श्री मातृ पंचकम्
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मातः सोहमुपस्थितोस्मि पुरतः पूर्वप्रतिज्ञान स्मरण,
प्रत्याश्रवी पुरही तेंटि समये प्राप्तुन समिपान तव ।
ग्रहाग्रसंमिशद्याय ह्यनुमतस्तुर्याश्रमण प्राप्तुवान,
यत्प्रीतै च समागतोहमधुन तस्यै जनन्यै नमः ॥
बृंते मातृसमा श्रुतिर्भगवती यद्भरदारण्यकाय,
तत्त्वान्नवेसत्यति मातृमञ्च पितरमाचार्यवानीत्यसौ ।
तत्रदौ किल मातृसिक्षणबिधिन सर्वोत्थान शासति,
पूज्यत्पूज्यतरान समर्थयति यान तस्यै जनन्यै नमः ॥
अम्बा तात इति स्वशिक्षणवशादुच्चारणप्रक्रियान,
या सूते प्रथमन् क्व शक्तिरेहि नो मातस्तु शिक्षान विना ।
व्युत्पत्तिन क्रमशश्च सर्वजनिकिन तत्त्वत्पदार्थेषु या,
ह्यधत्ते व्यावहारमप्यवकीलन तस्यै जनन्यै नमः ॥
इष्टानिष्टहिताहितादिदिशनाहुण वयान् शैशवे,
कीतान सुष्कुलवित् करण दधातो भोज्यसय बलिशः ।
मातृ वरित्सहसाह खलुत्तो भोज्यनभोज्यानि वा,
वयगसिष्यहिते च सुस्तरण तस्यै जनन्यै नमः ॥
आत्मज्ञानसमर्जनोपकरणान यद्देहयन्त्रं विदुः
तद्रोगादिभयान्मृगोरगरिपुव्रातदावन्ति स्वयम् ।
पुष्णन्ति शिशुमादरादगुरुकुलान प्रापय्य कालक्रमात
या सर्वज्ञाशिखामणिन वितनुते तस्यै जनन्यै नमः ॥
- श्री शंकराचार्य कृत्तम्
श्री मातृ पंचकम् के बारे में
श्री मातृ पंचकम अदि शंकराचार्य द्वारा अपनी माँ की श्रद्धांजलि में रचित पाँच मंत्रों की एक गहन और भावुक रचना है। यह गर्भधारण, प्रसव, पालन-पोषण और देखभाल के दौरान माँ के अपार कष्टों और त्यागों को दर्शाता है, और पुत्र के मन में अपनी माँ के प्रति गहरे कृतज्ञता और क्षमायाचन का भाव प्रकट करता है।
अर्थ
यह श्लोक माँ के प्रसव पीड़ा, बेचैनी की रातें, बच्चे के साथ बिस्तर साझा करना, शरीर का दुर्बल होना, और शारीरिक एवं मानसिक कष्टों का वर्णन करता है। यह एक स्वप्न का स्मरण करता है जिसमें माँ अपने पुत्र को साधु रूप में देखती है और उसे खोजने दौड़ती है। कवि पुत्र के कर्तव्य निभाने में असमर्थता का दुःख व्यक्त करता है और मृत्यु के समय उपस्थित न होने के लिए क्षमा मांगता है।
लाभ
- माताओं के प्रति गहरा सम्मान और कृतज्ञता उत्पन्न करता है
- निःस्वार्थ प्रेम और विनम्रता को प्रेरित करता है
- शांति और भावनात्मक उपचार प्रदान करता है
- परिवारिक कर्तव्यों और जिम्मेदारियों पर चिंतन को बढ़ावा देता है
महत्व
मातृ पंचकम अदि शंकराचार्य के कार्यों में अद्वितीय है क्योंकि यह किसी देवता की स्तुति या दर्शन की व्याख्या नहीं करता बल्कि अपनी माँ के लिए गहरा शोकगीत है। यह मातृत्व की पवित्रता और माँ-शिशु के अनंत बंधन को रेखांकित करता है।