उत्तरायण 2026
तारीख़: १४ जनवरी २०२६
पूरी तारीख
१४ जनवरी २०२६ सुबह ९:०३ बजे – १५ जनवरी २०२६ शाम ६:०० बजे
मुहूर्त समय भारत में
उत्तरायण संक्रांति क्षण
वह क्षण जब सूर्य मकर राशि में प्रवेश करता है, इस खगोलीय परिवर्तन की शुरुआत।
१४ जनवरी २०२६ सुबह ९:०३ बजे – १४ जनवरी २०२६ सुबह ९:०३ बजे
अंतर्राष्ट्रीय पतंग महोत्सव
अहमदाबाद के साबरमती रिवरफ्रंट पर आयोजित, ४० से अधिक देशों के पतंगबाज शामिल।
११ जनवरी २०२६ सुबह १०:०० बजे – १४ जनवरी २०२६ शाम ६:०० बजे
वासी उत्तरायण
अगले दिन संगीत, बचे हुए भोज और शाम की पतंगबाज़ी के साथ मनाया जाता है।
१५ जनवरी २०२६ सुबह १०:०० बजे – १५ जनवरी २०२६ शाम ६:०० बजे
परिचय
उत्तरायण सूर्य के उत्तरायण गमन का पर्व है जिसे गुजरात में भव्य पतंग उत्सव के रूप में मनाया जाता है। इस दिन रंग-बिरंगी पतंगें आकाश में उड़ती हैं जो स्वतंत्रता, एकता और आनंद का प्रतीक हैं।
अन्य नाम
अंतर्राष्ट्रीय पतंग महोत्सव, मकर संक्रांति, वासी उत्तरायण
पूजा विधि
- सूर्योदय से पहले स्नान करके शुभ उत्तरायण का स्वागत करें।
- सूर्य देव को अर्घ्य दें और सूर्य मंत्रों का जाप करें।
- तिल, गुड़, चावल और फल अर्पित करें।
- पड़ोसियों और जरूरतमंदों में मिठाई और अन्न बांटें।
- दिनभर पतंग उड़ाने और सामुदायिक उत्सव का आनंद लें।
- स्वास्थ्य, समृद्धि और सुख के लिए प्रार्थना करें।
अनुष्ठान
- सूर्य देव को अर्घ्य देकर दिन की शुरुआत करें।
- भोर से ही छतों और मैदानों पर पतंग उड़ाएं।
- उंधियू, चिकी और जलेबी जैसे पारंपरिक व्यंजन बनाएं।
- मित्रों और पड़ोसियों के साथ पतंग प्रतियोगिता करें।
- संध्या समय पतंगों में ‘तुkkल’ (दीप) जलाकर आकाश सजाएं।
- दूसरे दिन वासी उत्तरायण के रूप में भोज और संगीत उत्सव मनाएं।
क्षेत्रीय विशेषताएँ
- गुजरात का आसमान रंगीन पतंगों से भर जाता है।
- अहमदाबाद का साबरमती रिवरफ्रंट अंतर्राष्ट्रीय पतंग महोत्सव का केंद्र होता है।
- उंधियू, चिकी और जलेबी जैसे व्यंजन पर्व का प्रमुख हिस्सा हैं।
- गांवों में मेले, लोकगीत और अलाव के साथ उत्सव मनाया जाता है।
इतिहास
उत्तरायण का इतिहास सदियों पुराना है और यह सूर्य के मकर राशि में प्रवेश का प्रतीक है। गुजरात में इसे १९८९ से अहमदाबाद के साबरमती रिवरफ्रंट पर आयोजित अंतर्राष्ट्रीय पतंग महोत्सव के माध्यम से विश्व प्रसिद्धि मिली, जिसमें ४० से अधिक देशों से पतंगबाज भाग लेते हैं।
अतिरिक्त जानकारी
- सर्दियों के अंत और फसल के आगमन का प्रतीक।
- आनंद, स्वतंत्रता और एकता को दर्शाता है।
- साझेदारी, सामुदायिक एकता और सांस्कृतिक गर्व का संदेश देता है।
