राजा पर्व २०२६
तारीख़: 14 जून से 16 जून २०२६
पूरी तारीख
14 जून २०२६ सुबह – 16 जून २०२६ शाम
मुहूर्त समय भारत में
पहिली राजा
राजा पर्व का पहला दिन, जिसमें तेल लगाया जाता है, नई सामग्री पहनी जाती है और सजावट की जाती है।
14 जून २०२६ सुबह – 14 जून २०२६ शाम
मिथुन संक्रांति
दूसरा दिन जो सूर्य के मिथुन राशि में प्रवेश और मानसून की शुरुआत को दर्शाता है।
15 जून २०२६ सुबह – 15 जून २०२६ शाम
भुदाहा (बासी राजा)
तीसरा दिन जब महिलाएं माता भूमि का प्रतीक सहीत बेहतर का स्नान कर शुद्धिकरण करती हैं।
16 जून २०२६ सुबह – 16 जून २०२६ शाम
परिचय
राजा पर्व एक सांस्कृतिक त्योहार है जो मासिक धर्म, उर्वरता और स्त्रीत्व का उत्सव है, जो मुख्य रूप से ओडिशा में विशिष्ट रीति-रिवाजों, अनुष्ठानों और महिलाओं के लिए खुशियों वाले कार्यक्रमों के साथ मनाया जाता है।
अन्य नाम
राजा संक्रांति, झूला उत्सव
पूजा विधि
- घर, रसोई और बेहतर की साफ-सफाई से शुरुआत करें।
- माता भूमि का प्रतीक बनाते हुए हल्दी लगाएं।
- फूल और पारंपरिक वस्तुओं से घरों और साड़ियों की शोभा बढ़ाएं।
- सांस्कृतिक गीत, नृत्य और सामूहिक भोज से उत्सव मनाएं।
अनुष्ठान
- महिलाएं गृहकार्य और कृषि से विराम लेती हैं।
- नई साड़ियां पहनती हैं और पारंपरिक आभूषण सजाती हैं।
- परंपरागत खेल खेलती हैं और पेड़ की झूलों पर झूलती हैं।
- भूमि माता के प्रतीक हुए बेहतर को हल्दी, फूल और फल अर्पित करती हैं।
क्षेत्रीय विशेषताएँ
- ओडिशा में स्त्रीत्व और प्रकृति का मुख्य पर्व।
- महिलाओं को विश्राम, सांस्कृतिक खेल और सामाजिक एकता का अवसर।
- पृथ्वी की उर्वरता चक्र और कृषि तैयारी पर जोर।
इतिहास
यह त्योहार पृथ्वी के मासिक धर्म चक्र का प्रतीक है और जीवन धारण करने वाली स्त्री ऊर्जा का सम्मान करता है। यह मानसून की शुरुआत और खेती के लिए भूमि की तैयारी का संकेत देता है।
अतिरिक्त जानकारी
- राजा पर्व स्त्री शक्ति और प्रकृति चक्रों के सम्मान को दर्शाता है।
- यह महिलाओं की सामाजिक भूमिकाओं के उत्सव के लिए विशेष है।
- पारंपरिक नृत्य, संगीत और पोंडा पीठा जैसे पकवान प्रमुख हैं।
