नवग्रह चालीसा
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॥ दोहा॥
श्री गणपति गुरुपद कमला,
प्रेम सहित शिरनाय।
नवग्रह चालीसा कहत,
शारदा होत सहाय॥
जय जय रवि शशि सोम बुध,
जय गुरु भृगु शनि राजा।
जयति राहु अरु केतु ग्रह,
करहु अनुग्रह आज॥
॥ चौपाई ॥
॥ श्री सूर्य स्तुति ॥
प्रथमहि रवि कहँ नावौं माथा,
करहु कृपा जन जानि अनाथा।
हे आदित्य दिवाकर भानु,
मैं मति मंद महा अज्ञानू।
अब निज जन कहँ हरहु कलेशा,
दिनकर द्वादश रूप दिनेशा।
नमो भास्कर सूर्य प्रभाकर
अर्क मित्र अघ मोक्ष क्षमाकर॥
॥ श्री चंद्र स्तुति ॥
शशि मयंक रजनी पति स्वामी,
चंद्र कलानिधि नमो नामामि,
राकापति हिमांशु राकेशा,
प्रणवत जन तन हरहु कलेशा,
सोम इंदु विधु शांति सुधाकर,
शीत रश्मि औषधि निशाकर,
तुम्हीं शोभित सुंदर भाल महेशा,
शरण शरण जन हरहु कलेशा॥
श्री मंगल स्तुति
जय जय मंगल सुख दाता,
लोहित भौमादिक विख्याता,
अंगारक कुंज रुज ऋणहारी,
करहु दया यही विनय हमारी,
हे महिसुत छितिसुत सुखराशि,
लोहितांगा जय जन अघनाशी,
अगम अमंगल अब हर लीजै,
सकल मनोरथ पूरण कीजै॥
॥ श्री बुध स्तुति ॥
जय शशि नंदन बुध महाराजा,
करहु सकल जन कहँ शुभ काजा,
दीजै बुद्धिबल सुमति सुजाना,
कठिन कष्ट हरि करि कल्याणा,
हे तारासुत रोहिणी नंदन,
चंद्र सुवन दुख द्वंद्व निकंदन,
पूजहु आस दास कहुं स्वामी,
प्रणत पाल प्रभु नमो नामामि॥
॥ श्री बृहस्पति स्तुति ॥
जयति जयति जय श्री गुरु देवा,
करहु सदा तुम्हरी प्रभु सेवा,
देवाचार्य तुम देव गुरु ज्ञानी,
इंद्र पुरोहित विद्या दानी,
वाचस्पति बागीश उदारा,
जीव बृहस्पति नाम तुम्हारा,
विद्या सिंधु अंगिरा नामा,
करहु सकल विधि पूरण कामा!॥
॥ श्री शुक्र स्तुति ॥
शुक्र देव पद तल जल जाता,
दास निरंतर ध्यान लगाता,
हे उशना भार्गव भृगु नंदन ,
दैत्य पुरोहित दुष्ट निकंदन,
भृगुकुल भूषण दूषण हारी,
हरहु नैष्ट ग्रह करहु सुखारी,
तूहि द्विजवर जोशी सिरताजा,
नर शरीर के तुमही राजा॥
॥ श्री शनि स्तुति ॥
जय श्री शनि देव रविनंदन ,
जय कृष्ण सौरी जगवंदन,
पिंगल मंद रौद्र यम नामा,
वप्र आदि कोनास्थ ललामा,
वक्र दृष्टि पिप्पल तन साजा,
क्षण महँ करत रंक क्षण राजा,
ललाट स्वर्ण पद करत निहाला,
हरहु विपत्ति छाया के लाला॥
॥ श्री राहु स्तुति ॥
जय जय राहु गगन प्रविशैया,
तुम्ही चंद्र आदित्य ग्रसैया,
रवि शशि अरि सर्वभानु धारा,
शिखि आदि बहु नाम तुम्हारा,
सैंहिकेय तुम निशाचर राजा,
अर्धकाय जग राखहु लाजा,
यदि ग्रह समय पाय कहि आवहु,
सदा शांति और सुख उपजावहु॥
॥ श्री केतु स्तुति ॥
जय श्री केतु कठिन दुखहारी,
करहु सृजन हित मंगलकारी,
ध्वजायुक्त रुंड रूप विकराला,
घोर रौद्रतन अधमन कला,
शिखि तारिका ग्रह बलवाना,
महा प्रताप न तेज ठिकाना,
वाहन मीन महा शुभकारी,
दीजै शांति दया उर धारी॥
॥ नवग्रह शांति फल ॥
तीरथ राज प्रयाग सुपासा,
बसई राम के सुंदरदासा,
ककरा ग्रामहि पुरे-तिवारी,
दुर्वासाश्रम जन दुख हारी,
नव-ग्रह शांति लिख्यो सुख हेतु,
जन तन कष्ट उतारण सेतु,
जो नित पाठ करै चित लावे,
सब सुख भोगी परम पद पावे॥
॥ दोहा॥
धन्य नवग्रह देव प्रभु,
महिमा अगम अपार,
चित्त नव मंगल मोद गृह,
जगत जनन सुखद्वार,
यह चालीसा नवग्रह,
विरचित सुंदरदास,
पढ़त प्रेमयुत बढ़त सुख,
सर्वांनंद हुलास॥
॥ इति श्री नवग्रह चालीसा ॥
नवग्रह चालीसा के बारे में
नवग्रह चालीसा 40 पदों का एक प्रभावशाली भक्ति गीत है, जो हिंदू ज्योतिष के नव ग्रहों को समर्पित है। यह चालीसा प्रत्येक ग्रह के अद्वितीय गुणों और ब्रह्मांडीय प्रभाव का स्तवन करती है एवं बाधाओं को दूर करने और जीवन में सामंजस्य लाने के लिए उनके आशीर्वाद की प्रार्थना करती है।
अर्थ
चालीसा में नौ ग्रहों—सूर्य, चंद्र, मंगल, बुध, बृहस्पति, शुक्र, शनि, राहु और केतु—के भौतिक व आध्यात्मिक गुणों का वर्णन है। इसमें बताया गया है कि ये ग्रह जीवन की घटनाओं, स्वास्थ्य, समृद्धि और मानसिक कल्याण को कैसे आकार देते हैं। यह भजन भक्तों को भक्ति और जाप के माध्यम से ग्रहों के आशीर्वाद प्राप्त कर अशुभ प्रभाव कम करने का मार्ग दिखाता है।
लाभ
- अशुभ ग्रह प्रभावों और दोषों से सुरक्षा करता है
- सामंजस्य, शांति और सकारात्मक ऊर्जा बढ़ाता है
- स्वास्थ्य, धन और संबंधों में सुधार करता है
- जीवन की बाधाओं और कठिनाइयों को दूर करता है
- आध्यात्मिक विकास और आत्मज्ञान को बढ़ावा देता है
- मानसिक स्पष्टता और भावनात्मक संतुलन को मजबूत करता है
- चुनौतियों का सामना करने के लिए दृढ़ता और आत्मविश्वास लाता है
महत्व
नवग्रह चालीसा का पाठ पारंपरिक रूप से नौ ग्रहों को प्रसन्न करने के लिए किया जाता है, विशेषकर साढ़े साती, राहु-केतु दोष या नए कार्यों की शुरुआत के समय। इस चालीसा के जाप से जीवन में संतुलन और सामंजस्य स्थापित होता है, कष्ट कम होते हैं और समृद्धि तथा आध्यात्मिक आशीर्वाद प्राप्त होते हैं।