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श्री परशुराम अष्टोत्तर शतनामावली

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॥ श्री परशुराम अष्टोत्तर शतनामावली ॥

ॐ रामाय नमः।
ॐ राजाटवीवह्नये नमः।
ॐ रामचन्द्रप्रसादकाय नमः।
ॐ राजरक्तारुणस्नाताय नमः।
ॐ राजीवायतलोचनाय नमः।
ॐ रैणुकेयाय नमः।
ॐ रुद्रशिष्याय नमः।
ॐ रेणुकाच्छेदनाय नमः।
ॐ रयीने नमः।
ॐ रणधूतमहासेनाय नमः। 10।

ॐ रुद्राणीधर्मपुत्रकाय नमः।
ॐ राजत्परशुविच्छिन्नकार्तवीर्यार्जुनद्रुमाय नमः।
ॐ राताखिलरसाय नमः।
ॐ रक्तकृतपैत्रिकतर्पणाय नमः।
ॐ रत्नाकरकृतवासाय नमः।
ॐ रतीशकृतविस्मयाय नमः।
ॐ रागहीनाय नमः।
ॐ रागदूराय नमः।
ॐ रक्षितब्रह्मचर्यकाय नमः।
ॐ राज्यमत्तक्षात्रबीजभर्जनाग्निप्रतापवान् नमः। 20।

ॐ राजद्भृगुकुलाम्बोधिचन्द्रमसे नमः।
ॐ रञ्जितद्विजाय नमः।
ॐ रक्तोपवीताय नमः।
ॐ रक्ताक्षाय नमः।
ॐ रक्तलिप्ताय नमः।
ॐ रणोद्धताय नमः।
ॐ रणत्कुठाराय नमः।
ॐ रविभूदण्डायितमहाभुजाय नमः।
ॐ रमानाधधनुर्धरिणे नमः।
ॐ रमापतिकलामयाय नमः। 30।

ॐ रमालयमहावक्षसे नमः।
ॐ रामानुजलसन्मुखाय नमः।
ॐ रणैकमल्लाय नमः।
ॐ रसनाविषयोद्दण्डपौरुषाय नमः।
ॐ रामनामश्रुतिस्रस्तक्षत्रियगर्भसञ्चयाय नमः।
ॐ रोषानलमयाकाराय नमः।
ॐ रेणुकापुनराननाय नमः।
ॐ राधेयचातकाम्भोदाय नमः।
ॐ रुद्धचापकलापगाय नमः।
ॐ राजीवचरणद्वन्द्वचिह्नपूतमहेन्द्रकाय नमः। 40।

ॐ रामचन्द्रन्यस्ततेजसे नमः।
ॐ राजशब्दार्धनाशनाय नमः।
ॐ राद्धदेवद्विजव्राताय नमः।
ॐ रोहिताश्वाननार्चिताय नमः।
ॐ रोहिताश्वदुराधर्षाय नमः।
ॐ रोहिताश्वप्रपावनाय नमः।
ॐ रामनामप्रधानार्धाय नमः।
ॐ रत्नाकरगभीरधीये नमः।
ॐ राजन्मौञ्जीसमाबद्धसिंहमध्याय नमः।
ॐ रविद्युतये नमः। 50।

ॐ रजताद्रिगुरुस्थानाय नमः।
ॐ रुद्राणीप्रेमभाजनाय नमः।
ॐ रुद्रभक्ताय नमः।
ॐ रौद्रमूर्तये नमः।
ॐ रुद्राधिकपराक्रमाय नमः।
ॐ रविताराचिरस्थायिने नमः।
ॐ रक्तदेवर्षिभावनाय नमः।
ॐ रम्याय नमः।
ॐ रम्यगुणाय नमः।
ॐ रक्ताय नमः। 60।

ॐ रातभक्ताखिलेप्सिताय नमः।
ॐ रचितस्वर्गगोपाय नमः।
ॐ रन्धिताशयवासनाय नमः।
ॐ रुद्धप्राणादिसंचाराय नमः।
ॐ राजद्ब्रह्मपदस्थिताय नमः।
ॐ रत्नसूनुमहाधीराय नमः।
ॐ रसासुरशिखामणये नमः।
ॐ रक्तसिद्धये नमः।
ॐ रम्यतपसे नमः।
ॐ राततीर्थाटनाय नमः। 70।

ॐ रसीने नमः।
ॐ रचितभ्रातृहननाय नमः।
ॐ रक्षितभ्रातृकाय नमः।
ॐ रणीने नमः।
ॐ राजापहृततातेष्ठिधेन्वाहर्त्रे नमः।
ॐ रसप्रभवे नमः।
ॐ रक्षितब्राह्म्यसम्राज्याय नमः।
ॐ रौद्राणेयजयध्वजाय नमः।
ॐ राजकीर्तिमयच्छत्राय नमः।
ॐ रोमहर्षणविक्रमाय नमः। 80।

ॐ राजशौर्यरसाम्भोधिकुम्भसम्भूतिसायकाय नमः।
ॐ रात्रिन्दिवसमाजागरत्त्र्प्रतापग्रीष्मभास्कराय नमः।
ॐ राजबीजदारक्शोणिपरित्याजिने नमः।
ॐ रसात्पतये नमः।
ॐ रसाभारहराय नमः।
ॐ रस्याय नमः।
ॐ राजीवजाकृतक्षमाय नमः।
ॐ रुद्रामेरुधनुर्भंगकृदधात्मने नमः।
ॐ रौद्रभूषणाय नमः।
ॐ रामचन्द्रमुखज्योत्स्नामृतक्षालितहृन्मालय नमः। 90।

ॐ रामाभिन्नाय नमः।
ॐ रुद्रमयाय नमः।
ॐ रामरुद्रोभयात्मने नमः।
ॐ रामपूजितपदाब्जाय नमः।
ॐ रामविद्धेषिकैतवाय नमः।
ॐ रामानन्दाय नमः।
ॐ रामनामाय नमः।
ॐ रामाय नमः।
ॐ रामात्मनिर्भिदाय नमः।
ॐ रामप्रियाय नमः। 100।

ॐ रामतृप्ताय नमः।
ॐ रामगाय नमः।
ॐ रामविश्रामाय नमः।
ॐ रामज्ञानकुठारत्तराजलोकमहतमसे नमः।
ॐ रामात्ममुक्तिदाय नमः।
ॐ रामाय नमः।
ॐ रमदाय नमः।
ॐ रममंगलाय नमः। 108।

॥ इति श्री परशुराम अष्टोत्तर शतनामावली सम्पूर्ण ॥

श्री परशुराम अष्टोत्तर शतनामावली के बारे में

श्री परशुराम अष्टोत्तर शतनामावली 108 दिव्य नामों वाला एक पवित्र स्तोत्र है, जो भगवान विष्णु के छठे अवतार भगवान परशुराम को समर्पित है। वे अपने योद्धा आत्मा और ऋषि के रूप में अपनी भूमिका के लिए प्रसिद्ध हैं। उन्होंने भ्रष्ट क्षत्रिय शासकों का संहार कर धर्म स्थापित किया, जो आध्यात्मिक ज्ञान और युद्ध कौशल का संतुलन दर्शाता है।

अर्थ

यह स्तोत्र भगवान परशुराम के गुणों की स्तुति करता है जिनमें उनका धर्म के प्रति अटूट समर्पण, अपार साहस, ज्ञान और न्याय स्थापना में उनकी भूमिका शामिल है। इन नामों का जाप शक्ति बढ़ाने, बाधाओं को दूर करने, सुरक्षा सुनिश्चित करने और आध्यात्मिक अनुशासन को प्रेरित करने वाला माना जाता है।

लाभ

  • साहस, शक्ति और दृढ़ संकल्प बढ़ाता है
  • बाधाएं और नकारात्मक प्रभाव दूर करता है
  • सुरक्षा और आध्यात्मिक मार्गदर्शन प्रदान करता है
  • न्याय, अनुशासन और धार्मिकता को बढ़ावा देता है
  • युद्धों और चुनौतियों में सफलता का समर्थन करता है

महत्व

श्री परशुराम अष्टोत्तर शतनामावली का जाप शक्ति, सुरक्षा और कठिनाइयों पर विजय प्राप्त करने के लिए अत्यंत शुभ माना जाता है। यह एक योद्धा ऋषि की विरासत का सम्मान करता है जो आध्यात्मिक ज्ञान और सक्रिय धर्म प्रवर्तन का समामेलन है।

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