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सूर्य चालीसा

॥ दोहा ॥
कनक बदन कुंडल मकर, मुक्ता माला अंग,
पद्मासन स्थित ध्याइये, शंख चक्र के संग ॥
॥ चौपाई ॥
जय सविता जय जयीति दिवाकर,
सहस्त्रांशु सप्ताश्व तिमिहर ॥
भानु पतंग मरीचि भास्कर,
सविता हंस सूनुर विभाकर ॥ 1 ॥

विवस्वान आदित्य विकर्तन,
मार्तण्ड हरि रूप विरोचन ॥
अंबरमणि खग रवि कहलाते,
वेद हिरण्यगर्भ कह गाते ॥ 2 ॥

सहस्त्रांशु प्रद्योतन, कहिकहि,
मुनिगण होत प्रसन्न मोदलहि ॥
अरुण सदृश सारथि मनोहर,
हांकत हय सता चढ़ि रथ पर ॥ 3 ॥

मंडल की महिमा अति न्यारी,
तेज रूप केरी बलिहारी ॥
उच्चैःश्रवा सदृश हय जोते,
देखि पुरंदर लज्जित होते ॥ 4 ॥

मित्र मरीचि, भानु, अरुण, भास्कर,
सविता सूर्य अर्क खग कलिकर ॥
पूषा रवि आदित्य नाम लाई,
हिरण्यगर्भाय नमः कहिकई ॥ 5 ॥

द्वादश नाम प्रेम सों गावैं,
मस्तक बारह बार नवावैं ॥
चार पदारथ जन सो पावै,
दुख दरिद्र अघ पुंज नसावै ॥ 6 ॥

नमस्कार को चमत्कार यह,
विधि हरिहर को कृपासार यह ॥
सेवै भानु तुमहीं मन लाई,
अष्टसिद्धि नवनिधि तेहिं पाई ॥ 7 ॥

बारह नाम उच्चारण करते,
सहस जनम के पातक टरते ॥
उपाख्यान जो करते तवजन,
रिपु सों जमलहते सोतेहि छन ॥ 8 ॥

धन सुत जुत परिवार बढ़त है,
प्रबल मोह को फंद कटत है ॥
अर्क शीश को रक्षा करते,
रवि ललाट पर नित्य बिहरते ॥ 9 ॥

सूर्य नेत्र पर नित्य विराजत,
कर्ण देस पर दिनकर छाजत ॥
भानु नासिका वासकरहुनित,
भास्कर करत सदा मुखको हित ॥ 10 ॥

ओंठ रहैं पर्जन्य हमारे,
रसना बीच तीक्ष्ण बस प्यारे ॥
कंठ सुवर्ण रेत की शोभा,
तिग्म तेजसः कांधे लोभा ॥ 11 ॥

पूषन बाहु मित्र पीठहिं पर,
त्वष्टा वरुण रहत सुउष्णकर ॥
युगल हाथ पर रक्षा कारण,
भानुमान उरसर्म सुउदरचन ॥ 12 ॥

बसत नाभि आदित्य मनोहर,
कटिमांंह, रहत मन मुदभर ॥
जंघा गोपति सविता बसा,
गुप्त दिवाकर करत हुलासा ॥ 13 ॥

विवस्वान पद की रखवारी,
बाहर बसते नित तम हरि ॥
सहस्त्रांशु सर्वांग संहारै,
रक्षा कवच विचित्र विचारे ॥ 14 ॥

अस जोजन अपने मन माहिं,
भय जगबीच करहुं तेहि नाहीं ॥
दाद्रु कुष्ठ तेहिं कबहुं न व्यापै,
जोजन याको मन मांंह जपै ॥ 15 ॥

अंधकार जग का जो हरता,
नव प्रकाश से आनंद भरता ॥

ग्रह गण ग्रसि न मिटावत जाहि,
कोटि बार मैं प्रणवौं ताहि ॥
मंद सदृश सुत जग में जाके,
धर्मराज सम अद्भुत बांके ॥ 16 ॥

धन्य-धन्य तुम दिनमणि देवा,
किया करत सुरमुनि नर सेवा ॥
भक्ति भावयुत पूर्ण नियम सों,
दूर हटतसो भवके भ्रम सों ॥ 17 ॥

परम धन्य सो नर तनधारी,
हैं प्रसन्न जेहि पर तम हरि ॥
अरुण माघ मांंह सूर्य फाल्गुन,
मधु वेदांग नाम रवि उदयन ॥ 18 ॥

भानु उदय बैसाख गिनावै,
ज्येष्ठ इंद्र आषाढ़ रवि गावे ॥
यम भादों अश्विन हिमरेता,
कथिक होत दिवाकर नेता ॥ 19 ॥

अगहन भिन्न विष्णु हैं पूसहिन,
पुरुष नाम रवि हैं मलमासहिं ॥ 20 ॥

॥ दोहा ॥
भानु चालीसा प्रेम युत, गावहीं जे नर नित्य,
सुख संपत्ति लहि विविध, होहिं सदा कृतकृत्य ॥

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