेदानिधये नमः।
ॐ वेदवेद्याय नमः।
ॐ प्रबोधनाय नमः।
ॐ पूर्णाय नमः।
ॐ पुरयित्रे नमः।
ॐ पुण्याय नमः।
ॐ पुण्यकीर्तये नमः।
ॐ परात्पराय नमः।
ॐ परमात्मने नमः।
ॐ परस्मै नमः। 40

ॐ ज्योतिषे नमः।
ॐ परेशाय नमः।
ॐ पारगाय नमः।
ॐ पाराय नमः।
ॐ सर्ववेदात्मकाय नमः।
ॐ विदुषे नमः।
ॐ वेदवेदान्तपारगाय नमः।
ॐ सकलोपनिषद्वेद्याय नमः।
ॐ निष्कलाय नमः।
ॐ सर्वशास्त्रकृते नमः।
ॐ अक्षमालाज्ञानमुद्रायुक्तहस्ताय नमः।
ॐ वरप्रदाय नमः।
ॐ पुराणपुरुषाय नमः।
ॐ श्रेष्ठाय नमः।
ॐ शरण्याय नमः।
ॐ परमेश्वराय नमः।
ॐ शान्ताय नमः।
ॐ दन्ताय नमः।
ॐ जितक्रोधाय नमः।
ॐ जितमित्राय नमः। 60

ॐ जगन्मयाय नमः।
ॐ जन्ममृत्यুহराय नमः।
ॐ जीवाय नमः।
ॐ जयदाय नमः।
ॐ जड्यानाशनाय नमः।
ॐ जपप्रियाय नमः।
ॐ जपस्तुत्याय नमः।
ॐ जपकप्रियकृते नमः।
ॐ प्रभवे नमः।
ॐ विमलाय नमः।
ॐ विश्वरूपाय नमः।
ॐ विश्वगोप्त्रे नमः।
ॐ विधिस्तुत्याय नमः।
ॐ विधीन्द्रशिवसंस्तुत्याय नमः।
ॐ शान्तिदाय नमः।
ॐ क्षांतिपरागाय नमः।
ॐ श्रेयःप्रदाय नमः।
ॐ श्रुतिमयाय नमः।
ॐ श्रेयसांपतये नमः।
ॐ ईश्वराय नमः। 80

ॐ अच्युताय नमः।
ॐ अनन्तरूपाय नमः।
ॐ प्राणदाय नमः।
ॐ पृथिवीपतये नमः।
ॐ अव्यक्ताय नमः।
ॐ व्यक्तरूपाय नमः।
ॐ सर्वसाक्षिणे नमः।
ॐ तमोहराय नमः।
ॐ अज्ञाननाशकाय नमः।
ॐ ज्ञानीने नमः।
ॐ पूर्णचन्द्रसमप्रभाय नमः।
ॐ ज्ञानदाय नमः।
ॐ वाक्पतये नमः।
ॐ योगिने नमः।
ॐ योगिशाय नमः।
ॐ सर्वकामदाय नमः।
ॐ महायोगिने नमः।
ॐ महामौनीने नमः।
ॐ मौनीशाय नमः।
ॐ श्रेयसानिधये नमः। 100

ॐ हंसाय नमः।
ॐ परमहंसाय नमः।
ॐ विश्वगोप्त्रे नमः।
ॐ विराजे नमः।
ॐ स्वराजे नमः।
ॐ शुद्धस्फटिकसंकाशाय नमः।
ॐ जटामंडलसंयुक्ताय नमः।
ॐ आदिमध्यन्तरहिताय नमः।
ॐ सर्ववागीश्वरेश्वराय नमः। 108

श्री लक्ष्मीहयवदनपरब्रह्मणे नमः।
॥ श्री हयग्रीव अष्टोत्तर शतनामावली सम्पूर्ण ॥

श्री हयग्रीव अष्टोत्तर शतनामावली के बारे में

श्री हयग्रीव अष्टोत्तर शतनामावली 108 दिव्य नामों वाला एक पवित्र स्तोत्र है, जो भगवान विष्णु के अश्वमुख अवतार भगवान हयग्रीव को समर्पित है। ज्ञान और बुद्धि के सर्वोच्च देवता के रूप में, भगवान हयग्रीव को बुद्धिमत्ता, ज्ञान और आध्यात्मिक प्रबोधन देने के लिए पूजा जाता है।

अर्थ

यह स्तोत्र भगवान हयग्रीव के विभिन्न दिव्य गुणों की प्रशंसा करता है, जिसमें वेदों के रक्षक, अज्ञान नाशक और ज्ञान दाता के रूप में उनकी भूमिका प्रमुख है। इन नामों का जप मानसिक क्षमता बढ़ाने, मस्तिष्क की स्पष्टता प्रदान करने और आध्यात्मिक विकास को प्रोत्साहित करने वाला माना जाता है।

लाभ

  • बुद्धि और स्मृति को बढ़ाता है
  • अज्ञान और मानसिक बाधाओं को दूर करता है
  • सुरक्षा और आध्यात्मिक मार्गदर्शन प्रदान करता है
  • शैक्षिक और बौद्धिक सफलता को बढ़ावा देता है
  • संपूर्ण आध्यात्मिक कल्याण को प्रोत्साहित करता है

महत्व

श्री हयग्रीव अष्टोत्तर शतनामावली का जप विशेष रूप से छात्रों, विद्वानों और ज्ञान तथा बुद्धि की कामना करने वालों के लिए शुभ माना जाता है। इसे शैक्षिक प्रयासों और आध्यात्मिक साधनाओं के दौरान भगवान हयग्रीव की कृपा प्राप्त करने के लिए जपा जाता है।

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