श्री आदिनाथ चालीसा
॥ दोहा ॥
शीश नवा अरिहंत को,
सिद्धान को, करूँ प्रणाम ।
उपाध्याय आचार्य का,
ले सुखकारी नाम ॥
सर्व साधु और सरस्वती,
जिन मंदिर सुखकार ।
आदिनाथ भगवान को,
मन मंदिर में धार ॥
॥ चौपाई ॥
जय जय आदिनाथ जिन स्वामी ।
तीनकाल तिहूँ जग में नामी ॥
वेश दिगंबर धार रहे हो ।
कर्मो को तुम मार रहे हो ॥
हो सर्वज्ञ बात सब जानो ।
सारी दुनिया को पहचानो ॥
नगर अयोध्या जो कहलाए ।
राजा नाभिराय बतलाए ॥ 4 ॥
मरुदेवी माता के उदर से ।
चैत वदी नवमी को जन्मे ॥
तुमने जग को ज्ञान सिखाया ।
कर्मभूमि का बीज उपया ॥
कल्पवृक्ष जब लगे बिछड़ने ।
जनता आई दुखड़ा कहने ॥
सब का संशय तभी भगाया ।
सूर्य चंद्र का ज्ञान कराया ॥ 8 ॥
खेती करना भी सिखलाया ।
न्याय दंड आदिक समझाया ॥
तुमने राज किया नीति का ।
सबक आपसे जग ने सीखा ॥
पुत्र आपका भरत बताया ।
चक्रवर्ती जग में कहलाया ॥
बाहुबली जो पुत्र तुम्हारे ।
भरत से पहले मोक्ष सिधारे ॥ 12 ॥
सुता आपकी दो बतलाई ।
ब्राह्मी और सुंदरी कहलाई ॥
उनको भी विद्या सिखलाई ।
अक्षर और गिनती बतलाई ॥
एक दिन राजसभा के अंदर ।
एक अप्सरा नाच रही थी ॥
आयु उसकी बहुत अल्प थी ।
इसलिए आगे नहीं नाच रही थी ॥ 16 ॥
विलय हो गया उसका सत्वर ।
झट आया वैराग्य उमड़कर ॥
बेटो को झट पास बुलाया ।
राज पाट सब में बंटवाया ॥
छोड़ सभी झंझट संसारी ।
वन जाने की करी तैयारी ॥
राव हजारों साथ सिधाए ।
राज पाट तज वन को धाए ॥ 20 ॥
लेकिन जब तुमने तप किना ।
सबने अपना रास्ता लीना ॥
वेश दिगंबर तजकर सबने ।
छाल आदि के कपड़े पहने ॥
भूख प्यास से जब घबराए ।
फल आदिक खा भूख मिटाए ॥
तीन सौ त्रेसठ धर्म फैलाए ।
जो अब दुनिया में दिखलाए ॥ 24 ॥
छ: महीने तक ध्यान लगाए ।
फिर भजन करने को धाए ॥
भोजन विधि जाने नहीं कोय ।
कैसे प्रभु का भोजन होय ॥
इसी तरह बस चलते चलते ।
छह महीने भोजन बिन बीते ॥
नगर हस्तिनापुर में आए ।
राजा सोम श्रेयांस बताए ॥ 28 ॥
याद तभी पिछला भव आया ।
तुमको फौरन ही पद्धाया ॥
रस गन्ने का तुमने पाया ।
दुनिया को उपदेश सुनाया ॥
पाठ करे चालीसा दिन ।
नित चालीसा ही बार ॥
चंदखेड़ी में आय के ।
खेवे धूप अपार ॥ 32 ॥
जन्म दरिद्री होय जो ।
होय कुबेर समान ॥
नाम वंश जग में चले ।
जिनके नहीं संतान ॥
तप कर केवल ज्ञान पाया ।
मोक्ष गए सब जग हरषाया ॥
अतिशय युक्त तुम्हारा मंदिर ।
चंदखेड़ी भंवरे के अंदर ॥ 36 ॥
उसका यह अतिशय बतलाया ।
कष्ट क्लेश का होय सफाया ॥
मातंग पर दया दिखाई ।
जंजीरे सब काट गिराई ॥
राजसभा में मान बढ़ाया ।
जैन धर्म जग में फैलाया ॥
मुझ पर भी महिमा दिखलाओ ।
कष्ट भक्त का दूर भगाओ ॥ 40 ॥
॥ सोरठा ॥
पाठ करे चालीसा दिन,
नित चालीसा ही बार ।
चंदखेड़ी में आय के,
खेवे धूप अपार ॥
जन्म दरिद्री होय जो,
होय कुबेर समान ।
नाम वंश जग में चले,
जिनके नहीं संतान ॥