कोवलम मंदिर उत्सव २०२६
तारीख़: जनवरी से मार्च २०२६
पूरी तारीख
जनवरी २०२६ सुबह १०:०० बजे – मार्च २०२६ शाम ६:०० बजे
मुहूर्त समय भारत में
गांव मंदिर स्थापना
कोवलम गांव के मंदिर की पारंपरिक स्थापना और सजावट।
जनवरी २०२६ सुबह १०:०० बजे – जनवरी २०२६ शाम ५:०० बजे
सांस्कृतिक प्रदर्शन
दैनिक लोक संगीत, नृत्य और मार्शल आर्ट्स कार्यक्रम।
फरवरी २०२६ शाम ६:०० बजे – मार्च २०२६ रात ९:०० बजे
खाद्य और हस्तशिल्प मेला
आगंतुकों के लिए पारंपरिक व्यंजन और स्थानीय शिल्प की प्रदर्शनी और बिक्री।
फरवरी २०२६ सुबह १०:०० बजे – मार्च २०२६ शाम ६:०० बजे
परिचय
कोवलम मंदिर उत्सव एक अनूठा गांव मेला है जो क्षेत्र की सांस्कृतिक विरासत को पारंपरिक कला, शिल्प और स्थानीय व्यंजनों के साथ मनाता है। यह प्रसिद्ध कोवलम समुद्र तट के पास आयोजित होता है और स्थानीय लोगों और पर्यटकों को आकर्षित करता है।
अन्य नाम
कोवलम ग्राम उत्सव, कोवलम गांव मेला
पूजा विधि
- पारंपरिक पूजा और अर्पण के साथ गांव के मंदिर में शुरुआत करें।
- गांव की सुंदरता की नकल करते हुए नल्लुक्केतु हॉल की सजावट करें।
- शाम में लोक संगीत और नृत्य प्रस्तुतियां आयोजित करें।
- तीर्थयात्रियों और पर्यटकों के लिए भोजन और हस्तशिल्प के स्टॉल खोलें।
- स्थानीय परंपराओं के जश्न के लिए सामुदायिक समारोह करें।
- सांस्कृतिक अनुष्ठान और समापन कार्यक्रम के साथ बंद करें।
अनुष्ठान
- कोवलम गांव के मंदिर की पारंपरिक स्थापना और सजावट।
- लकड़ी और टेराकोटा टाइल्स से नल्लुक्केतु शैली में घर की सजावट।
- स्थानीय हस्तशिल्प और पारंपरिक पोशाकों की प्रदर्शनी और बिक्री।
- स्थानीय व्यंजनों और पेय पदार्थों के स्टॉल।
- लोक संगीत, नृत्य और मार्शल आर्ट्स सहित सांस्कृतिक कार्यक्रम।
- परिवारों के लिए सामुदायिक समारोह और पारंपरिक खेल।
क्षेत्रीय विशेषताएँ
- कोवलम मंदिर उत्सव केरल की ग्रामीण परंपराओं का जीवंत दर्शन प्रदान करता है।
- यह केरल के गांवों की नल्लुक्केतु वास्तुकला शैली को प्रदर्शित करता है।
- यह प्रसिद्ध कोवलम समुद्र तट के पास एक प्रमुख सांस्कृतिक आकर्षण है।
इतिहास
यह उत्सव ग्रामीण केरल के गांव जीवन की परंपराओं को संरक्षित करता है, जिसमें नल्लुक्केतु वास्तुकला और स्वदेशी शिल्प कौशल का प्रदर्शन होता है। यह सामुदायिक भावना और सांस्कृतिक गर्व का प्रतीक है।
अतिरिक्त जानकारी
- यह उत्सव स्थानीय निवासियों और प्रामाणिक सांस्कृतिक अनुभवों की तलाश में पर्यटकों दोनों को आकर्षित करता है।
- सामुदायिक भागीदारी और पारंपरिक समन्वय के साथ प्रतिवर्ष आयोजित किया जाता है।
- यह केरल की पारंपरिक कला और शिल्प को संरक्षित और बढ़ावा देने का मंच प्रदान करता है।
