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नरसिंह जयंती 2026 – वैशाख शुक्ल चतुर्दशी

तारीख़: ३० अप्रैल २०२६

पूरी तारीख

२९ अप्रैल २०२६ रात ७:५१ बजे ३० अप्रैल २०२६ रात ९:१२ बजे

मुहूर्त समय भारत में

  • नरसिंह संध्या पूजा

    मुख्य पूजा संध्या काल (4:17 बजे से 6:56 बजे) में की जाती है जब भगवान नरसिंह भक्त प्रह्लाद की रक्षा हेतु प्रकट हुए थे।

    ३० अप्रैल २०२६ शाम ४:१७ बजे ३० अप्रैल २०२६ शाम ६:५६ बजे

  • चतुर्दशी रात्रि जागरण

    भक्त पूरी रात्रि जागरण करते हैं और नरसिंह स्तोत्र व भजन गाकर भगवान की उग्र लीला का स्मरण करते हैं।

    ३० अप्रैल २०२६ रात ९:०० बजे १ मई २०२६ प्रातः ५:३० बजे

परिचय

नरसिंह जयंती भगवान विष्णु के उग्र अवतार ‘नरसिंह’ के जन्म का पर्व है, जो धर्म के रक्षक माने जाते हैं। आधा मनुष्य और आधा सिंह स्वरूप में प्रकट हुए यह अवतार सत्य और भक्ति की विजय तथा अहंकार और अधर्म के विनाश का प्रतीक है।

अन्य नाम

नरसिंह चतुर्दशी, नरसिंह जयंती, नृसिंह जयंती

पूजा विधि

  • पूजा स्थल को शुद्ध कर भगवान श्री नरसिंह व प्रह्लाद की मूर्ति या चित्र स्थापित करें।
  • घी का दीपक जलाकर तुलसी पत्ते, लाल पुष्प, फल और धूप अर्पित करें।
  • दूध, दही, घी, शहद और शक्कर से पंचामृत अभिषेक करें।
  • नरसिंह कवच, लक्ष्मी-नरसिंह अष्टोत्तर का पाठ करें और भोग में गुड़ व लाई अर्पित करें।
  • शाम की आरती के समय ‘उग्रं वीरं महा विष्णुम्…’ मंत्र का जाप करें।

अनुष्ठान

  • भक्त सूर्योदय से अगले दिन प्रातः तक उपवास रखते हैं, मध्यान्ह में संकल्प लेते हैं और अगले दिन पूजन के बाद व्रत का पारायण करते हैं।
  • संध्या समय भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी का संयुक्त पूजन किया जाता है क्योंकि इसी समय भगवान नरसिंह प्रकट हुए थे।
  • प्रह्लाद सहित भगवान नरसिंह की प्रतिमा को स्नान कराकर चंदन, पुष्प और वस्त्रों से सजाया जाता है।
  • नरसिंह कवच, विष्णु सहस्रनाम या नरसिंह स्तोत्र का पाठ कर बल और दिव्य सुरक्षा की प्रार्थना की जाती है।
  • अन्नदान, दीपदान और सेवाकार्य करना इस दिन अत्यंत शुभ माना जाता है।

क्षेत्रीय विशेषताएँ

  • आंध्र प्रदेश के अहोबिलम और सिम्हाचलम जैसे मंदिरों में भव्य नरसिंह जयंती पर्व का आयोजन होता है।
  • दक्षिण भारत में विशेष लक्ष्मी-नरसिंह पूजन, अभिषेक और नरसिंह कवच स्तोत्र का पाठ किया जाता है।
  • उत्तर भारत में बनारस, मथुरा और वृंदावन के नरसिंह मंदिरों में विशेष दर्शन होते हैं।
  • विश्वभर के इस्कॉन केंद्रों में संकीर्तन, हवन और ‘प्रह्लाद चरित्र’ पर प्रवचन आयोजित किए जाते हैं।

इतिहास

भागवत पुराण के अनुसार हिरण्यकशिपु ने ब्रह्मा से वरदान प्राप्त कर खुद को अजेय समझ लिया और भगवान विष्णु से द्वेष करने लगा। उसका पुत्र प्रह्लाद विष्णुभक्त था, इसलिए हिरण्यकशिपु ने उसे मारने का प्रयत्न किया। तभी भगवान विष्णु ‘नरसिंह’ अवतार में प्रकट हुए — न मनुष्य, न पशु; न दिन, न रात; न अंदर, न बाहर — और हिरण्यकशिपु का अंत कर दिया। यह घटना धर्म की अधर्म पर विजय और भक्तों की रक्षा का प्रतीक है।

अतिरिक्त जानकारी

  • भगवान नरसिंह भय और अज्ञान के नाशक माने जाते हैं और भक्तों को साहस और सुरक्षा प्रदान करते हैं।
  • ‘उग्रं वीरं महा विष्णुम्’ मंत्र से नकारात्मक ऊर्जा दूर होती है और आंतरिक शक्ति बढ़ती है।
  • श्रद्धा सहित नरसिंह जयंती व्रत करने से स्वास्थ्य, समृद्धि और विपत्तियों पर विजय प्राप्त होती है।
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