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चामुंडा देवी चालीसा

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||दोहा||
नीलवर्ण माँ कालिका रहती सदा प्रचंड।
दस हाथों में शस्त्र धार देती दुष्ट को दंड।
मधु केटभ संहार कर करी धर्म की जीत।
मेरी भी बाधा हरो हो जो कर्म पुनीत।

||चौपाई||
नमस्कार चामुंडा माता।
तीनों लोक में महि विख्याता।
हिमालय में पवित्र धाम है।
महाशक्ति तुमको प्रणाम है।

मार्कंडेय ऋषि ने ध्याया।
कैसे प्रगटी भेद बताया।
शूभ निशूभ दो दैत्य बलशाली।
तीनों लोक जो कर दिए खाली।

वायु अग्नि यम कुबेर संग।
सूर्य चंद्र वरुण हुए तंग।
अपमानित चरणों में आए।
गिरिराज हिमालय को लाए।

भद्र-रौद्र नित्य ध्याया।
चेतन शक्ति करके बुलाया।
क्रोधित होकर काली आई।
जिसने अपनी लीला दिखाई।

चंड मुंड और शुंभ पते।
कामुक वैरी लड़ने आए।
पहले सुग्रीव दूत को मारा।
भागा चंड भी मारा मारा।

अरबों सैनिक लेकर आया।
द्रोण लोकांगन क्रोध दिखाया।
जैसे ही दुष्ट ललकारा।
हा ऊ शब्द गुंजा के मारा।

सेना ने मचाई भगदड़।
फाड़ा सिंह ने आया जो बाड़।
हथिया करने चंड-मुंड आए।
मदिरा पीकर के घुर्री आए।

चतुरंगिणी सेना संग लाए।
ऊंचे ऊंचे सीवियर गिराए।
तुमने क्रोधित रूप निकाला।
प्रगटी डाल गले मुंड माला।

चर्म की सैडी चीते वाली।
हड्डी ढांचा था बलशाली।
विकराल मुखी आंखें दिखाई।
जिसे देख सृष्टी घबराई।

चंड मुंड ने चक्र चलाया।
ले तलवार हू शब्द गुंजया।
पापियों का कर दिया निस्तारा।
चंड मुंड दोनों को मारा।

हाथ में मस्तक ले मुस्काई।
पापी सेना फिर घबराई।
सरस्वती मां तुम्हें पुकारा।
पड़ा चामुंडा नाम तिहारा।

चंड मुंड की मिरत्यु सुनकर।
कलक मौर्य आए रात पर।
अरब खराब युद्ध के पाठ पर।
झोंक दिए सब चामुंडा पर।

उग्र चंडिका प्रगटी आकर।
गीदड़ियो की वादी भरकर।
काली खटवांग घुसों से मारा।
ब्रह्मांड ने फेंकी जल धारा।

महेश्वरी ने त्रिशूल चलाया।
मां वैष्णवी कक्कार घुमाया।
कार्तिकेय की शक्ति आई।
नारसिंघी दित्तियों पे छाई।

चुन चुन सिंह सभी को खाया।
हर दानव घायल घबराया।
रक्तबीज माया फैलाई।
शक्ति उसने नई दिखाई।

रक्त गिरा जब धरती ऊपर।
नया दैत्य प्रगटा था वही पर।
चांदी मां अब शूल घुमाया।
मारा उसको लहू चूसाया।

शुंभ निशुंभ अब दौड़े आए।
सत्तर सेना भरकर लाए।
वज्रपात संग शूल चलाया।
सभी देवता कुछ घबराए।

ललकारा फिर घुसा मारा।
ले त्रिशूल किया निस्तारा।
शुंभ निशुंभ धरती पर सोए।
दैत्य सभी देखकर रोए।

चामुंडा मां धर्म बचाया।
अपना शुभ मंदिर बनवाया।
सभी देवता आके मानते।
हनुमत भैरव चंवर दुलाते।

आश्विन चैत नवरात्र आओ।
ध्वजा नारियल भेंट चढ़ाओ।
वांडर नदी स्नान करूं।
चामुंडा मां तुमको ध्याऊँ।

||दोहा||
शरणागत को शक्ति दो हे जग की आधार।
ओम ये नैया डोलती कर दो भव से पार।

चामुंडा देवी चालीसा के बारे में

चामुण्डा देवी चालीसा 40 पदों का शक्तिशाली भजन है जो देवी चामुण्डा को समर्पित है, जो देवी दुर्गा का प्रचंड रूप हैं और अपनी शक्ति एवं रक्षक स्वरूप के लिए जानी जाती हैं। यह चालीसा चंड और मुंड नामक दानवों पर उनकी विजय तथा भय और बाधाओं को दूर करने की क्षमता का गुणगान करती है।

अर्थ

चालीसा देवी चामुण्डा के भीषण स्वरूप, दुष्ट शक्तियों के संहारक के रूप में उनकी भूमिका, और भक्तों को साहस, ज्ञान व सुरक्षा देने वाले आशीर्वाद का वर्णन करती है। यह जीवन की चुनौतियों को पार करने के लिए भक्ति, साहस और बलिदान को मार्ग बताती है।

लाभ

  • भय, नकारात्मकता और बुरी शक्तियों को दूर करता है
  • साहस, शक्ति और सुरक्षा प्रदान करता है
  • इच्छाएं पूरी करता है और समृद्धि प्रदान करता है
  • मानसिक शांति और आध्यात्मिक विकास प्रदान करता है
  • काला जादू और बुरी नजर से रक्षा करता है
  • भक्ति, श्रद्धा और दृढ़ता को प्रेरित करता है
  • भक्तों को सफलता और खुशहाली का आशीर्वाद देता है

महत्व

चामुण्डा देवी चालीसा का पाठ विशेष रूप से नवरात्रि और अन्य आध्यात्मिक त्योहारों में किया जाता है, जो दिव्य माता को समर्पित होते हैं। माना जाता है कि इस चालीसा के नियमित पाठ से नकारात्मकता दूर होती है, साहस आता है, और भक्तों को शक्ति व सुरक्षा के आशीर्वाद प्राप्त होते हैं।

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