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कजरी तीज २०२६ – गीतों, व्रत और वैवाहिक कल्याण का उत्सव

तारीख़: ३१ अगस्त २०२६

पूरी तारीख

३० अगस्त २०२६ सुबह ९:३६ बजे (तृतीया तिथि आरंभ) ३१ अगस्त २०२६ सुबह ८:५० बजे (तृतीया तिथि समाप्त)

मुहूर्त समय भारत में

  • कजरी गीत-रात्रि व झूला मिलन

    कजरी तीज की पूर्व-रात को महिलाएँ पेड़ों के नीचे एकत्र होती हैं, साथ मिलकर झूलती हैं और कजरी लोकगीत गाती हैं, ३१ अगस्त २०२६ के व्रत-दिन में प्रवेश करती हैं।

    ३० अगस्त २०२६ शाम सूर्यास्त के बाद ३० अगस्त २०२६ रात देर (मध्यरात्रि से पहले)

परिचय

कजरी तीज एक विशेष वर्षा-उत्सव है जो महिलाओं के लिए है, भाद्रपद मास की कृष्ण-पक्ष की तृतीया को मनाई जाती है। यह ‘कजरी’ गीतों की भावना को सम्मान देती है, महिलाओं को झूलों पर झूलते हुए एकत्र करती है और वैवाहिक सौहार्द, उर्वरता व कल्याण के लिए व्रत व प्रार्थनाएँ करती है।

अन्य नाम

कजरी तीज, बड़ी तीज, सातुड़ी तीज

पूजा विधि

  • दिन की शुरुआत स्नान से करें और हरे या चमकीले कपड़े पहनें; हाथों पर मेहँदी लगाएं।
  • शाम को एक पेड़ (विशेष रूप से नीम) के नीचे एकत्र हों और पूजा-थाली तैयार करें जिसमें फूल, चावल, मिठाई, कुमकुम व फल हो।
  • भगवान शिव व देवी पार्वती को वैवाहिक सुख-समृद्धि के लिए प्रार्थना करें और निर्धारित मुहूर्त या पारिवारिक अनुष्ठान के बाद व्रत खोलें।
  • एक झूला सजाएँ, पड़ोसियों व मित्रों को बुलाएँ, कजरी गीत गाएँ व प्रसाद बाँटें।
  • मिठाई व भोजन सामुदायिक रूप से बाँटें और भक्ति-गीत व सामाजिक मिलन में समय बिताएँ।

अनुष्ठान

  • महिलाएँ पूरे दिन व्रत रखती हैं और अपने पतियों की लंबी आयु और स्वास्थ्य या अच्छे जीवन-साथी के लिए प्रार्थना करती हैं।
  • सुबह स्नान करके साफ-पारंपरिक वस्त्र पहनती हैं; मेहँदी लगाती हैं, आभूषण पहनती हैं और खुद को सजाती हैं।
  • शाम को नीम-वृक्ष के समक्ष कुमकुम, चावल, फूल व फल अर्पित करके पूजा करती हैं।
  • महिलाएँ पेड़ों के नीचे सजाए गए झूलों पर झूलती हैं, कजरी लोक-गीत गाती हैं, ढोलक बजाती हैं और मिल-जुल कर उत्सव मनाती हैं।
  • विशेष पर्व-भोजन व मिठाईयाँ तैयार होती हैं जैसे सत्तू, पूरी, हलवा और ये मित्र-परिवार में बाँटी जाती हैं।

क्षेत्रीय विशेषताएँ

  • कजरी तीज भोजपुरी-क्षेत्र (उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड) में लोक-कजरी गीतों के साथ बड़े उत्साह से मनाई जाती है।
  • राजस्थान के बूंदी में ‘कजली तीज मेला’ भव्य जुलूस, मेला व सांस्कृतिक प्रस्तुतियों के साथ आयोजित होती है।
  • यह त्योहार हरियाली तीज के लगभग १५ दिन बाद आता है और कृष्णा पक्ष की तृतीया पर होता है, जो उत्तर भारत में तीज-चक्र में प्रमुख है।

इतिहास

कजरी तीज का मूल उत्तर भारत व भोजपुरी क्षेत्र की लोक-परंपराओं में है, जहाँ महिलाएँ वर्षा, विरह व मिलन पर आधारित ‘कजरी’ गीत गाती हैं, व्रत रखती हैं और वैवाहिक दीर्घायु के लिए नीम-वृक्ष पूजा करती हैं। इसका नाम लोक-गीत ‘कजरी’ से लिया गया है। यह तीज-चक्र में हरियाली तीज व हरतालिका तीज का संगत-त्योहार बन गया है।

अतिरिक्त जानकारी

  • हालाँकि विभिन्न आधार (पंचांग) व क्षेत्रानुसार तिथियों में हल्की-फुल्की भिन्नता हो सकती है, अगस्त ३१ २०२६ को कजरी तीज के रूप में व्यापक रूप से स्वीकार किया गया है।
  • ‘कजरी’ शब्द मानसून-कालीन विरह व मिलन पर आधारित लोक-गीत शैली को भी दर्शाता है — जो इस त्यौहार के मूड का प्रतिबिंब है।
  • जिला-परंपराओं के अनुसार, जो महिलाएँ कजरी तीज व्रत शुरू करती हैं, वे अक्सर १६ साल तक यह परंपरा निभाती हैं।
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