दोल जात्रा उत्सव 2026
तारीख़: ३ मार्च २०२६
पूरी तारीख
३ मार्च २०२६ सुबह ६:०० बजे – ३ मार्च २०२६ शाम ८:०० बजे
मुहूर्त समय भारत में
दोल उत्सव शोभायात्रा
भगवान कृष्ण और राधा की मूर्तियों को सजे हुए पालकियों पर शोभायात्रा में निकाला जाता है और भक्त ‘हरे बोल’ के जयघोष करते हैं।
३ मार्च २०२६ सुबह १०:०० बजे – ३ मार्च २०२६ शाम ४:०० बजे
चैतन्य महाप्रभु जयंती
इसी दिन वैष्णव संत श्री चैतन्य महाप्रभु की जयंती भी मनाई जाती है, जिन्होंने कृष्ण भक्ति का प्रसार किया।
३ मार्च २०२६ शाम ६:०० बजे – ३ मार्च २०२६ रात ८:०० बजे
परिचय
दोल जात्रा, जिसे दोल पूर्णिमा या दोल यात्रा भी कहा जाता है, बंगाल, ओडिशा और असम में भक्ति एवं श्रद्धा के साथ मनाई जाने वाली होली का रूप है। यह राधा-कृष्ण के अनंत प्रेम का उत्सव है, जिसमें झूला उत्सव, रंग, और ‘हरे बोल’ के जयघोष का उल्लास होता है।
अन्य नाम
दोल पूर्णिमा, दोल यात्रा, बंगाली होली, झूला उत्सव
पूजा विधि
- सुबह जल्दी उठकर स्नान करें और हल्के या सफेद पारंपरिक वस्त्र पहनें।
- राधा-कृष्ण की मूर्ति या चित्र को फूलों और रंगों से सजाकर वेदी बनाएं।
- ‘हरे कृष्ण हरे राम’ जाप करते हुए मूर्तियों को झूले पर धीरे-धीरे झुलाएं।
- मिष्ठान, फल और चंदन का भोग लगाएं।
- पूजन के अंत में अबीर अर्पित करें और प्रसाद वितरण करें।
अनुष्ठान
- राधा-कृष्ण की मूर्तियों को सजाए गए झूलों (दोल) पर विराजमान कर शोभायात्रा निकाली जाती है।
- भक्तगण अबीर (रंगीन गुलाल) लगाते हैं और हरिनाम संकीर्तन करते हुए भजन गाते हैं।
- खीर, रसगुल्ला और मालपुआ जैसी दूध-आधारित मिठाइयाँ अर्पित की जाती हैं।
- बड़ों के चरणों में रंग लगाकर उनका आशीर्वाद लिया जाता है।
- दिन का समापन सामूहिक भोग और भजन संध्याओं से किया जाता है।
क्षेत्रीय विशेषताएँ
- पश्चिम बंगाल में मेयापुर और शांतिनिकेतन में दोल जात्रा भव्य रूप से मनाई जाती है जो बंगाली वर्ष का अंतिम पर्व होता है।
- ओडिशा में भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा की शोभायात्राएँ दोल मेलन के रूप में निकाली जाती हैं।
- असम में यह पर्व ‘फकुवा’ या ‘फगवा’ के रूप में लोकगीतों और बिहू नृत्यों के साथ मनाया जाता है।
- क्षेत्र के सभी मंदिरों में फूलों, झूलों और संगीत से सजी भव्य सजावट की जाती है।
इतिहास
दोल जात्रा वैष्णव परंपरा से जुड़ा पर्व है जिसकी उत्पत्ति भगवान कृष्ण के युग से मानी जाती है। यह वह दिन माना जाता है जब कृष्ण ने राधा पर गुलाल लगाया था, जो दिव्य प्रेम का प्रतीक है। यह दिन वैष्णव संत श्री चैतन्य महाप्रभु की जयंती के रूप में भी मनाया जाता है, जिन्होंने कीर्तन के माध्यम से भक्ति का संदेश फैलाया।
अतिरिक्त जानकारी
- दोल जात्रा होली के समान दिन होती है परंतु यह भक्ति और कृष्ण लीला पर अधिक केंद्रित होती है।
- यह प्रेम, नवजीवन और आध्यात्मिक आनंद का प्रतीक है जो वसंत के आगमन से जुड़ा है।
- इस्कॉन मंदिरों में इस दिन भव्य कीर्तन और राधा-कृष्ण अभिषेक का आयोजन किया जाता है।
