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माँ कुस्मांडा देवी कवच

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हंसरे मे शिरं पातु कुस्मांडे भवानाशिनिम्।
हसलकरिं नेत्रेच, हसरौश्च ललाटकम्॥
कौमारी पातु सर्वगात्रे, वाराही उत्तरें तथा,
पूर्वे पातु वैष्णवी इन्द्रानी दक्षिणे मम।
दिक्विदिक्शु सर्वत्रेवा कुम्बीजं सर्वदावतु॥

माँ कुस्मांडा देवी कवच के बारे में

कुष्मांडा देवी कवच देवी दुर्गा के चौथे स्वरूप कुष्मांडा को समर्पित एक रक्षक स्तोत्र है, जिसकी पूजा नवरात्रि के चौथे दिन की जाती है। वह अपनी दिव्य मुस्कान से ब्रह्मांड की सृष्टि करने वाली देवी हैं, और इस कवच के माध्यम से उनकी कृपा से ऊर्जा, स्वास्थ्य, बल, समृद्धि और दुःखों व रोगों से मुक्ति की कामना की जाती है।

अर्थ

यह कवच कुष्मांडा देवी के तेजस्वी स्वरूप का वर्णन करता है जो सौरमंडल में निवास करती हैं और जिनकी मधुर मुस्कान से सृष्टि हुई। यह स्तोत्र देवी के विभिन्न दिव्य पहलुओं को उत्प्रेरित कर शरीर के सभी अंगों और दिशाओं की रक्षा मांगता है। नियमित पाठ से वातावरण शुद्ध होता है, भय, शोक और रोग दूर होते हैं, और समग्र कल्याण व सफलता मिलती है।

लाभ

  • ऊर्जा, उत्साह, शक्ति और आयु बढ़ाता है
  • दुःख, भय, रोग और नकारात्मक प्रभाव दूर करता है
  • परिवेश को शुद्ध करता है और भक्त की रक्षा करता है
  • समृद्धि, स्वास्थ्य और सौभाग्य लाता है
  • आध्यात्मिक विकास और प्रयासों में सफलता प्रदान करता है

महत्व

कुष्मांडा देवी कवच खासतौर पर नवरात्रि में देवी की कृपा, स्वास्थ्य, सुरक्षा और ऊर्जा प्राप्त करने के लिए जाप किया जाता है। यह दीर्घकालीन रोगों को दूर करने और भक्त के चारों ओर आध्यात्मिक सुरक्षा कवच बनाने में अत्यंत लाभकारी है।

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