गंगा पुष्करालु 2026
तारीख़: २२ अप्रैल - ३ मई २०२६
पूरी तारीख
२२ अप्रैल २०२६ सुबह ६:४८ बजे – ३ मई २०२६ शाम ७:०० बजे
मुहूर्त समय भारत में
आदि पुष्करम प्रारंभ
बृहस्पति के मेष राशि में प्रवेश के बाद के १२ दिन ‘आदि पुष्करम’ कहलाते हैं, जो स्नान और पूजा के लिए अत्यंत शुभ माने जाते हैं।
२२ अप्रैल २०२६ सुबह ६:४८ बजे – ३ मई २०२६ शाम ६:०० बजे
अंत्य पुष्करम
गंगा पुष्करालु के अंतिम दिनों में सामूहिक यज्ञ, दान और नदी तटों पर गंगा आरती का आयोजन किया जाता है।
१ मई २०२६ सुबह ८:०० बजे – ३ मई २०२६ शाम ७:०० बजे
परिचय
गंगा पुष्करालु एक १२ दिवसीय पवित्र पर्व है जो हर १२ वर्ष में एक बार तब आता है जब बृहस्पति मेष राशि में प्रवेश करते हैं। इस दौरान श्रद्धालु गंगा स्नान करते हैं, पितृ तर्पण करते हैं और मन, शरीर और आत्मा की शुद्धि के साथ मोक्ष की कामना करते हैं।
अन्य नाम
गंगा पुष्करम्, गंगा पुष्कर महोत्सव, पुष्करालु पर्व
पूजा विधि
- ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नान करें और शुद्धता प्राप्त करें।
- पूर्व दिशा या नदी की ओर मुख कर एक पूजा स्थान बनाएं।
- गंगा माँ को जल, फूल, तुलसी पत्ते और धूप अर्पित करें।
- गंगा अष्टकम या गंगा सहस्रनाम का पाठ करें।
- पूजन के बाद गरीबों को अन्न, वस्त्र या जल का दान करें।
अनुष्ठान
- सूर्योदय के समय गंगा नदी में स्नान करें, विशेष रूप से काशी, प्रयागराज या हरिद्वार में।
- नदी किनारे सूर्य देव को अर्घ्य दें और पितरों का तर्पण करें।
- गंगा स्तोत्र, विष्णु सहस्रनाम का जाप करें और रुद्राभिषेक करें।
- दीप जलाकर नदी में प्रवाहित करें जो भक्ति और कृतज्ञता का प्रतीक है।
- अन्नदान और दान-पुण्य के कार्य करें जिससे आध्यात्मिक पुण्य प्राप्त होता है।
क्षेत्रीय विशेषताएँ
- वाराणसी, प्रयागराज और हरिद्वार में भव्य उत्सव और श्रद्धालुओं के लिए व्यापक व्यवस्थाएँ की जाती हैं।
- उत्तराखंड में हर की पौड़ी और ऋषिकेश की गंगा आरती में प्रतिदिन लाखों श्रद्धालु भाग लेते हैं।
- बिहार और पश्चिम बंगाल में सुल्तानगंज और गंगासागर जैसे घाटों पर पूजा-अनुष्ठान आयोजित होते हैं।
- आंध्र प्रदेश और तेलंगाना से आए दक्षिण भारतीय श्रद्धालु गंगा तटों पर तीर्थ स्नान करते हैं।
इतिहास
मान्यता है कि श्री पुष्कर नामक एक भक्त को भगवान शिव ने हर १२ वर्षों में एक राशि परिवर्तन के समय नदी को पवित्र करने का वरदान दिया था। जब बृहस्पति किसी नई राशि में प्रवेश करते हैं, तो पुष्कर देवता उस नदी में प्रवेश करते हैं जिससे जल आध्यात्मिक रूप से पवित्र हो जाता है। इसी अवसर पर गंगा पुष्करालु मनाया जाता है जब बृहस्पति मेष राशि में आते हैं।
अतिरिक्त जानकारी
- गंगा पुष्करालु हर १२ वर्ष में एक बार मनाया जाता है जो प्रकृति और आत्मा के चक्रात्मक शुद्धिकरण का प्रतीक है।
- पहले और अंतिम पुष्कर दिवस पर किए गए स्नान और दान का फल अनेक गुणा बढ़ जाता है।
- यह उत्सव भारतीय संस्कृति में नदियों की पवित्रता और पर्यावरण संरक्षण का संदेश देता है।
