बोहाग बिहू 2026 – असम का नववर्ष उत्सव
तारीख़: १५ – २१ अप्रैल २०२६
पूरी तारीख
१५ अप्रैल २०२६ सुबह ६:०० बजे – २१ अप्रैल २०२६ शाम ७:०० बजे
मुहूर्त समय भारत में
गोरू बिहू
15 अप्रैल 2026 को पशुधन अभिषेक किया जाता है, उन्हें हरी सब्जियाँ खिलाकर खेती के सहयोग के प्रति कृतज्ञता जताई जाती है।
१५ अप्रैल २०२६ सुबह ६:०० बजे – १५ अप्रैल २०२६ सुबह ११:०० बजे
मनुह बिहू (जन दिवस)
हल्दी स्नान, नए वस्त्र धारण और बड़ों का आशीर्वाद लेकर सामाजिक उत्सवों की शुरुआत होती है।
१६ अप्रैल २०२६ सुबह ७:०० बजे – १६ अप्रैल २०२६ रात १०:०० बजे
मेला बिहू
18 अप्रैल से खुले मैदानों में सामूहिक मेले आयोजित किए जाते हैं जिनमें लोकनृत्य और संगीत की भव्य प्रस्तुतियाँ होती हैं।
१८ अप्रैल २०२६ दोपहर २:०० बजे – २१ अप्रैल २०२६ रात ८:०० बजे
परिचय
बोहाग बिहू या रंगाली बिहू असम का प्रमुख और सबसे आनंदमय पर्व है जो असमिया नववर्ष और बुवाई के मौसम की शुरुआत का प्रतीक है। यह भूमि की उर्वरता, नवजीवन और प्रकृति के प्रति कृतज्ञता का प्रतीक है। यह पर्व नृत्य, संगीत और सामाजिक एकता के माध्यम से प्रेम और सौहार्द का संदेश देता है।
अन्य नाम
रंगाली बिहू, असम नववर्ष, सात बिहू
पूजा विधि
- आंगन को साफ करें और आम की पत्तियों व फूलों से सजाएँ।
- पीठा, लाडू और दही-चावल जैसे पारंपरिक व्यंजन बनाकर पूजा में अर्पित करें।
- दीप जलाएं और गृह देवताओं की समृद्धि हेतु प्रार्थना करें।
- गाय-बैलों को धुलाकर हल्दी-मोहरी का लेप करें और नई रस्सियाँ बाँधें।
- सम्मान और प्रेम के प्रतीक रूप में ‘गमूसा’ का आदान-प्रदान करें।
अनुष्ठान
- पहले दिन ‘गोरू बिहू’ में पशुधन को नदी में स्नान कराया जाता है, उन पर हल्दी और तेल का लेप किया जाता है और स्वादिष्ट भोजन दिया जाता है।
- दूसरे दिन ‘मनुह बिहू’ में लोग हल्दी स्नान करते हैं, नए वस्त्र पहनते हैं और बड़ों का आशीर्वाद लेते हैं।
- ‘हुसोरी’ दल घर-घर जाकर लोकगीत और नृत्य प्रस्तुत करते हैं जिससे आनंद और सौभाग्य का प्रसार होता है।
- ‘कुतुम’ और ‘मेला बिहू’ में परिवार और समाजजन भोज और मेलों में साथ मिलकर उत्सव मनाते हैं।
- अंतिम दिन ‘सेरा बिहू’ में मिठाई बाँटकर उत्सव का समापन किया जाता है।
क्षेत्रीय विशेषताएँ
- असम में हुसोरी प्रस्तुतियाँ, बिहू नृत्य और ढोल-पीपा वादन के साथ उत्सव मनाया जाता है।
- गुवाहाटी में जजेस फील्ड व लटासिल ग्राउंड पर भव्य बिहू मेले आयोजित होते हैं।
- ग्रामीण असम में पारंपरिक मेले, भैंसों की दौड़, नाव दौड़ और लोकनाट्य आयोजित किए जाते हैं।
- विदेशों में बसे असमिया समुदाय द्वारा भी बिहू मनाया जाता है जिससे वैश्विक असमिया पहचान को बढ़ावा मिलता है।
इतिहास
बोहाग बिहू की उत्पत्ति असम के प्राचीन कृषक समाज से जुड़ी है जो बुवाई के मौसम का उत्सव था। समय के साथ यह पर्व असमियों की साझा सांस्कृतिक पहचान बन गया जिसमें धर्म या जाति का भेद नहीं है। यह फसल के प्रति आभार, खेती की तैयारी और सामाजिक एकता का प्रतीक है। यह बसंत ऋतु के अन्य भारतीय पर्वों जैसे बैसाखी, विशु और पुथांडु के समानांतर मनाया जाता है।
अतिरिक्त जानकारी
- बोहाग बिहू प्रकृति की उर्वरता और समृद्धि के लिए आभार और सामाजिक एकता का प्रतीक है।
- यह पर्व नृत्य, कला और कृषि में स्त्री-पुरुष की समान भागीदारी का उत्सव है।
- यह भारत के अन्य नववर्ष पर्वों जैसे बैसाखी, विशु और पुथांडु के साथ सम्पूर्णता का संदेश देता है।
