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सुब्रह्मण्य शष्ठी २०२६ – भगवान सुब्रह्मण्य (मुरुगन) की दुष्टों पर विजय

तारीख़: १५ दिसंबर २०२६

पूरी तारीख

१४ दिसंबर २०२६ शाम ७:१५ बजे (तिथि आरंभ) १५ दिसंबर २०२६ रात्रि ९:१९ बजे (तिथि समाप्त)

मुहूर्त समय भारत में

  • सूरसम्हारम – महा विजय उत्सव

    कई मुरुगन मंदिरों में छः-दिवसीय कण्ढ शष्ठी व्रत का समापन ‘सूरसम्हारम’ अनुष्ठान के साथ होता है, जहाँ भक्त भगवान मुरुगन द्वारा राक्षस का पराभव देखते हैं।

    १५ दिसंबर २०२६ शाम (अनुमानित) १५ दिसंबर २०२६ रात्रि (अनुमानित)

परिचय

सुब्रह्मण्य शष्ठी हिन्दू कैलेंडर के मङ्गल मास (मार्गशीर्ष) की शुक्ल पक्ष की शष्ठी तिथि को मनाया जाने वाला प्रमुख त्योहार है। यह भगवान मुरुगन (सुब्रह्मण्य/स्कन्द/कार्तिकेय) को समर्पित है और राक्षस तारकासुर पर उनकी विजय की स्मृति है। इस दिन उपवास, मंदिर दर्शन व विशेष पूजाएँ की जाती हैं, विशेषकर दक्षिण भारत में।

अन्य नाम

स्कन्द शष्ठी, कंड शष्ठी, मुरुगन शष্ঠी, कुक्के सुब्रमण्य शष्ठी

पूजा विधि

  • पूजा-स्थान को स्वच्छ करें एवं भगवान मुरुगन की प्रतिमा या छवि स्थापित करें।
  • दीप जलाएं तथा प्रतिमा के सामने ताज़ा फूल एवं फल अर्पित करें।
  • अभिषेक करें: दूध, मधु व जल प्रतिमा पर छिड़कें व मुरुगन मंत्रों का जाप करें।
  • वेल-भाला या उसका प्रतीक रूप अर्पित करें और प्रतिमा को माला पहनाएं।
  • पूजा आरती के साथ समाप्त करें, प्रसाद वितरित करें और अपनी रक्षा हेतु मुरुगन को मन-वचन समर्पित करें।

अनुष्ठान

  • भक्त प्रायः सूर्योदय से संध्या तक या पूरे दिन का उपवास रखते हैं।
  • मुरुगन मंदिरों में दर्शन करने, विशेष पूजा-अभिषेक में भाग लेने का कार्यक्रम होता है।
  • फूल, फल, दूध, मधु एवं वेल (भाला) प्रतीक भगवान मुरुगन को अर्पित किए जाते हैं।
  • कुछ स्थानों पर सूरसम्हारम — राक्षस पर विजय का नाट्य-अनुष्ठान आयोजित होता है।
  • ‘स्कन्द शष्ठी कवचम्’ का जप व भजन-स्तोत्र का पाठ किया जाता है।

क्षेत्रीय विशेषताएँ

  • तमिलनाडु में मुरुगन के छह प्रमुख मंदिरों (अरुपदाइ वेदु) में इस त्योहार के दौरान बहुत अधिक भक्त एकत्र होते हैं, विशेष रूप से पाळानी, थिरुथनी व त्रिचेंदूर में।
  • कर्नाटक के कुक्के सुब्रमण्य मंदिर में इसे ‘कुक्के सुब्रमण्य शष्ठी’ कहा जाता है और पूरे दक्षिण भारत से भक्त आते हैं।
  • केरल व आंध्र प्रदेश में भी मुरुगन भक्त इस दिन विशेष व्रत, मंदिर शोभायात्रा व अभिषेक करते हैं।

इतिहास

हिंदू पुराणों के अनुसार, भगवान मुरुगन को दुष्ट तारकासुर का नाश करने तथा ब्रह्मांडीय संतुलन बहाल करने के लिए जन्म लिया था। उन्होंने देवताओं की सेना का नेतृत्व किया और राक्षस को परास्त किया; उनकी इस विजय को प्रत्येक वर्ष शष्ठी तिथि को उत्सव के रूप में मनाया जाता है। तमिलनाडु के छह प्रमुख मुरुगन मंदिर (अरुपदाइ वेदु) इस दिन बहुत भक्ति-भाव से समारोह करते हैं। :contentReference[oaicite:3]{index=3}

अतिरिक्त जानकारी

  • ‘शष्ठी’ छठीं चंद्र-तिथि को कहा जाता है, जब भगवान मुरुगन ने राक्षस तारकासुर का नाश किया था।
  • इस दिन व्रत रखना व मुरुगन की पूजा करना पापों का नाश, बाधाओं का दूर होना तथा भक्तों को साहस एवं ज्ञान प्राप्ति का मार्ग है।
  • भले ही विभिन्न क्षेत्रों में तिथियों में थोड़ा भिन्नता हो, १५ दिसंबर २०२६ कई भागों में सुब्रह्मण्य शष्ठी के रूप में मनाई जाती है।
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