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विश्वकर्मा चालीसा

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॥ दोहा ॥
श्री विश्वकर्मा प्रभुने वंदु,
चरण कमल धरि ध्यान।
श्री शंभु बल अरु श्रीप गुण
दीजे दया निधान॥
॥ चौपाई ॥
जय जय श्री विश्वकर्मा भगवाना।
जय जय श्री विश्वेश्वर कृपा निधाना॥
शिल्पाचार्य परम उपकारी।
भुवन पुत्र नाम गुणकारी॥ 2 ॥

अष्टम वसु सुत नागर।
शिल्प ज्ञान जग कियउ उजागर॥
अद्भुत सकल सृष्टि कर्ता।
सत्य ज्ञान श्रुति जग हित धरता॥ 4 ॥

अतुल तेज तुम्हारो जग माहि।
कोई विश्व माहि जानत नाहि॥
विश्व सृष्टि कर्ता विश्वेशा।
अद्भुत वरण विराज सुवेशा॥ 6 ॥

एकानन पंचानन राजे।
द्विभुज चतुर्भुज दशभुज काजे॥
चक्र सुदर्शन धारण कीधा।
वारि कमंडल हाथमा लीधा॥ 8 ॥

शिल्प शास्त्र अरु शंख अनुपम।
सोहे सूत्र गजमाप अनुपा॥
धुइनुष्य बाण त्रिशूल सोहे।
नवले हाथ कमल मन मोहे॥ 10 ॥

विविध शस्त्र सहित मंत्र अपरा।
वीरचेहु तुम समस्त संसारा॥
दिव्य सुगंधित सुमन अनेका।
विविध महा औषध सविवेका॥ 12 ॥

शंभु वीरचि विष्णु सुरपाला।
वरुण कुबेर असि महाकाला॥
तुम्हारे ढिंग सब मिलकर गावु।
करि प्रमाण स्तुति कावु॥ 14 ॥

मेई प्रसन्न तुम लखि सुर सौका।
किवउ काज सब भये अशोका॥
दर्शवा वरद हस्त जग हेतु।
अतिभव सिंधु माहि व सेतु॥ 16 ॥

सूरज तेज हरण तुमने केवु।
अस्त्र शस्त्र जेससे निरमेवु॥
चक्र शक्ति व्रज त्रिशूल एको।
दंड पाश और शस्त्र अनेका॥ 18 ॥

विष्णुहि चक्र त्रिशूल शंकराहि।
अजहि शक्ति दंड यमराजहि॥
इंद्र हे व्रज वरुण हे पाशा।
तुमने सबकी पुरण की आशु॥ 20 ॥

भाति भाति के अस्त्र रचाये।
सत पंथको प्रभु सदा बचाये॥
अमृत घट के तुम निर्माता।
साधु संत भक्तनके सुर त्राता॥ 22 ॥

लोह, काष्ठ, त्रांबा पाषाणा।
सुवर्ण शिल्प के परम सुजाना॥
विद्युत अग्नि पवन भू वारि।
इनके काज अद्भुतकी संवरि॥ 24 ॥

आनपान हित भाजन नाना।
भुवन विभूषित विविध विधाना॥
रिद्धि सिद्धि के तुम वरदाता।
वेद ज्ञान के आप ज्ञाता॥ 28 ॥

शिल्पी, त्वष्टा, मनु, मय, तक्षा।
सबकी नीत करते प्रभु रक्षा॥
पंच पुत्र नीत जग हित कर्ता।
कर निष्काम कर्म नीज धर्म॥ 30 ॥

तुम्हारे सम कोई कृपालु नाहि।
विपदा हरे सदा जग माहि॥
जय जय श्री भुवना विश्वकर्मा।
कृपा करे श्री गुरुदेव सुधर्मा॥ 32 ॥

श्रीव अरु विश्वकर्मा माहि।
विज्ञानी कहे अंतर नाहि॥
बरने कौन स्वरूप तुम्हारा।
सकल सृष्टि को आपने विस्तारा॥ 34 ॥

रचेवु विश्व हित त्रिविध शरीरा।
तुम बिन कौन हरे भव पीरा॥
मंगल मूल भुवन भय हारी।
शोक रहित त्रिलोक विहारी॥ 36 ॥

चारो युग प्रताप तुम्हारा।
ते है प्रसिद्ध जगत उजियारा॥
एकशोह आठ जप करे कोई।
नाशो विपत्ति महा सुख कोई॥ 38 ॥

पढ़िए जो विश्वकर्मा चालीसा।
होई सिद्ध साक्षी गौरीशा॥
विश्व विश्वकर्मा प्रभु मेरे।
हो प्रसन्न हम बालक तेरे॥ 40

मै हु सदा उमापति चेरा।
सदा करो प्रभु मन मह डेरा॥

॥ दोहा ॥
करहु कृपा शंकर सरिस,
विश्वकर्मा शिवरूप।
श्री शुभदा रचना सहित,
हृदय बसहु सुर भूप॥

विश्वकर्मा चालीसा के बारे में

विश्वकर्मा चालीसा 40 पदों का पवित्र भजन है जो भगवान विश्वकर्मा को समर्पित है, जो हिन्दू पुराणों में सृष्टि के दैवीय वास्तुकार और शिल्पकार माने गए हैं। यह चालीसा उनकी सृजनात्मक शक्ति, ज्ञान और आशीर्वाद का स्तवन करती है।

अर्थ

चालीसा में भगवान विश्वकर्मा के सर्वोच्च शिल्पकार और वास्तुकार के रूप में उनकी भूमिका का वर्णन है, जिन्होंने पौराणिक कथाओं में कई दैवीय महल, हथियार और नगरीय संरचनाओं का निर्माण किया। इसमें उनकी अद्वितीय कौशल, रचनात्मक ज्ञान और ब्रह्मांडीय क्रम बनाए रखने में उनके महत्व को बताया गया है। यह भजन भक्तों को उनकी कृपा से रचनात्मकता, सफलता और सुरक्षा पाने की प्रेरणा देता है।

लाभ

  • रचनात्मकता और तकनीकी कौशल बढ़ाता है
  • इंजीनियरिंग, वास्तुकला और शिल्प में सफलता लाता है
  • पेशेवर और औद्योगिक कार्यों में सुरक्षा प्रदान करता है
  • बाधाएं और नकारात्मक ऊर्जा दूर करता है
  • ज्ञान, बुद्धि और स्पष्टता का आशीर्वाद देता है
  • अनुशासन, एकाग्रता और समर्पण को प्रेरित करता है
  • समृद्धि, खुशहाली और कल्याण बढ़ाता है

महत्व

विश्वकर्मा चालीसा का पाठ परंपरागत रूप से विश्वकर्मा जयंती और नए निर्माण या औद्योगिक परियोजनाओं के आरंभ से पहले किया जाता है। माना जाता है कि इससे भगवान विश्वकर्मा की कृपा प्राप्त होती है जो रचनात्मकता, सटीकता और सफलता प्रदान करती है। नियमित जाप से भक्तों में ध्यान, कौशल और दैवीय सुरक्षा विकसित होती है।

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