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विशु उत्सव 2026 - मलयालम नववर्ष

तारीख़: १४ अप्रैल २०२६

पूरी तारीख

१४ अप्रैल २०२६ प्रातः ३:३० बजे (विषुक्कनी दर्शन) १४ अप्रैल २०२६ शाम ७:०० बजे

मुहूर्त समय भारत में

  • विषुक्कनी दर्शन

    प्रातः 3:30 से 5:00 बजे के बीच विषुक्कनी का दर्शन इस दिन का सबसे पवित्र अनुष्ठान है, जो धन और शुभता का प्रतीक है।

    १४ अप्रैल २०२६ प्रातः ३:३० बजे १४ अप्रैल २०२६ प्रातः ५:०० बजे

  • विशु कैणीट्टम और साध्य

    बुजुर्ग परिवारजन बच्चों को ‘कैणीट्टम’ (धन) देते हैं और पारंपरिक भोज ‘विशु साध्य’ में 20 से अधिक शाकाहारी व्यंजनों का आनंद लिया जाता है।

    १४ अप्रैल २०२६ दोपहर १२:०० बजे १४ अप्रैल २०२६ दोपहर २:०० बजे

परिचय

विशु केरल और तटीय तूलु क्षेत्रों में मनाया जाने वाला मलयालम नववर्ष है, जो सूर्य के मेष (मेदम) राशि में प्रवेश के अवसर पर मनाया जाता है। यह पर्व प्रकाश, संतुलन, आशा और समृद्धि का प्रतीक है। इस दिन की प्रमुख परंपराएँ हैं — विषुक्कनी (शुभ दर्शन), कैणीट्टम (उपहार वितरण) और साध्य (भोज)।

अन्य नाम

मलयालम नववर्ष, विषुक्कनी पर्व, मेदम संक्रांति

पूजा विधि

  • पूजा कक्ष को फूलों और दीयों से सजाएं।
  • एक पितल के पात्र (उरुली) में विषुक्कनी की सामग्री पूर्व दिशा में रखकर दीपक जलाएं।
  • भगवान विष्णु और भगवान कृष्ण की पूजा करें और अगरबत्ती, चंदन व पुष्प अर्पित करें।
  • विष्णु सहस्रनाम या कृष्ण स्तोत्र का पाठ करें।
  • पूजा के बाद परिवारजन वरिष्ठ व्यक्ति के क्रम में विषुक्कनी का दर्शन करते हैं।

अनुष्ठान

  • विशु से एक रात पहले घर में ‘विषुक्कनी’ की तैयारी की जाती है जिसमें समृद्धि के प्रतीक वस्तुएँ सजाई जाती हैं।
  • इसमें चावल, नारियल, ककड़ी, फल, सोना, दर्पण (वल्कण्णडी), सिक्के, दीपक (निलविलक्कु), कनिकोन्ना फूल और भगवान कृष्ण की प्रतिमा रखी जाती है।
  • प्रातःकाल परिवारजन सबसे पहले विषुक्कनी का दर्शन करते हैं जो वर्षभर की समृद्धि का संकेत माना जाता है।
  • बड़े सदस्यों द्वारा बच्चों को ‘कैणीट्टम’ (धन या उपहार) दिया जाता है।
  • दिन का समापन पारंपरिक भोज ‘विशु साध्य’ के साथ किया जाता है।

क्षेत्रीय विशेषताएँ

  • केरल में घरों में आतिशबाजी, नए वस्त्र (कोडी) और मंदिर दर्शन के साथ यह पर्व मनाया जाता है।
  • सबरीमला और गुरुवायूर मंदिरों में विशेष विषुक्कनी दर्शन और पूजा का आयोजन होता है।
  • मेंगलुरु और तूलुनाडु में इसे ‘बिसु’ कहा जाता है और समान परंपराओं का पालन किया जाता है।
  • घरों में केले के पत्ते, कनिकोन्ना फूल और दीपक से सजावट की जाती है जो प्रकाश और नवजीवन का प्रतीक है।

इतिहास

‘विशु’ शब्द संस्कृत के ‘विषुव’ से लिया गया है जिसका अर्थ होता है ‘समान’, जो दिन और रात के समान होने के वसंत विषुव के दिन का संकेत करता है। यह केरल में कृषि वर्ष का आरंभ है। पौराणिक रूप से यह भगवान कृष्ण की नरकासुर पर विजय तथा सूर्यदेव के पूर्व की ओर लौटने का प्रतीक है।

अतिरिक्त जानकारी

  • विशु सूर्य और पृथ्वी के संतुलन का प्रतीक है जो वसंत विषुव के समय प्रकृति के सामंजस्य को दर्शाता है।
  • विशुक्कनी में देखी गई वस्तुओं के समान वर्षभर संपन्नता रहने का विश्वास किया जाता है।
  • यह दिन नवजीवन, संतुलन और सृजन के प्रति आभार का संदेश देता है।
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