पञ्चमुख हनुमान कवचम्
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अस्य श्री पञ्चमुख हनुमान मंत्रस्य ब्रह्मा ऋषि: गायत्री छंद: पञ्चमुख विराट हनुमान देवता ह्रीं बीजं श्रीं शक्तिः क्रौं कीलकं क्रूं कवचं क्रैं अस्त्राय फट् इति दीग्बंधः |
श्री गरुड उवाच |
अथ ध्यानं प्रवक्ष्यामि श्रुणु सर्वांगसुंदरी |
यत्कृतं देवदेवेन ध्यानं हनुमतः प्रियं || 1 ||
पञ्चवक्त्रं महाभीमं त्रिपञ्चनयनैर्युतं |
बाहुभिरदशभिर्युक्तं सर्वकामार्थसिद्धिदं || 2 ||
पूर्वं तु वानरं वक्त्रं कोटिसूर्यसमप्रभं |
दंष्ट्राकरालवदनं भ्रुकुटीकुटिलेक्षणं || 3 ||
अस्यैव दक्षिणं वक्त्रं नारसिंहं महाद्भुतं |
अत्युग्रतेजोवपुषं भीषणं भयनाक्शनम् || 4 ||
पश्चिमं गरुडं वक्त्रं वक्रतुंडं महाबलम् |
सर्वनागप्रशमनं विषभूतादिकृन्तनम् || 5 ||
उत्तरं सौकरं वक्त्रं कृष्णं दीप्तं नभोप्रमम् |
पातालसिंहवेतालज्वररोगादिकृन्तनम् || 6 ||
ऊर्ध्वं हयाननं घोरं दानवान्तकरं परम |
येना वक्त्रेण विप्रेन्द्र तारकाख्यं महासुरम् || 7 ||
जघान शरणं तस्यात्सर्वशत्रुह्रम् परम |
ध्यान्त्वा पञ्चमुखं रुद्रं हनूमन्तं दयानिधिम् || 8 ||
खड्गं त्रिशूलं खट्वाङ्गं पासमङ्कुशपर्वतम् |
मुश्टिं कौमोडकीं वृक्षं धारयन्तं कमण्डलुम् || 9 ||
भिन्डिपालं ज्ञानमुद्रां दशभिर्मुनिपुंगवम् |
एतान्यायुधजालानि धारयन्तं भजाम्यहम् || 10 ||
प्रेतासनोपविष्टं तं सर्वाभरणभूषितम् |
दिव्यमाल्याम्बरधरं दिव्यगन्धानुलेपनम् |
सर्वाश्चर्यमयं देवं हनुमद्विश्वतोमुखम् || 11 ||
पञ्चास्यमच्युतमनेकविचित्रवर्ण-वक्त्रं शशाङ्कशिखरं कपिराजवaryं |
पीताम्बरादिमुकुटैरुपशोभिताङ्गं |
पिङ्गाक्षमाद्यमनिशं मनसा स्मरामि || 12 ||
मार्कटेशं महोत्साहं सर्वशत्रुह्रम् परम |
शत्रुं संहार मां रक्ष श्रीमन्नापदमुद्धर || 13 ||
हरिमर्कट मार्कट मन्त्रं इदं |
परिलिख्यति लिख्यति वामतले |
यदी नश्यति नश्यति शत्रुकुलं |
यदी मुञ्चति मुञ्चति वामलता || 14 ||
ॐ हरिमर्कटाय स्वाहा |
ॐ नमो भगवते पञ्चवदनाय पूर्वकपिमुखाय सकलशत्रुसंहारकाय स्वाहा |
ॐ नमो भगवते पञ्चवदनाय दक्षिणमुखाय करालवदनाय नरसिंहाय सकलभूतप्रमथनाय स्वाहा |
ॐ नमो भगवते पञ्चवदनाय पश्चिममुखाय गरुडाननाय सकलविषहाराय स्वाहा |
ॐ नमो भगवते पञ्चवदनाय उत्तर्मुखाय आदिवराहाय सकलसंपत्कराय स्वाहा |
ॐ नमो भगवते पञ्चवदनाय ऊर्ध्वमुखाय हयग्रीवाय सकलजनवशंकराय स्वाहा |
ॐ अस्य श्री पञ्चमुखहनुमानमंत्रस्य श्रीरामचन्द्र ऋषि: अनुष्टुपछंद: पञ्चमुखवीरहनुमान देवता हनुमान इति बीजं वायुपुत्र इति शक्तिः अञ्जनीसुत इति कीलकं श्रीरामदूतहनुमत्प्रसादसिद्ध्यर्थे जपे विनियोगः |
इति ऋष्यादिकं विन्यसेत |
अथा करन्यासः |
ॐ अञ्जनीसुताय अंगुष्ठाभ्यां नमः |
ॐ रुद्रमूर्तये तर्जनीभ्यां नमः |
ॐ वायुपुत्राय मध्यामाभ्यां नमः |
ॐ अग्निगर्भाय अनामिकाभ्यां नमः |
ॐ रामदूताय कनिष्ठिकाभ्यां नमः |
ॐ पञ्चमुखहनुमते करतालकपृष्ठाभ्यां नमः |
अथा अङ्गन्यासः |
ॐ अञ्जनीसुताय हृदया नमः |
ॐ रुद्रमूर्तये शिरसे स्वाहा |
ॐ वायुपुत्राय शिखायै वषट् |
ॐ अग्निगर्भाय कवचायं हुं |
ॐ रामदूताय नेत्रत्रयाय वौषट् |
ॐ पञ्चमुखहनुमते अस्त्राय फट् |
पञ्चमुखहनुमते स्वाहा इति दीग्बंधः |
अथा ध्यानं |
वन्दे वानरनारसिंहखगराट्क्रोधाश्ववक्त्राण्वितं
दिव्यालंकरणं त्रिपञ्चनयनं देदिप्यमानं रुचा |
हस्ताब्जैरसिखेठपुस्तकसुधाकुम्भाङ्कुशाद्रिं हलं
खट्वाङ्गं फणिभूरुहं दशभुजं सर्वारिवीरापहम् |
अथा मंत्रः |
ॐ श्रीरामदूताय आञ्जनेयाय वायुपुत्राय महाबलपराक्रमाय सीतादुःखनिवारणाय लङ्कादहनकारणाय महाबलप्रचण्डाय फाल्गुनसखाय कोलाहलसकलब्रह्माण्डविष्वरूपायसप्तसामुद्रनिर्लङ्घनाय पिङ्गलनयनाय अमितविक्रमाय सूर्यबिम्बफलसेवनाय दुष्टनिवारणाय दृष्टनिर्लङ्कृताय संजीविनीसञ्जीविताङ्गद-लक्ष्मणमहाकपिसैन्यप्राणदायदशकण्ठविध्वंसनाय रामेष्टाय महाफाल्गुनसखाय सीतासहितरामव्वरप्रदाय षट्प्रयोगागमपञ्चमुखवीरहनुमानमन्त्रजपे विनियोगः |
ॐ हरिमर्कटामर्कटाय बम्बम्बम्बम्बं वौषट् स्वाहा |
ॐ हरिमर्कटामर्कटाय फंफंफंफंफं फट् स्वाहा |
ॐ हरिमर्कटामर्कटाय खेङ्खेंखेंखेंखेंखें मारणाय स्वाहा |
ॐ हरिमर्कटामर्कटाय लुंलुंलुंलुंलुं आकर्षितसकलसंपत्कराय स्वाहा |
ॐ हरिमर्कटामर्कटाय धन्धनधनधनधं शत्रुस्तम्भनाय स्वाहा |
ॐ तंत्तंत्तंत्तंत्तं कूर्ममूर्तये पञ्चमुखवीरहनुमते परयन्त्र परतन्त्रउच्चाटनाय स्वाहा |
ॐ कङ्कङगंङं चञ्चञञ्जंञं तंत्तंढंढंणं तन्थन्दन्धंनं पम्पम्भम्बंमं यंरंलंवं शंषसंहं लङ्क्षं स्वाहा |
इति दीग्बंधः |
ॐ पूर्वकपिमुखाय पञ्चमुखहनुमते तंत्तंत्तंत्तंत्तं सकलशत्रुसंहरणाय स्वाहा |
ॐ दक्षिणमुखाय पञ्चमुखहनुमते करालवदनाय नरसिंहाय ॐ ह्रां ह्रीं ह्रूं ह्रैं ह्रौं ह्रह् सकलभूतप्रेतदमनाय स्वाहा |
ॐ पश्चिममुखाय गरुडाननाय पञ्चमुखहनुमते मम्मम्मम्मम्मं सकलविषहाराय स्वाहा |
ॐ उत्तरामुखाय आदिवराहाय लंलंलंलंलं नरसिंहाय नीलकण्ठमूर्तये पञ्चमुखहनुमते स्वाहा |
ॐ ऊर्ध्वमुखाय हयग्रीवाय रुंरुंरुंरुंरुं रुद्रमूर्तये सकलप्रयोजननिर्वाहकाय स्वाहा |
ॐ अञ्जनीसुताय वायुपुत्राय महाबलाय सीताशोकनिवारणाय श्रीरामचन्द्रकृपापादुकाय महावीर्यप्रमथनाय ब्रह्माण्डनाथाय कामदाय पञ्चमुखवीरहनुमते स्वाहा |
भूतप्रेतपिशाचब्रह्मराक्षसशाकिनीटाकिन्यंतरिक्षग्रह परयन्त्र परतन्त्रउच्चाटनाय स्वाहा |
सकलप्रयोजननिर्वाहकाय पञ्चमुखवीरहनुमते श्रीरामचन्द्रवर्प्रसादाय जञ्जजञ्जजञ्जं स्वाहा |
इदं कवचं पठित्वा तु महाकवचं पठेन्नरः |
एकवारं जपेत स्तोत्रं सर्वशत्रुनिवारणम् || 15 ||
द्विवारं तु पठेन्नित्यं पुत्रपौत्रप्रवर्धनम् |
त्रिवारं च पठेन्नित्यं सर्वसंपत्करं शुभम् || 16 ||
चतुर्वारं पठेन्नित्यं सर्वरोगनिवारणम् |
पञ्चवारं पठेन्नित्यं सर्वलोकवशंकरम् || 17 ||
षड्वारं च पठेन्नित्यं सर्वदेववशंकरम् |
सप्तवारं पठेन्नित्यं सर्वसौभाग्यदायकम् || 18 ||
अष्टवारं पठेन्नित्यं इच्छकामार्थसिद्धिदम् |
नववारं पठेन्नित्यं राजभोगमवाप्नुयात || 19 ||
दशवारं पठेन्नित्यं त्रैलोक्यज्ञानदर्शनम् |
रुद्रावृतिं पठेन्नित्यं सर्वसिद्धिर्भवेद्धृवम् || 20 ||
निर्बलो रोगयुक्तश्च महाव्याध्यादिपीडितः |
कवचस्मरणेनाiva महाबलमवाप्नुयात || 21 ||
इति सुदर्शनसंहिताय़ां श्रीरामचन्द्रसीता प्रोक्तं श्री पञ्चमुख हनुमान कवचम् |
पञ्चमुख हनुमान कवचम् के बारे में
श्री पंचमुखी हनुमान कवचम् भगवान हनुमान के पांच मुखों वाले रूप को समर्पित एक शक्तिशाली रक्षक स्तोत्र है, जो उनकी अत्यन्त शक्ति और दैवीय गुणों का प्रतीक हैं। इस कवच का जाप नकारात्मक शक्तियों, भय और बाधाओं से सुरक्षा के लिए किया जाता है।
अर्थ
यह स्तोत्र पंचमुखी हनुमान की कृपा का आह्वान करता है जो साहस, शक्ति और सुरक्षा प्रदान करता है। यह शत्रुओं, नकारात्मक प्रभावों और बाधाओं को दूर करता है, साथ ही ज्ञान, आत्मविश्वास और आध्यात्मिक विकास को बढ़ाता है।
लाभ
- नकारात्मक ऊर्जा, बुरी नजर, काला जादू और शत्रुओं से रक्षा करता है
- वास्तु दोष और ग्रह दोषों का निवारण करता है
- यात्रा के दौरान सुरक्षा और दुर्घटनाओं से बचाव करता है
- भय और शत्रुओं को दूर करता है, निर्भयता प्रदान करता है
- शक्ति, ज्ञान, सफलता और आध्यात्मिक उन्नति बढ़ाता है
महत्व
श्री पंचमुखी हनुमान कवचम् विशेष रूप से ग्रह दोष, भय और कठिनाइयों का सामना कर रहे भक्तों द्वारा जपा जाता है। इसे व्यापक सुरक्षा, साहस और जीवन में सफलता तथा आध्यात्मिक प्रगति के लिए आशीर्वाद प्रदान करने वाला माना जाता है।