छठ पूजा २०२६ – सूर्य देव व छठी मैया की आराधना
तारीख़: १५ नवंबर २०२६
पूरी तारीख
१४ नवंबर २०२६ शाम (नहाय-खाय दिन आरंभ) – १६ नवंबर २०२६ सुबह (उषा-अर्घ दिन समाप्त)
मुहूर्त समय भारत में
नदी-किनारे संध्या-अर्घ्य
१५ नवंबर २०२६ की शाम को बिहार, झारखंड एवं उत्तर-प्रदेश में हजारों भक्त नदी-किनारे जमा होंगे और अस्त होते सूर्य को अर्घ्य देंगे, दीये जलायेंगे और अर्पण जल-प्रसाद को पानी में प्रवाहित करेंगे।
१५ नवंबर २०२६ लगभग सूर्यास्त १७:२८ (क्षेत्रानुसार भिन्न) – १५ नवंबर २०२६ लगभग १९:३० बजे
परिचय
छठ पूजा एक बहुत-प्रसिद्ध एवं श्रद्धा-पूर्ण पर्व है, खासकर बिहार, झारखंड और पूर्वी उत्तर-प्रदेश में, जो सूर्य देव और उनकी बहन छठी मैया को समर्पित है। यह चार-दिवसीय होता है, जिसमें निर्जला या न्यून जल उपवास, सूर्यास्त-सूर्योदय समय नदियों के घाटों पर अर्घ्य देना, तथा सूर्य को जीवन, स्वास्थ्य व समृद्धि के लिए धन्यवाद देना शामिल है।
अन्य नाम
सूर्य षष्ठी, छठ पर्व, डाला छठ
पूजा विधि
- एक स्वच्छ नदी किनारे, तालाब या सुरक्षित जल-स्रोत चुनें और वहाँ घुटनों-कहाँ तक पानी में खड़े होकर अर्घ्य दें।
- संपूर्ण शाकाहारी भोजन तैयार करें जिसमें प्याज/लहसुन न हो; सबसे प्रसिद्ध प्रसाद है थेकुआ (गुड़-आटे की गहरी तली हुई व हल्की मीठी बiskुट)।
- ताज़ा फल-फूल, गन्ना, सूखा नारियल, कच्चा चावल व दीपक-ट्रेट या बाँस-टोकरी में सूर्य को अर्पित करें।
- मौन, भक्ति व स्वच्छता बनाये रखें; पारंपरिक साफ-कपड़े पहनें; उपवास के दौरान शराब या मांसाहार से बचें।
- उषा-अर्घ्य व उपवास तोड़ने के बाद प्रसाद परिवार व पड़ोसियों में बाँटें और दान-धर्म करें।
अनुष्ठान
- दिवस 1 (नहाय-खाय): नदी या स्वच्छ जलाशय में स्नान करना, घर पर शुद्ध शाकाहारी एक-भोजन बनाना।
- दिवस 2 (खरना): सूर्योदय से सूर्यास्त तक उपवास रखना, सूर्यास्त के बाद प्रसाद तैयार करना और वितरित करना।
- दिवस 3 (संध्या-अर्घ्य): नदी के तट पर सूर्यास्त के समय खड़े होकर अस्त सूर्य को अर्घ्य देना।
- दिवस 4 (उषा-अर्घ्य): प्रातःकाल में उपवास जारी रखते हुए उगते सूर्य को अर्घ्य देना और अन्त में उपवास तोड़ना।
क्षेत्रीय विशेषताएँ
- बिहार (विशेष रूप से मिथिला क्षेत्र) व झारखंड में यह पर्व एक बड़ी सामाजिक घटना है: घाटों की सफाई होती है, सामुदायिक अर्पण व नदी-किनारे समूहीय समारोह होते हैं।
- नेपाल के मधेश एवं तराई-क्षेत्रों में छठ पर्व को तिहार के बाद बड़े उत्साह से मनाया जाता है एवं इसी प्रकार के अनुष्ठान संपन्न होते हैं।
- दिल्ली, मुंबई, कोलकाता जैसे महानगरों में प्रवासी-समुदायों में यह पर्व तेजी से फैला है और नदी/तालाब घाटों विशेष छठ आयोजन किए जाते हैं।
इतिहास
छठ पूजा की उत्पत्ति प्राचीन ग्रंथों एवं कथाओं में मिलती है: रामायण में सीता ने निर्वासन के बाद छठ किया, महाभारत में कर्ण ने सूर्य-पूजा की थी। समय के साथ यह पूर्वी भारत एवं नेपाल के गंगाप्लेन में सूर्य-पूजा का एक बड़ा त्योहार बन गया।
अतिरिक्त जानकारी
- छठ पूजा को पर्यावरण-अनुकूल हिंदू पर्वों में से एक माना जाता है क्योंकि इसमें भक्त प्राकृतिक सामग्री उपयोग करते हैं, प्लास्टिक से बचते हैं और खुली जल-संस्थानयों पर अनुष्ठान करते हैं।
- इसके विशिष्ट अनुष्ठानों व सांस्कृतिक महत्ता के कारण इसे यूनेस्को की अमूर्त सांस्कृतिक विरासत सूची में शामिल करने पर विचार किया जा रहा है।
- हालाँकि कुछ पंचांगों में प्रारंभिक दिन १३ या १४ नवंबर २०२६ बताया गया है, लेकिन मुख्य अनुष्ठान-दिवस (संध्या-अर्घ्य) व्यापक रूप से १५ नवंबर २०२६ को माना जाता है।
