जगन्नाथ पुरी रथ यात्रा 2026
तारीख़: १६ जुलाई २०२६
पूरी तारीख
१६ जुलाई २०२६ सुबह ११:०० बजे – २४ जुलाई २०२६ शाम ७:०० बजे
मुहूर्त समय भारत में
रथ यात्रा शोभायात्रा
मुख्य शोभायात्रा जिसमें भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा के रथों को हजारों भक्त खींचकर जगन्नाथ मंदिर से गुंडीचा मंदिर तक ले जाते हैं।
१६ जुलाई २०२६ सुबह ११:०० बजे – १६ जुलाई २०२६ शाम ६:०० बजे
बहुदा यात्रा (वापसी यात्रा)
२४ जुलाई २०२६ को गुंडीचा मंदिर से जगन्नाथ मंदिर की वापसी यात्रा ‘बहुदा यात्रा’ के नाम से मनाई जाती है, जिसमें भगवान स्वर्ण वस्त्र धारण करते हैं।
२४ जुलाई २०२६ सुबह १०:०० बजे – २४ जुलाई २०२६ शाम ७:०० बजे
परिचय
रथ यात्रा या ‘चariot उत्सव’ ओडिशा के पुरी में प्रतिवर्ष आयोजित होने वाला एक पवित्र हिंदू पर्व है। इसमें भगवान जगन्नाथ, भगवान बलभद्र और माता सुभद्रा जगन्नाथ मंदिर से गुंडीचा मंदिर तक भव्य रथों में यात्रा करते हैं, जो उनके आशीर्वाद और आत्मीय भेंट का प्रतीक है।
अन्य नाम
जगन्नाथ रथ यात्रा, पुरी कार उत्सव, पुरी चariot उत्सव
पूजा विधि
- सूर्योदय से पूर्व स्नान कर अपने वातावरण को शुद्ध करें।
- प्रक्रिया से पहले भगवान जगन्नाथ को तुलसी, पुष्प और मिठाई अर्पित करें।
- ‘जगन्नाथ अष्टकम’ और विष्णु सहस्रनाम का पाठ करें।
- दीप और धूप जलाकर पूर्व दिशा की ओर आरती करें।
- मंदिरों में दर्शन करें या रथ खींचने के सामूहिक अनुष्ठान में भाग लें।
अनुष्ठान
- भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा की मूर्तियाँ क्रमशः नंदीघोष, तलध्वज और दर्पदलना रथों पर स्थापित की जाती हैं।
- भक्त ‘जय जगन्नाथ’ के जयघोष के साथ रस्सियों से विशाल रथों को खींचते हैं।
- ढोल-नगाड़ों और शंखध्वनि के साथ यात्रा प्रारंभ होती है।
- गुंडीचा मंदिर में देवी-देवता नौ दिनों तक विश्राम करते हैं।
- वापसी यात्रा (बहुदा यात्रा) में वे पुनः जगन्नाथ मंदिर लौटते हैं।
क्षेत्रीय विशेषताएँ
- ओडिशा के पुरी में मुख्य रथ यात्रा होती है जहाँ हर वर्ष लाखों श्रद्धालु एकत्र होते हैं।
- अहमदाबाद में इस्कॉन मंदिर में पुरी परंपरा के अनुरूप भव्य रथ उत्सव आयोजित किया जाता है।
- कोलकाता में शहरभर में शोभायात्रा और सांस्कृतिक कार्यक्रमों के साथ रथ यात्रा मनाई जाती है।
- हैदराबाद, बेंगलुरु और इस्कॉन के अंतरराष्ट्रीय केंद्रों में भी यह उत्सव बड़े उत्साह से मनाया जाता है।
इतिहास
रथ यात्रा की परंपरा प्राचीन काल से है जिसका उल्लेख स्कंद पुराण, ब्रह्म पुराण और पद्म पुराण में मिलता है। यह पर्व सार्वभौमिक भाईचारे और समानता का प्रतीक है — इस दिन भगवान जगन्नाथ और उनके भाई-बहन मंदिर से बाहर आते हैं जिससे सभी को दर्शन का अवसर मिलता है। हर वर्ष पवित्र लकड़ी से नए रथ बनाए जाते हैं जो नवारंभ का प्रतीक हैं।
अतिरिक्त जानकारी
- रथ यात्रा आत्मा की यात्रा का प्रतीक है जो अज्ञान से ज्ञान की ओर जाती है।
- यह वर्ष का एकमात्र दिन है जब भक्त देवताओं का मंदिर के बाहर दर्शन कर सकते हैं।
- हर १२ से १९ वर्षों में ‘नवकलेवर’ के अवसर पर नई मूर्तियाँ और रथ तैयार किए जाते हैं।
