शाकंभरी पूर्णिमा 2026
तारीख़: ३ जनवरी २०२६
पूरी तारीख
२ जनवरी २०२६ शाम ६:५३ बजे – ३ जनवरी २०२६ दोपहर ३:३२ बजे
मुहूर्त समय भारत में
शाकंभरी जयंती पूजा
शाकुंभरी देवी मंदिरों में माता शाकंभरी के दिव्य अवतार की स्मृति में विशेष पूजा आयोजन किया जाता है।
३ जनवरी २०२६ सुबह ६:०० बजे – ३ जनवरी २०२६ दोपहर १:०० बजे
अन्नकूट सेवा
भक्तजन माता को भोग हेतु विशाल मात्रा में शाकाहारी भोजन तैयार करते हैं और इसे श्रद्धालुओं में वितरित करते हैं।
३ जनवरी २०२६ सुबह ११:०० बजे – ३ जनवरी २०२६ दोपहर २:०० बजे
परिचय
शाकंभरी पूर्णिमा, जिसे शाकंभरी जयंती भी कहा जाता है, देवी दुर्गा के शाकंभरी रूप की उपासना का पर्व है जिन्होंने भयानक अकाल के समय पृथ्वी को साग-सब्ज़ियों से पुनः जीवन दान दिया। यह पर्व पौष पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है और शाकंभरी नवरात्रि के समापन का प्रतीक है।
अन्य नाम
शाकंभरी जयंती, शाकुंभरी देवी जयंती, शाकंभरी पूर्णिमा व्रत
पूजा विधि
- प्रातःकाल स्नान कर पूजा के लिए स्थान तैयार करें।
- माता शाकंभरी की मूर्ति या चित्र को फलों, सब्ज़ियों और अनाजों से सजाएँ।
- विभिन्न साग-सब्ज़ियों और फलों का भोग लगाएँ।
- दुर्गा सप्तशती या शाकंभरी स्तोत्र का पाठ करें।
- प्रसाद वितरित कर जरूरतमंदों को भोजन कराएँ।
अनुष्ठान
- श्रद्धालु पौष पूर्णिमा के दिन उपवास रखकर माता शाकंभरी की पूजा करते हैं।
- फलों, सब्ज़ियों और हरे पत्तों से देवी की पूजा की जाती है।
- 'ॐ शाकंभर्यै नमः' मंत्र का जाप और संध्या आरती की जाती है।
- अन्नदान और ब्राह्मणों व गरीबों को दान किया जाता है।
- भक्त सहारनपुर या अन्य शाकुंभरी देवी मंदिरों में दर्शन करते हैं।
क्षेत्रीय विशेषताएँ
- उत्तर प्रदेश के सहारनपुर स्थित शाकुंभरी देवी मंदिर में सबसे बड़ा उत्सव मनाया जाता है।
- राजस्थान में सांभर और भीमलत माता मंदिरों में श्रद्धालु पूजा-अर्चना करते हैं।
- कर्नाटक और महाराष्ट्र में दुर्गा मंदिरों में हरी सब्ज़ियों का भोग चढ़ाकर उत्सव मनाया जाता है।
- दक्षिण भारत में यह दिन शाकंभरी नवरात्रि का समापन दिवस माना जाता है।
इतिहास
पुराणों के अनुसार माता दुर्गा ने शाकंभरी रूप धारण कर पृथ्वी के भयंकर अकाल और खाद्य संकट का अंत किया। 'शाका' का अर्थ सब्जी और 'अंभरी' का अर्थ उसे प्रदान करने वाली से है। उत्तर प्रदेश के सहारनपुर स्थित शाकुंभरी देवी मंदिर इस दिन हजारों श्रद्धालुओं के लिए मुख्य तीर्थ स्थान है।
अतिरिक्त जानकारी
- शाकंभरी पूर्णिमा पौष पूर्णिमा के साथ होती है और यह समृद्धि एवं पोषण का प्रतीक है।
- इस दिन देवी की पूजा से शरीर के स्वास्थ्य और अन्न-संपन्नता का आशीर्वाद प्राप्त होता है।
- यह उन विरल पर्वों में से एक है जिसमें साग-सब्जियों को पूजा में विशेष महत्व दिया जाता है।
