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Sri Shukra Kavacham

ॐ अस्य श्री शुक्रकवचस्तोत्रमहामंत्रस्य भरद्वाज ऋषि: |
अनुष्टुप्चन्द: |
भगवान् शुक्रो देवता |
अं बीजं | गं शक्ति: |
वं कीलकं |
मम शुक्रग्रहप्रसाद सिद्ध्यर्थे जपे विनियोग: |

करण्यास: |

भां अंगुष्ठाभ्यां नम: |
भीं तर्जनीभ्यां नम: |
भूं मध्यामाभ्यां नम: |
भैं अनामिकाभ्यां नम: |
भौं कनिष्ठिकाभ्यां नम: |
भ: करतलकरपृष्ठाभ्यां नम: ||

अंगन्यास: |

भां हृदये नम: |
भीं शिरसे स्वाहा |
भूं शिखायै वषट् |
भैं कवचायं हुं |
भौं नेत्रत्रयाय वौषट् |
भ: अस्त्राय फट् |
भूम्भुवस्वुर्वोमिति दिग्बन्ध: ||

ध्यानम् –

शुक्रं चतुर्भुजं देवं अक्षमालाकमण्डलुम्
दण्डहस्तं च वरदं भानुज्वालाङ्गशोभितम् |
शुक्लाम्बरं शुक्लमाल्यं शुक्लगन्धानुलेपनम्
वज्रमाणिक्यभूषाढ्यं किरीटमकुटोज्ज्वलम् |
श्वेताश्वरथमारोहणं मेरुं चैव प्रदक्षिणम् ||

मृणालकुन्देन्दुपयोहिमप्रभं शिताम्बरं स्निग्धवलक्षमालिनम् |
समस्तशास्त्रश्रुतितत्त्वदर्शिनं ध्यानयेत्कविं वाञ्छितवस्तुसम्पदे || 1 ||

कवचम् –

शिरो मे भार्गव: पातु फालं पातु ग्रहाधिप: |
नेत्रे दैत्यगुरु: पातु श्रोत्रे श्रीचन्दनद्युति: || 2 ||

पातु मे नासिकां काव्यो वदनं दैत्यवन्दित: |
रसनामुशना: पातु कण्ठं श्रीकण्ठभक्तिमान् || 3 ||

भुजौ तेजोनिधि: पातु वक्षो योगविदां वर: |
अक्षमालाधरो रक्षेत् कुक्षिं मे चक्षुषांकर: || 4 ||

कटीं मे पातु विश्वात्मा सक्थिनी सर्वपूजित: |
जानुनि तु भरगु: पातु जङ्घे मे महतां वर: || 5 ||

गुल्फौ गुणनिधि: पातु पादौ मे पाण्डुराम्बर: |
सर्वाण्यङ्गानि मे पातु शुक्र: कविराहर्निषम् || 6 ||

या इदं कवचं दिव्यं पठेच्च श्रद्धयाय़ुक्त: |
न तस्य जायते पीडा भार्गवस्य प्रसादात: || 7 ||

इति श्रीस्कांदे महापुराणे शंकरसंहितायां शुक्रकवचं |

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