तुलसी विवाह २०२६ – तुलसी व विष्णु का पवित्र विवाह
तारीख़: २१ नवंबर २०२६
पूरी तारीख
२१ नवंबर २०२६ सुबह (सूर्योदय के बाद) – २१ नवंबर २०२६ शाम (सूर्यास्त से पहले)
मुहूर्त समय भारत में
घर में तुलसी विवाह समारोह
परिवार अपने तुलसी पौधे को सजाते हैं और 21 नवंबर २०२६ शाम को विवाह अनुष्ठान करते हैं, माला बदलते हैं और वैवाहिक सौहार्द व समृद्धि के लिए आशीर्वाद मांगते हैं।
२१ नवंबर २०२६ शाम सूर्यास्त के बाद – २१ नवंबर २०२६ रात (मध्यरात्रि से पहले)
परिचय
तुलसी विवाह एक हर्षोल्लासपूर्ण हिंदू पर्व है, जो कार्तिक शुक्ल द्वादशी (या उसके निकट) को मनाया जाता है, जिसमें पवित्र तुलसी पौधे का भगवान विष्णु (या उनके अवतार कृष्ण/शालिग्राम) से प्रतीकात्मक रूप में विवाह होता है। यह विवाह-मौसम की शुभ शुरुआत का प्रतीक है तथा भक्ति, पवित्रता और प्रकृति-दिव्य मिलन का संदेश देता है।
अन्य नाम
तुलसी कल्याणम, तुलसी विवाह समारोह
पूजा विधि
- पहले पूजा-स्थान को स्वच्छ एवं पवित्र करें, पारंपरिक साफ कपड़े पहनें।
- तुलसी पौधे को दाईं ओर और विष्णु की छवि को बाईं ओर (या पारिवारिक परंपरा के अनुसार) रखें।
- मण्डप को रंगोली, आम-पत्ते, फूल और दीये/लाम्प से सजाएं।
- तुलसी को जल एवं फूल अर्पित करें, फिर यदि हो सके तो विष्णु छवि पर अभिषेक/जल छिड़काव करें।
- तुलसी व विष्णु दोनों को हल्दी-पेस्ट व कुमकुम लगाएं; तुलसी के पौधे को लाल कपड़े से बांधें ताकि वह दुल्हन-रूप प्रदर्शित करे।
- तुलसी पौधे और विष्णु प्रतिमा के बीच वर-माला बदलें; गेंथबन्धन के लिए आम-पत्ता / मगरगुच्छा का तार बाँधें।
- दान (दक्षिणा) दें, प्रसाद वितरित करें और पूजा को भजन/कीर्तन से समाप्त करें।
अनुष्ठान
- तुलसी पौधे को कपड़ा, फूल एवं पारंपरिक आभूषण से सजाना।
- मैंडप के रूप में गन्ने या केले के डंठल से विवाह-मण्डप तैयार करना।
- तुलसी के समीप भगवान विष्णु (या शालिग्राम/कृष्ण) की मूर्ति/छवि रखना।
- पूजा करना: पीली हल्दी, कुमकुम, फूल, मिठाई एवं फल तुलसी व विष्णु को अर्पित करना।
- तुलसी और विष्णु की ओर से वर-माला (गले में माला) का आदान-प्रदान करना, जो विवाह का प्रतीक है।
- आरती के साथ पूजा समाप्त करना, प्रसाद वितरित करना और विवाह-समृद्धि एवं सौहार्द की कामना करना।
क्षेत्रीय विशेषताएँ
- उत्तर भारत में तुलसी विवाह को मंदिरों अथवा घरों में विवाह-मण्डप बनाकर मनाया जाता है और इसे विवाह-मौसम की औपचारिक शुरुआत माना जाता है।
- बहुत सी बंगाली परिवारों में इस दिन भजन-पाठ और सामुदायिक समारोहों के माध्यम से भव्य अनुष्ठान होते हैं।
- गुजरात व महाराष्ट्र में तुलसी पौधे को आभूषणों से सजाया जाता है और मंदिरों में विशेष कल्याणम समारोह आयोजित होते हैं।
- तुलसी विवाह के बाद लोग आमतौर पर शादी-योजनाएँ शुरू करते हैं और आने वाले महीनों के लिए शुभ विवाह-तिथि तय करते हैं।
इतिहास
हिंदू मिथकानुसार, तुलसी पौधा देवी वृंदा/तुलसी का पृथ्वी-रूप है, जिनका विवाह दानव राजा जलंधर से हुआ था। जब भगवान विष्णु ने जलंधर का वध किया और वृंदा की श्राप स्वरूप शालिग्राम बन गए, तब उन्हें तुलसी-पौधे का रूप दिया गया। कार्तिक मास की ग्यारहवीं तिथि को विष्णु ने उनका विवाह किया। यह उत्सव उस दिव्य मिलन को दर्शाता है और चतुर्मास के अंत का प्रतीक है, जब विवाह-कार्य फिर से शुरू होता है। :contentReference[oaicite:2]{index=2}
अतिरिक्त जानकारी
- तुलसी विवाह प्रकृति (तुलसी) व दिव्यता (विष्णु) के मिलन का प्रतीक है और चतुर्मास के अशुभ काल के अंत का सूचक है। :contentReference[oaicite:4]{index=4}
- तुलसी पौधे को विशेष सम्मान देने एवं उसके ‘विवाह’ का उत्सव मनाने से हिंदू घरों में उसकी आध्यात्मिक महत्ता और अधिक स्थापित होती है।
- इस दिन के बाद भारत के कई भागों में परंपरागत विवाह-मौसम (विवाह ऋतु) प्रारंभ होता है।
